Fixatian of minimum and maximum price of timber will be game changer

Since long, farmers have been raising the demand to fix the minimum price by the industries for the wood produced from agro-forestry. Due to market volatility, both the industry and the farmer are suffering losses at different times. Because the rates of timber increases if the demand is high. Here the industry suffers. When the rates come down if the demand goes down, it directly affects the farmers.

Over the years, the industry has seen several occasions when timber yield has exceeded demand and prices have crashed. So many times it had come to such an drastic extent that the farmers were forced to uproot the grown plants from the field. During that time many farmers had retreated from plantation in such a way that they had turned away from agro -forestry. Due to which agro-forestry also got a big blow.

At present, the prices of wood are increasing is such a way, that the wood-based industries are in dilemma. The cost of production has skyrocketed. The simple reason for this situation is that a few years ago the price of wood had fallen below the cost. That’s why the farmers had turned away from plantation. Aftermath of it is seen now, because, it takes at least three to five years to produce wood for the plywood industry.

MSME industries have to face the problems mostly due to this rate fluctuation. Because the production of timber cannot increase at once. That’s why it has been insisted since long that some minimum price should be fixed. To avoid such type of problem frequently.

It is an admissible fact that the industry cannot run without timber. But on the other side, farmers have many options. The farmer can easily turn to other crops, where he is getting higher value than timber.

Now, in the new guidelines that the government is proposing, the State Level Committee, in consultation with the industry and farmers, will fix a minimum and maximum price by calculating the production cost and transportation cost of wood. Dr. MP Singh said that Full attention has been paid to remove this problem in the new policy. So that the area under agro-forestry can be increased. It will increase only when the farmers will be assured that they will get at least cost of the wood they are growing, parallel to or better than other crops.

When the farmers will be attracted towards the production of more and more wood, the industries will also be able to expand their production capacity without any hindrances. Dr. M. P. Singh told that possibility of expansion of industries is increasing manifold. Because in the new policy, the industry will be license free. This will automatically increase the demand for wood. Therefore, now it is the basic need of the hour that by boosting confidence of farmers, the area of agro-forestry should be increased in such a way that the industries can focus their attention only on marketing without worrying for their raw material.

If this is not taken care as of now, there may be a serious problem of raw material for the timber industry. Because, reduction in the supply of wood directly means that the price of raw material will increase in the market. But, simple price rise cannot solve the crisis. Because then only those industrialists will be able to buy costly timber, who will be able to pay more. It is substantialy important to avoid such a situation.

The Wood Technologists Association (WTA) have consistently raised the issue of fixation of minimum and maximum timber prices in the platform of Ply insight. For this, continuous interaction was held in various webinars with industrialists and Plywood Association, Government and experts. As a result of this, in many states of the country, there was an agreement between the industry and the farmers regarding the rate. In which new opportunities emerged for contract farming. Contemporarily, at many places, industrialists are associated with farmers in planting saplings with helping hand providing saplings and know how.



लकड़ी की न्यूनतम और अधिकतम कीमत तय होना खेल परिवर्तक साबित होगा


लंबे समय से किसान यह मांग उठा रहे हैं, कि, कृषि वानिकी से पैदा हो रही लकड़ी की भी न्यूनतम कीमत, उद्योगों द्वारा निर्धारित की जाए। भाव तय नहीं होने की वजह से, उद्योग और किसान दोनो को नुकसान हो रहा है। क्योंकि यदि मांग ज्यादा हो जाती है तो लकड़ी के रेट बढ़ जाते हैं। इस वजह से उद्योग को नुकसान होता है। यदि मांग कम हो जाती है तो रेट एक दम से नीचे आ जाते हैं। इससे सीधा किसानों को नुकसान होता है।

पिछले कुछ वर्षों से उद्योग ने ऐसी परिस्थितियों के कई

दौर देखे हैं, जब लकड़ी की पैदावार मांग से अधिक हो गई थी और कीमतें जमीन पर आ गई थी। कई बार तो नौबत यहां तक आ गई थी कि किसान खेत में लगे पौधे तक उखाड़ने पर मजबूर हो गए थे। उस दौरान कई किसान पौधारोपण से ऐसे पीछे हट गए थे, कि उन्होंने कृषि वानिकी से तौबा तक कर लिया था। जिससे कृषि वानिकी को भी गहरा धक्का लगा।

