Cooperative Federalism Defined
- July 7, 2022
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Cooperative Federalism Defined
A Supreme Court Bench in a judgment said the recommendations of the Goods and Services Tax (GST) Council were not binding on the Central and State governments. The Court further noted Parliament and the state legislatures had the powers to legislate on issues related to GST. The judgment clearly underscores the nature of the Indian federal structure and the need for cooperation.
The implementation of GST after years of consultation between the states and the Union is said to be one of the finest example of cooperative federalism. Both the centre and the states pooled their powers to tax goods and services to attain the idea of “one country one tax”. Different level of taxes in different states are inherently inefficient for business.
However, it’s the court’s observations on the GST Council’s position that has raised concern. It is being argued that the states may not implement the Council’s decisions and the advantage of “one nation one tax” could be lost.
It is worth noting here that what the court has done is to reiterate the constitutional position. Article 279A says the GST Council “shall make recommendations to the Union and the States..” regarding various aspects of the tax. But it also says that the Council will be “guided by the need for a harmonised structure for goods and services tax and and for the development of a harmonised national market for goods and services”.
This is important because Article 246A empowers the legislature of every state to make laws in the context of goods and services. Notably, the Constitution also gives powers to the Council to determine the procedure in the performance of its functions. If gaps emerge in the functioning of GST, which is always a possibility as the system matures, the Council is in a position to plug them. Therefore, the judgment has not increased uncertainty in the GST system.
The system is designed to build a consensus. The law gives two-thirds of the weighted votes to the states while only one-third is with the Centre. Since all states are part of the process in the Council, there is, in principle, no reason for some states to act differently. Besides, the council is guided by the need to develop a harmonised market.
There have been a number of occasions when differences emerged between the Centre and the states but they were resolved in the Council. Perhaps the biggest challenge the Council needs to address now is the augmentation of revenue. With the completion of five years of implementation, the states from July 1 will not be eligible for compensation against revenue shortfall.
The Council is working on the rationalisation of rates to improve revenue collection, which will hopefully be implemented soon. Also, once the system stabilises, the need for making changes and, thus, the scope for differences in the Council will automatically decline. The judgment nonetheless underlines the need for increased cooperation. The Centre must make sure that the concerns of all states are addressed.
परिभाषित GST सहकारी संघवाद
सर्वाेच्च न्यायालय ने एक निर्णय में कहा की वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) परिषद की अनुशंसाएं केंद्र और राज्य सरकारों पर बाध्यकारी नहीं हैं. न्यायालय ने यह भी कहा की संसद और राज्य विधानसभाओं के पास यह शक्ति है कि वे जीएसटी से संबंधित विषयों पर कानून बनाएं. उपरोक्त निर्णय के माध्यम से भारतीय संघवाद के ढांचे को स्पष्ट किया गया और सहयोग की आवश्यकता को भी रेखांकित किया गया।
राज्यों और केंद्र सरकार के बीच वर्षों के मशवरे के बाद जीएसटी क्रियान्यवन को सहकारी संघवाद के बेहतरीन उदाहरणों में से एक माना जाता है. केंद्र और राज्य सरकार दोनों ने अपनी शक्तियां वस्तुओं और सेवाओं पर कर लगाने के लिए एकत्रित की ताकि देश में एक कर प्रणाली हो सके. विभिन्न राज्यों में विभिन्न स्तरों पर लगने वाला कर कारोबारों के लिए नुकशानदेह और तकलीफ देह साबित हो रहा था।
बहरहाल, जीएसटी परिषद की स्थिति पर न्यायालय के पर्यवेक्षण ने चिंता बढ़ा दी है. यह कहा जा रहा है कि राज्य शायद परिषद के निर्णयों को लागु न करे और एक देश एक कर का लाभ गंवा दिया जाए।
यह बात ध्यान देने लायक है कि न्यायालय ने संवैधानिक स्थिति को ही दोहराया है. अनुच्छेद 279। में कहा गया है कि जीएसटी परिषद श्केंद्र और राज्यों को कर के विभिन्न पहलुओं के बारे में अनुशंसाएं कर सकती है.श् परन्तु अनुच्छेद में यह भी कहा गया है की परिषद वस्तु एवं सेवा कर के लिए एक सुसंगत ढांचे की जरूरत के मुताबिक काम करेगी और साथ ही वह वस्तुओं और सेवाओं के समन्वित राष्ट्रीय बाजार के विकास की दिशा में काम करेगी।
यह बात अहम है क्योंकि अनुच्छेद 246ए हर राज्य की विधायिका को यह अधिकार देता है की वह वस्तुओ और सेवाओं से संबंधित कानून बनाए. ध्यान रहे की सविंधान परिषद को यह अधिकार भी देता है की वह अपने कामकाज में प्रदर्शन प्रक्रिया निर्धारित कर सके. यदि जीएसटी के कामकाज में कुछ अंतर आता है जो कि व्यवस्था की परिपक्वता के बीच हमेशा संभव है, तो परिषद उन्हें पाटने में सक्षम है. यानी निर्णय ने जीएसटी व्यवस्था के लिए अनिश्चितता नहीं बढ़ाई है।
व्यवस्था इस तरह बनी है कि सहमति बनायीं जा सके. कानून में दो तिहाई वजन राज्यों के पास है जबकि सिर्फ एक तिहाई केंद्र के पास. चूँकि सभी राज्य परिषद की प्रक्रिया का हिस्सा है इसलिए सैद्धांतिक तौर पर ऐसी कोई वजह नहीं है कि कुछ राज्य अलग व्यवहार करे. इसके अलावा परिषद को सुसंगत बाजार भी विकसित करना है।
ऐसे कई मौके आए है जब राज्यों और केंद्र के बीच मतभेद पैदा हुए लेकिन उन्हें हल कर लिया गया. शायद सबसे बड़ी चुनौती यही है कि राजस्व का समायोजन कैसे किया जाये. क्रियान्वयन के पांच वर्ष पुरे होने के बाद राज्यों को 1 जुलाई से राजस्व कमी की क्षतिपूर्ति नहीं मिलेगी।
परिषद दरों को तार्किक बनाने में लगी है ताकि राजस्व संग्रह में सुधार हो. आशा है यह काम जल्दी होगा. एक बार व्यवस्था के स्थिर हो जाने तथा बदलाव की जरूरत कम होने के बाद परिषद के मतभेद स्वतरू कम हो जाएंगे। निर्णय में इस बात को रेखाकिंत किया गया कि सहयोग बढ़ाने की जरूरत है. केंद्र को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी राज्यों की चिंताए हल की जा सकें।