Wood is decreasing rapidly, if we do not pay attention to it now, then coming time will be difficult for all of us. It is going to be a big issue in the future.


Q. The problem of wood is getting worse day by day. What is your opinion?
There was a time, wood was in sufficient quantity. As compared to Factories. With increasing no. of factories the wood dwindled. Naturally the problem will persist. This problem is seen everywhere in Haryana, Punjab and UP. Because wood is not available in that ratio (of increased production capacities).

There was a time when there were heavy forests in the Northeast, but due to plywood and sawmills, the forests reduced rapidly. Requirement of the whole country was met from NE at that time. Similarly, when plywood factories were set up in Yamunanagar, its effect was visible on the forest of Uttarakhand.

At one time there was a lot of wood in the entire Himachal and Uttarakhand Pathankot, Jammu. But slowly the wood started to shrink. Plywood has had a direct impact on the forest.

Q. Where do you see the root of the problem?
Wood market was established in Yamunanagar only because timber used to come here from Uttar Pradesh and Uttarakhand. After the closure of North East in 1996, there was a flood of plywood units. Some wood came from agroforestry, some from forests. Till now, no one had any idea that there might be such a shortage of wood in the future.

Similar situation was seen in the Northeast. No one paid attention for plantation to compensate the decreasing trees due to plywood & other saw millers. That’s why when the Supreme Court intervened and Factories were banned. Only then the forests of the Northeast survived. Otherwise, the trees would have been cleared there by now. We have made full use of the natural resources that we had. But did not paid any attention to the need of the future. Its effect is visible now.

Q. Will Agroforestry help?
Agroforestry certainly seems to solve the requirement of wood to some extent. But the time has also come to decide the number of factories.

Q. What can be done to increase Agroforestry?
The availability of wood remains constent in the future, we will have to work on it. For this a society should be formed. In which farmers, forest research institutes, industry and scientists should work together.

Now a campaign has to be started that everyone should plant saplings. Farmers should be made aware that they should adopt agroforestry. Wheat, sugarcane and paddy alone will not work.

For this the industry also has to come forward. We have done this in Punjab. Similarly, it should be done in Haryana also. Similar experiment should be done in other states also. WTA and Plyinsight are also doing commendable work in this area.

The availability of cultivable land with us cannot increase. Firstly, maximum production has to be obtained from this available land. After that, arrangements should be made to use the vacant land in the areas like Panchayati, Railway, Road, Canal etc.

Q. Farmers are demanding for a minimum price to be fixed by industries?
The farmers must get the basic cost of the cultivation and we must think over it, as wood is our basic need, without which we are boneless. But only the government can take the responsibility of MSP. This assurance cannot be given by industrialists. At one time, when the country had to import food grains, the government had made the country self-sufficient in the matter of food grains by encouraging the farmers. We will urge the government to pay attention to this.

It is also a bit difficult technically to give the MSP of wood. Because quality matters is involved. Therefore, there are possibilities of dispute between the farmer and the industry. A solution will also have to be found out to deal with this problem amicably and technically.

Yet now the time has come that we all have to think about the availability of wood. Because plywood industry can run well only if sufficient quantity of wood is available. Efforts will have to be made in this direction from today. Otherwise, the plywood industry may have to face a lot of wood problems in future.



लकड़ी तेजी से कम हो रही है, अभी इस ओर ध्यान नहीं दिया तो आने वाला समय हम सभी के लिए मुश्किल भरा होगा। भविष्य में भारी दिक्कत आने वाली है।


Q.  लकड़ी की समस्या गहराती जा रही। क्या कहेंगे?
एक वक्त था, लकड़ी पर्याप्त मात्रा में थी। फैक्ट्रियां कम थी। अब फैक्ट्रियां बढ़ने लगी। लकड़ी कम होती गई। इसलिए समस्या तो आएगी ही। यह समस्या हरियाणा, पंजाब और यूपी सभी जगह की है। क्यों कि उस अनुपात में लकड़ी उपलब्ध नहीं है। (जिस अनुपात में प्रोडक्सन कैपेसिटी बढ़ गई।)

एक वक्त था जब पूर्वाेत्तर में भारी जंगल थे, लेकिन प्लाईवुड और आरा मिल की वजह से वहां के जंगल तेजी से कम होते गए।तब पूरे देश की जरूरत वहां से पुरी होती थी। इसी तरह से यमुनानगर में प्लाईवुड फैक्टरी लगी, तो उत्तराखंड के जंगल पर इसका असर नजर आया।

एक वक्त पूरे हिमाचल और उत्तराखंड पठानकोट, जम्मू में बहुत ज्यादा लकड़ी थी। लेकिन धीरे धीरे लकड़ी कम होनी शुरू हो गई। फॉरेस्ट पर प्लाईवुड का सीधा असर पड़ा है।

