Editorial 2021

The trained workforce from institutes like FRI and IPIRTI are a bit expensive, but how economical they are, it can be experienced only. These learned staff have the potential to bring down the rejections to just 1-2% in manufacturing. Experience shows that expensive craftsmen tend to be cheaper than cheap craftsmen in the long run.


The efficiency of the 20th century was based on technology, but the economy of the 21st century is based on competence skills. Whoever has more skill will go ahead. The percentage of skilled workforce is much lower in developing countries as compared to developed countries. The total skilled workforce in developed countries is 60 to 90%, while in India only 5% of people in the age group of 20-24 years have formal vocational skills.

The reality is that there is no shortage of knowledge and talent in the country. However, the need of the hour is to enhance the skills of the youth to meet the needs of the 21st century technology-intensive industry. We have been too late to understand that like academic education, it is also necessary to provide high quality skill education to our new generation as per the market demand. In which a big role is played by skill related education.

At present, the work is done in the industry with traditionally trained workers and supervisors. They do the work efficiently but do not know any logical idea or reasoning for doing it.

The trained workforce from institutes like FRI and IPIRTI are a bit expensive, but how economical they are, it can be experienced only. These learned staff have the potential to bring down the rejections to just 1-2% in manufacturing. Experience shows that expensive craftsmen tend to be cheaper than cheap craftsmen in the long run.

To be understood with another example, the time required for the material to cook is determined by the correct combination of heat and pressure. Now by changing the temperature and pressure, more material can produced in less time but with compromising on quality.

In today’s competitive world, growth strategy is the strategy in which industries improve the skills of their sector’s labor force, reduce business operational costs and thus make profits by making their products competitive in the world economy. In this era of mechanization, crores of hands can be given work only when they are skilled. Only then can they increase productivity. The development of skills will strengthen the development of the industry, if we have to take the industry forward on the path of development, skilled workforce in India should be our first mission.

We are currently facing the brunt of the negligence of not paying attention to the plantation of trees. Lack of skilled craftsmen will be our next weakness.

Suresh Bahety
9050800888



FRI और IPIRTI जैसे संस्थानों से प्रशिक्षित कार्यबल थोड़े मंहगे तो होते है, लेकिन किफायती भी कितने होते हैं, यह तो अनुभव ही किया जा सकता है। ये प्रशिक्षु उत्पादन के बाद रिजेक्शन को सिर्फ 1-2 प्रतिशत तक ला सकने की क्षमता रखते हैं। अनुभव बताता है कि मंहगे कारीगर लंबे समय में सस्ते कारीगरों से भी किफायती पड़ते हैं।


20वीं सदी की दक्षता तकनीक पर आधारित थी पर 21वीं सदी की अर्थव्यवस्था दक्षता कौशल यानी कॉम्पीटेंस स्किल पर आधारित है। जिसके पास अधिक कुशलता होगी वह आगे निकल जाएगा। विकसित देशों के मुकाबले विकासशील देशों में कुशल कार्यबल का प्रतिशत काफी कम है। विकसित देशों में कुल कुशल कार्यबल 60 से 90 प्रतिशत है, जबकि भारत में 20-24 वर्ष की उम्र के सिर्फ 5 प्रतिशत लोग ही ऐसे हैं, जिनमें औपचारिक व्यावसायिक कौशल देखने को मिलता है।

वास्तविकता यह है कि देश में ज्ञान तथा टैलेंट का कोई अकाल नहीं है। हालांकि समय की पुकार युवाओं में कौशल बढ़ाने की है ताकि तकनीक वाली 21वीं शताब्दी की उद्योग की जरुरतों को पूरा किया जा सके। हमने समझनें में बहुत देर कर दी है कि अकादमिक शिक्षा की तरह अपनी नई पीढ़ी को बाजार की मांग के मुताबिक उच्च गुणवत्ता वाली स्किल एजुकेशन देना भी जरुरी है। जिसमें बड़ी भूमिका कौशल से जुड़ी शिक्षा की है।

अभी उद्योग मे पंरपरागत तरीके से सीखे हुए श्रमिकों और सुपरवाइजर से काम चलाया जाता है। जो काम तो कर लेते हैं लेकिन करने की वजह के बारे में उन्हें कोई तार्किक विचार या कारण पता नही होता है।

FRI और IPIRTI जैसे संस्थानों से प्रशिक्षित कार्यबल थोड़े मंहगे तो होते है, लेकिन किफायती भी कितने होते हैं, यह तो अनुभव ही किया जा सकता है। ये प्रशिक्षु उत्पादन के बाद रिजेक्शन को सिर्फ 1-2 प्रतिशत तक ला सकने की क्षमता रखते हैं। अनुभव बताता है कि मंहगे कारीगर लंबे समय में सस्ते कारीगरों से भी किफायती पड़ते हैं।

एक और उदाहरण से समझा जाए, माल पकने के लिए अपेक्षित समय को ताप और प्रेशर के सही संयोजन से निर्धारित किया जा सकता है। अब ताप और प्रेशर में बदलाव लाकर कम समय में अधिक माल बनाया जा सकता है लेकिन गुणवत्ता से समझौता करके।

आज की प्रतिस्पर्धी दुनिया में विकास रणनीति वह रणनीति है जिसमे उद्योग अपने क्षेत्र की श्रम शक्ति के कौशल में सुधार करते हैं, व्यवसाय के लागत कम करते हैं और इस प्रकार अपने उत्पादों को विश्व अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्धी बनाकर मुनाफा कमाते हैं। मशीनीकरण के इस दौर में करोड़ों हाथो को तभी काम दिया जा सकता है, जब उन हाथो में हुनर हो। तभी वे उत्पादकता बढ़ा कर लागत कम कर सकते हैं। हुनर के विकास से उद्योग के विकास को मजबूती मिलेगी, अगर हमे उद्योग को विकास की राह पर आगे ले जाना है, तो हुनरमंद कार्यबल हमारा पहला मिशन होना चाहिए।

वृक्षों के पौधारोपण में ध्यान न देने की लापरवाही का खामियाजा हम वर्तमान समय में भुगत रहे हैं। कुशल कारीगरों का अभाव हमारी अगली कमजोरी होगी।

सुरेश बाहेती
9050800888