वर्तमान में जिस तरह से लकड़ी के दाम बढ़ रहे हैं, इससे लकड़ी आधारित उद्योगों को खासी दिक्कत आ रही है। उत्पादन लागत बेतहाशा बढ़ चुकी है। इसका सीधा कारण यह है कि कुछ साल पहले लकड़ी के दाम लागत से भी कम हो गए थे। इस वजह से किसानों ने पौधारोपण से मुंह फेर लिया था। इसका खामियाजा अब भुगतना पड़ रहा है, क्योंकि प्लाइवुड उद्योग के लिए लकड़ी पैदा करने में तीन से पांच साल का समय, कम से कम लगता है।

रेट के इस उतार चढ़ाव से MSME उद्योगों को सबसे ज्यादा दिक्कत आती है। क्योंकि लकड़ी का उत्पादन एक दम से नहीं बढ़ सकता। इसलिए इस बात पर लंबे समय से जोर दिया जा रहा है कि कोई एक न्यूनतम दाम तय कर दिए जाए। जिससे इस तरह की समस्या बार – बार नहीं आए।

ध्यान देने वाली बात तो यह है, कि उद्योग लकड़ी के बिना नहीं चल सकता। वहीं, किसानों के पास कई विकल्प है। किसान उस फसल की ओर आसानी से मुड़ सकता है, जिसमें उसे लकड़ी की तुलना में ज्यादा दाम मिल रहे हो।

अब सरकार जो नए दिशा निर्देश तैयार कर रही है, इसमें स्टेट लेवल कमेटी, उद्योग और किसानों से विचार विमर्श करके लकड़ी की उत्पादन लागत और परिवहन लागत को जोड़ कर, एक निम्नतम और अधिकतम कीमत तय करेगी। डा. एम. पी. सिंह ने बताया कि नई पॉलिसी में इस समस्या को दूर करने पर पूरा ध्यान दिया गया है। जिससे कृषि वानिकी का एरिया बढ़ाया जा सके। यह तब बढ़ेगा जब किसानों को यह आश्वासन मिल जाएगा, कि वह जो लकड़ी उगा रहा है, उसकी एक निश्चित लागत उसे मिल ही जाएगी जो दुसरी फसल के मुकाबले की या बेहतर होगी।

किसान जब ज्यादा से ज्यादा लकड़ी के उत्पादन की ओर आकर्षित होंगे, तो उद्योग भी चिंतामुक्त होकर अपनी उत्पादन क्षमता का विस्तार कर सकेंगे। डा एम पी सिंह ने बताया कि यूं भी अब उद्योगों के विस्तार की संभावना बढ़ रही है। क्योंकि जो नई पॉलिसी है, इसमें उद्योग लाइसेंस मुक्त हो जाएगी । इससे लकड़ी की मांग बढ़ेगी। इसलिए अब वक्त की जरूरत भी है, कि किसानों का भरोसा बढ़ाकर कृषि वानिकी का क्षेत्रफल कुछ इस तरह से बढ़ाया जाए, कि उद्योग चिंतामुक्त अपना ध्यान सिर्फ मार्केटिंग में लगा सकें।

यदि इस ओर, अब ध्यान नहीं दिया गया, तो लकड़ी उद्योग के लिए कच्चे माल की गंभीर समस्या आ सकती है। क्योंकि, लकड़ी की सप्लाई कम होने का सीधा मतलब है कि बाजार में कच्चे माल के दाम बढ़ जाएंगे। लेकिन, इसके बाद भी लकड़ी संकट का समाधान नहीं होगा। क्योंकि तब वह उद्योगपति ही महंगी लकड़ी खरीद पाएंगे, जो ज्यादा दाम चुकाने में सक्षम होंगे। इस तरह की स्थिति से बचने का प्रयास करना बहुत जरूरी है।

वुड टेक्नोलॉजीस्ट एसोसिएशन (WTA) ने प्लाइ इनसाइट के मंच पर लगातार लकड़ी की न्यूनतम और अधिकतम कीमत तय करने का मामला उठाया है। इसके लिए, उद्योगपत्तियों और प्लाईवुड एसोसिएशन, सरकार और विशेषज्ञों से विभिन्न वेबीनार में लगातार बातचीत की गई। इसका परिणाम यह निकला, कि देश के कई राज्यों में उद्योग और किसानों के बीच रेट को लेकर समझौता हुआ। जिसमें कांट्रेक्ट फार्मिंग के लिए नए अवसर बने हैं। इसके साथ ही कई जगह उद्योगपति स्वयं अपने खर्च पर किसानों के साथ मिल कर पौधारोपण में पौधें और ज्ञानवर्द्धन में सहायता कर रहे हैं।

Manoj Thakur
Manoj Thakur

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