Q. समस्या की जड़ किसे जाने?
यमुनानगर में लकड़ी मंडी बनी ही इसलिए थी, क्योंकि यहां उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से लकड़ी आती थी। 1996 में पूर्वाेत्तर बन्द होने के बाद , यहां प्लाइवुड यूनिट की बाढ़ आ गई। कुछ लकड़ी एग्रोफोरेस्ट्री से मिली, कुछ जंगलों से। तब से अभी तक,किसी को इस बात का ध्यान ही नहीं था कि भविष्य में लकड़ी की कमी पड़ सकती है।

इसी तरह की स्थिति पूर्वाेत्तर में देखने को मिली थी। वहां प्लाइवुड की वजह से कम होते जा रहे पेड़ों की भरपाई के लिए पौधारोपण की ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया। वह तो सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप कर प्लाईवुड

फैक्ट्रियों पर रोक लगाई। तब पूर्वाेत्तर के जंगल बचे। अन्यथा, अब तक तो वहां पेड़ साफ हो गए होते। हमारे पास जो प्राकृतिक संसाधन थे, हमने इनका भरपूर मात्रा में उपयोग किया है।

लेकिन भविष्य की जरूरत की ओर ध्यान नहीं दिया। इसका असर अब नजर आ रहा है।

Q. क्या Agroforestry से कोई मदद मिलेगी?
एग्रोफोरेस्ट्री से जरूर कुछ हद तक लकड़ी की समस्या सुलझती नजर आ रही है। लेकिन फैक्ट्रियों की संख्या कितनी हो, यह तय करने का वक्त भी आ गया है।

Q. क्या Agroforestry बढ़ाने के लिए क्या किया जा सकता है?
लकड़ी की उपलब्धता भविष्य में रहे, इसे लेकर काम करना होगा। इसके लिए एक सोसायटी बननी चाहिए। जिसमें किसान, फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट, इंडस्ट्री और वैज्ञानिक मिल कर काम करें। अब मुहिम चलानी होगी कि हर कोई पौधे लगाए। किसानों को जागरूक करना चाहिए कि वह एग्रोफोरेस्ट्री अपनाए। सिर्फ गेहूं गन्ना और धान से काम नहीं चलने वाला।

इसके लिए इंडस्ट्री को भी आगे आना होगा। पंजाब में हमने यह किया है। इसी तरह से हरियाणा में भी किया जाना चाहिए। दूसरे राज्यों में भी इस तरह का प्रयोग होना चाहिए WTA और Plyinsight भी इस क्षेत्र में सराहनीय कार्य कर रही है।

हमारे पास खेती योग्य भूमि की उपलब्धता बढ़ नहीं सकती है। सबसे पहले तो इस उपलब्ध जमीन पर अधिक से अधिक उत्पादन करना पड़ेगा। उसके बाद पंचायती, रेलवे, सड़क, नहर आदि क्षेत्रों में खाली जमीन का उपयोग करने की व्यवस्था करनी चाहिए।

Q. किसानों की मांग है कि न्यूनतम मूल्य निर्धारित होना चाहिए?
किसानों को लकड़ी की मूल लागत तो मिलनी ही चाहिए। और हमें भी इस पर गम्भीरता से विचार करना होगा क्योंकि लकड़ी हमारी मूल आवश्यकता है, जिसके बगैर हम कुछ भी नहीं है। लेकिन एम एस पी की जिम्मेदारी तो सरकार ही उठा सकती है। यह आश्वासन उद्योगपतियों द्वारा तो नहीं दिया जा सकता। एक समय जब देश को अनाज का आयात करना पड़ता था,तब सरकार ने ही किसानों को प्रोत्साहन दे कर देश को अनाज के मामले में आत्मनिर्भर बनाया था। हमारा सरकार से आग्रह रहेगा कि इस ओर ध्यान दें।

लकड़ी का एमएसपी देना तकनीकी रूप से थोड़ा मुश्किल भी नजर आ रहा है। क्यों कि इसमें क्वालिटी भी मायने रखती है। इसलिए किसान और इंडस्ट्री के बीच विवाद हो सकता है। इस समस्या से सौहर्दपूर्ण तरीके से निपटने का हल भी ढ़ुंढ़ना पड़ेगा जो तकनीकी रूप से भी कारगर हो।

फिर भी अब वक्त आ गया कि हम सभी को लकड़ी की उपलब्धता के बारे में सोचना ही होगा। क्योंकि प्लाइवुड इंडस्ट्री तभी बेहतर तरीके से चल सकती है जब पर्याप्त मात्रा में लकड़ी उपलब्ध होगी। इस दिशा में आज से ही प्रयास करने होंगे। नहीं तो भविष्य में प्लाईवुड इंडस्ट्री को लकड़ी की खासी दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है।



Haryana Plywood Conclave - Yamuna Nagar 16th May