Risks in GST Due to Supreme Court’s Decision
- June 23, 2022
- 0
After the latest decision of the Supreme Court and in the meantime, after the reduction of excise duty on petrol and diesel by the Center, the economic relations of the center have also come in a sensational mode. On the one hand, the Supreme Court has limited the powers of the GST Council, which was the new identity of power in the center-state relations, and has given the states the right to levy taxes. On the other hand, to save the political loss of inflation, the central states have to reduce VAT on petrol and diesel. The anti-climax is that the state governments are in the process of levying tax on their own on the basis of the new power from the court, because after June, the GST compensation to the state from the center will stop.
In 2017, when the states of India were agreeing on GST, leaving the right to levy tax, the question still existed that most of the states are consumers of industrial products and services, the number of producing states is limited, so how long lasting the unity between them will be. How long will Maharashtra and Bihar be able to do justice to the needs of their economies with this tax system? However, at the time of the introduction of GST, it was decided that as long as the central government keeps compensating the states for the loss due to GST, unity will remain. The loss compensation scheme will be closed from June, so cracks are sure to emerge.
According to the Finance Commission, GST is causing an annual loss of about 4 lakh crores to the center and the state. In GST also, the effective tax rate is 11.4%, which is to be increased to 14%, which is a revenue neutral rate, that is, the governments will not suffer on this. That is why the GST Council is considering raising the tax rate on 143 essential products from 18 to 28%.
Between 1946 and 1950, there was a long debate in the Constituent Assembly on the rights of the Center versus the State. Balancing the insistence of the Constituent Assembly towards the Center, agreeing on a framework that gave power to the Center in times of crisis, but generally worked on the principle of federal (balanced rights to the states).
The Finance Commission (1951), the first institution to be formed after the implementation of the constitution, makes equitable distribution of taxes and resources between the center and the state between economic disparity. In 2017, in the new avatar of India’s economic federalism, the states had delegated the right to levy taxes to the GST Council. The recession was taking a toll on this cooperative federalism. The Supreme Court has given new power to the states in the system of GST. If the Center does not show sympathized understanding, then the anti-climax of the Centre-State relationship can happen on the GST platform.
सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से जीएसटी में जोखिम
सुप्रीम कोर्ट के ताजा फ़ैसले और इस बीच केंद्र की तरफ से पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी की कटोती के बाद केंद्र राज्य के आर्थिक रिश्तों में भी सनसनीखेज मोड आ गया है एक तरफ जीएसटी काउंसिल जो केंद्र राज्य संबंधो में ताक़त की नई पहचान थी – के अधिकारो को सुप्रीम कोर्ट ने सीमित करते हुए राज्यो को टैक्स लगाने का अधिकार दे दिया है। दुसरी तरफ महंगाई के राजनीतीक नुकसान को बचाने के लिए केंद्र राज्यों को पेट्रोल-डीजल पर वैट कम करना पड़ रहा है। एंटी क्लाइमेक्स ये है की राज्य सरकारे अदालत से मिली नई ताक़त के दम पर अपनी तरह से टैक्स लगाने की जुगत में है, क्योंकि जून के बाद राज्य को केंद्र से मिलने वाला जीएसटी हर्जाना बंद हो जाएगा।
2017 में जब भारत के राज्य टैक्स लगाने के अधिकारो को छोड जीएसटी पर सहमत हो रहे थे, तब भी ये सवाल मौजूद था की अधिकांश राज्य तो औद्योगिक उत्पादों और सेवाओ के उपभोक्ता है, उत्पादक राज्यों की संख्या सीमित है तो इनमे एकजुटता कब तक चलेगी। महाराष्ट्र और बिहार इस टैक्स प्रणाली से अपनी अर्थव्यवस्थाओं की ज़रूरर्ताे के साथ कब तक न्याय कर पाएंगे? अलबता जीएसटी की शुरुआत के वक्त तय हो गया था की जब तक केंद्र सरकार राज्यों को जीएसटी से होने वाले नुकसान की भरपाई करती रहेगी, एकजुटता बनी रहेगी। नुकसान की भरपाई की स्कीम जून से बंद हो जाएगी, इसलिय दरारे उभरना तय है।
बकोल वित आयोग जीएसटी से केंद्र व राज्य को करीब 4 लाख करोड़ का सलाना नुकसान हो रहा है। जीएसटी में भी प्रभावी टैक्स दर 11.4 प्रतिशत है, जिसे बढ़ाकर 14 प्रतिशत किया जाना है, जो रेवेन्यू न्यूट्रल रेट है यानी इस पर सरकारो को नुकसान नहीं होगा। तभी तो जीएसटी काउंसिल 143 जरूरी उत्पादों पर टैक्स दर 18 से 28 प्रतिशत करने पर विचार कर रही है।
1946 से 1950 के बीच सविधान सभा में केंद्र बनाम राज्य के अधिकारो पर लम्बी बहस चली और केंद्र के प्रति सविधान-सभा के आग्रह को संतुलित करते हुए ऐसे ढांचे पर सहमती बनायी गयी जो संकट के समय केंद्र को ताकत देता था, लेकिन आम तौर पर संघीय (राज्यो को संतुलित अधिकार) सिद्धांत पर काम करता था।
संविधान लागू होने के बाद बनने वाली पहली संस्था वित आयोग (1951) आर्थिक विषमता के बीच केंद्र व राज्य में टैक्स व संसाधनो का न्यायसंगत बंटवारा करती है। 2017 में भारत के आर्थिक संघवाद के नए अवतार में राज्यों ने टैक्स लगाने के अधिकार जीएसटी काउंसिल को सोपे थे। मंदी इस सहकारी संघवाद पर भारी पड़ रही थी। सुप्रीम कोर्ट ने जीएसटी की व्यवस्था में राज्यों को नई ताकत दे दी है। केंद्र ने सूझबूझ नहीं दिखाई तो जीएसटी के मंच पर केंद्र- राज्य रिश्तो का एंटी- क्लाइमेक्स घटित हो सकता है।