Editorial 2021

Industry have no option other than Agro-Forestry, while farmers are at their will, to choose the produce which is profitable to them. It puts them upper hand over the industry. It is crucial that, the industry adopts sustainable practices, to ensure that it is viable in the long run.

The Plywood & Panel, along with laminate industry in India, has a vital role in the country’s economy, by providing employment opportunities and contributing to the GDP. Originating from North Eastern India (where plywood was made from the forest resources) it got the pride of spreading its fame all over India on its own, with support of agro-forestry. The success of new species, altogether different from traditionally confirmed species used in products, gave a new dimension to this industry.

Wherever farmers adopted agro-forestry, industry flourished successfully. The easy availability of technology and work force helped to increase it spread even further. But that’s a different story. The basic thing is that, species like Poplar, eucalyptus in North India, Rubber, eucalyptus and Meelia in South India, Seemul, Lambu, Kadam in Eastern India, gave extensive support in the expansion of the industry.

The Indian wood-based Industry is facing a severe challenge, due to the shortage of sustainable raw material. Timber, which is the critical source of raw material for the industry, is limited in supply, and this scarcity is posing a significant threat to the industry’s growth.

Timber is a basic raw material to plywood & panel ind, where as, it plays vital role in paper industry, which is a major part of laminate. Hence, both industry has a basic requirement of timber.

Sustainable management of the plantation-grown timber can meet the raw material demand for the industry. The industry should work towards establishing sustainable practices to maintain the supply of raw material and prevent further resources scarcity.

The government and the industry both are working to promote the use of sustainable raw material sources. However, farmers are not much assured about the incentives they will receive. This poses a challenge, as more support is needed from the government and market, to make the farmers more active participation, in plantations of industrial timber.
The government must incentivize the farmers and provide them with better support, to encourage them to plant more. It can be done by providing subsidized loans, facilitation of training programs, and giving appropriate compensation to the farmers for their produce.

Industry have no option other than Agro-Forestry, while farmers are at their will, to choose the produce which is profitable to them. It puts them upper hand over the industry. It is crucial that, the industry adopts sustainable practices, to ensure that it is viable in the long run.

To secure the future of the Indian wood-based Industry, the industry must adopt sustainable practices, while the government must provide the necessary support to farmers, promoting the use of plantation-grown timber. The stakeholders must work in sync to ensure the industry’s sustainability and growth.

Suresh Bahety
9050800888



लकड़ी आधारित उद्योगः सतत कच्चे माल की आवश्यकता


उद्योग के पास कृषि-वानिकी के अलावा कोई विकल्प नहीं है, जबकि किसान अपनी मर्जी से उस उपज का चयन कर सकते हैं, जो उनके लिए लाभदायक हो। यह उन्हें उद्योग पर बढ़त प्रदान करता है। यह महत्वपूर्ण है कि, उद्योग यह सुनिश्चित करने के लिए टिकाऊ प्रथाओं को अपनाए, जो कि लंबे समय तक व्यवहार्य हो।

भारत में लेमिनेट के साथ, प्लाइवुड और पैनल उद्योग, रोजगार के अवसर प्रदान करने और जीडीपी में योगदान देकर, देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। उत्तरी पूर्वी भारत (जहां जंगल की लकड़ी से प्लाइउड बनाया जाता था) से निकलकर संपूर्ण भारत में कृषि वाणिकी के दम पर अपना परचम लहराने का गौरव इसे मिला। उत्पादों में प्रचलित एवं स्थापित लकड़ी से अलग नये प्रजातियों के सफल होते जाने से इस उद्योग को नया आयाम मिला।

जहां-जहां भी किसानों ने कृषि वाणिकी को अपनाया वहां वहां उद्योग को सफलता मिलती चली गयी। तकनीक और कारीगर के सहज उपलब्ध होने से इसके प्रसार में और भी तेजी आयी। लेकिन यह एक अलग कहानी है। मूल बात तो यह है कि उत्तर भारत में पोपलर सफेदा, दक्षिण भारत में रबड़, सफेदा और मीलीया पूर्वी भारत में सीमुल लम्वू, कदम जैसी कृषि वाणिकीय पौधों की प्रजातियों ने उद्योग के विस्तार में अपना विस्तृत सहयोग दिया।

टिकाऊ कच्चे माल की कमी के कारण, भारतीय लकड़ी आधारित उद्योग को एक गंभीर चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। लकड़ी, जो उद्योग के लिए कच्चे माल का महत्वपूर्ण स्रोत है, आपूर्ति में सीमित है, और यह कमी उद्योग के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण खतरा बन रही है।

लकड़ी प्लाईवुड और पैनल के लिए एक बुनियादी कच्चा माल है, जबकि यह पेपर उद्योग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो लैमिनेट का एक प्रमुख हिस्सा है। अतः दोनों उद्योगों के लिए लकड़ी एक मूलभूत आवश्यकता है।

वृक्षारोपण से उगाई गई लकड़ी का सतत प्रबंधन, उद्योग के लिए कच्चे माल की मांग को पूरा कर सकता है। उद्योग को, कच्चे माल की आपूर्ति बनाए रखने और संसाधनों की आगे और कमी को रोकने के लिए स्थायी प्रथाओं को स्थापित करने की दिशा में काम करना चाहिए।

सरकार और उद्योग दोनों ही, टिकाऊ कच्चे माल के स्रोतों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहे हैं। हालांकि, किसान मिलने वाले प्रोत्साहन को लेकर ज्यादा आश्वस्त नहीं हैं। यह एक चुनौती है, क्योंकि किसानों को, औद्योगिक लकड़ी के प्लांटेसन में और अधिक सक्रिय भागीदारी के लिए सरकार और बाजार से अधिक समर्थन की आवश्यकता है।

सरकार को किसानों को प्रोत्साहित करना चाहिए और उन्हें अधिक रोपण के लिए प्रोत्साहित करने के लिए बेहतर समर्थन प्रदान करना चाहिए। यह सब्सिडी वाले ऋण, प्रशिक्षण कार्यक्रमों की सुविधा और किसानों को उनकी उपज के लिए उचित मुआवजा देकर किया जा सकता है।

उद्योग के पास कृषि-वानिकी के अलावा कोई विकल्प नहीं है, जबकि किसान अपनी मर्जी से उस उपज का चयन कर सकते हैं, जो उनके लिए लाभदायक हो। यह उन्हें उद्योग पर बढ़त प्रदान करता है। यह महत्वपूर्ण है कि, उद्योग यह सुनिश्चित करने के लिए टिकाऊ प्रथाओं को अपनाए, जो कि लंबे समय तक व्यवहार्य हो।

भारतीय लकड़ी आधारित उद्योग के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए, उद्योग को स्थायी प्रथाओं को अपनाना चाहिए, जबकि सरकार को किसानों को आवश्यक सहायता प्रदान करनी चाहिए, वृक्षारोपण से उगाई गई लकड़ी के उपयोग को बढ़ावा देना चाहिए। हितधारकों को उद्योग की स्थिरता और विकास सुनिश्चित करने के लिए तालमेल से काम करना चाहिए।

सुरेश बाहेती
9050800888

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