An Agenda for Increasing Consumption
- February 19, 2020
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An Agenda
for Increasing Consumption
About 60 percent of GDP comes from consumption and consumption accounts for an even larger chunk of non-government activity. Tie the GST numbers to other known indicators of consumption, such as vehicle sales, biscuit sales, freight movements, power consumption, etc., and the assumption that consumption is down, gets stronger. One estimate is that consumption is growing at around 5-7 percent in 2019-20 versus a decade long trends where it has always grown at close to 20 percent.
Any policy thrust that attempts to revive GDP growth rates has to aim to lift consumption growth. The Budget should be aimed at that and so should non budgetary policy. The government has already tried other measures such as corporate tax cuts and it has also expanded government expenditure to somewhat dangerous levels. While corporate tax cuts boosted profits for some companies, it hasn’t resulted in higher investment, and it won’t, until consumption picks up.
How can consumption be encouraged? One way would be to cut income tax rates. Another could be instructions to PSU banks to push their retail loans portfolio, perhaps by cutting personal loan rates. A third method would be to encourage deep discounts in e-commerce – this would reverse policy decisions in that sector. A fourth method could be to rationalise GST rates, pulling down items in the 28 percent list to the 18 percent level, and others.
It would be surprising if the Govt didn’t incorporate some policy such as the above and these would all impact consumption- dependent businesses positively. This would have to be backed up by talking up consumption, and by policy designed to create employment.
The average consumer is seeing a trend of high unemployment and also a low growth in per capita income for the employed. So even persons with savings are wary of committing themselves. Policy should be aimed at encouraging sectors that generate employment in the areas like real estate, construction and retail.
खपत पर जोर देने की आवश्यकता
शतरंज के प्रतिभाशाली खिलाड़ी और माहिर संगीतकार अक्सर जबरदस्त याद्दाश्त के मालिक होते हैं और याद रखने की उनकी क्षमता जादू से कम नहीं लगती। संगीतकार किसी भी धुन को केवल एक बार सुुनेगा और उसे ज्यों का त्यों बजा देगा। शतरंज की बिसात पर किसी भी खिलाड़ी को हजारों बाजियां एक-एक चाल के साथ याद रहती हैं। ये स्मृतियां किसी संदर्भ से जुड़ी होती हैं और विन्यास या डिजाइन से जुड़ी हैं। शतरंज के खिलाड़ी माहरों और प्यादों की चालों को एक आकृति या डिजाइन या पैटर्न की शक्ल में पहचानते और याद रखते हैं। अगर मोहरों को बिना किसी क्रम या पैटर्न के लगा दिया जाए तो खिलाड़ी उसे ठीक ढंग से याद नहीं रख सकते। संगीतकार धुनों को याद रखते हैं। अगर धुन के हिस्सों को क्रम के बगैर सुना दिया जाए तो उन्हें आसानी से याद नहीं रखा जा सकता।
जीडीपी का लगभग 60 फीसदी हिस्सा खपत से आता है और खपत गैर सरकारी गतिविधि का और भी बड़ा हिस्सा है। जीएसटी के आंकड़ों को खपत के दूसरे ज्ञात संकेतकों जैसे वाहन बिक्री, बिस्कुट बिक्री, माल ढुलाई, बिजली की खपत आदि से जोड़े ंतो यह धारणा और भी मजबूत हो जाती है कि खपत कम हो रही है। एक अनुमान है कि 2019-20 में खपत करबी 5-7 फीसदी की दर से बढ़ी, जबकि उससे पहले पूरे दशक में यह 20 फीसदी के करीब बढ़ती रही थी।
जीडीपी में वृद्धि की दर बढ़ाने के उद्देश्य से उठाए गए किसी भी नीतिगत कदम का लक्ष्य खपत में वृद्धि को बढ़ाना होना चाहिए। इसी को लक्ष्य बनाकर बजट तैयार किया जाना चाहिए और बजट से इतर सभी नीतियां भी इसी दिशा में होनी चाहिए। सरकार ने पहले काॅरपोरेट कर में कटौती जैसे दूसरे तरीके आजमाकर देख लिए हैं और उसने सरकारी व्यय को भी खतरनाक स्तरों तक पहुंचा दिया है। काॅरपोरेट कर में कटौती जैसे दूसरे तरीके आजमाकर देख लिए हैं और उसने सरकारी व्यय को भी खतरनाक स्तरों तक पहुंचा दिया है। काॅरपोरेट कर में कटौती का फायदा कुछ कंपनियों को हुआ और उनका मुनाफा बढ़ा, लेकिन इसकी वजह से निवेश बढ़ने की अपेक्षा पूरी नहीं होगी, जब तक खपत जोर नहीं पकड़ती है।
खपत को कैसे बढ़ाया जा सकता है? एक तरीका तो आयकर की दरों में कटौती करना होगा। दूसरा तरीका यह हो सकता है कि सरकारी बैंकों को व्यक्तिगत ऋण की ब्याज दरों में कटौती कर खुदरा ऋण पोर्टफोलियो बढ़ाने के लिए कहा जाए। तीसरा तरीका ई-काॅमर्स में भारीभरकम छूट को बढ़ावा देना होगा, लेकिन इसके लिए उस क्षेत्र में हुए नीतिगत फैसले वापस लेने हांेगे। चौथा तरीका जीएसटी की दरों को तर्कसंगत बनाना हो सकता है, जिसमें 28 फीसदी कर वाली सूची में शामिल वस्तुओं को 18 फीसदी कर वाली सूची में लाया जा सकता है। ऊपर बताए गए उपाय खपत पर निर्भर कारोबारी पर सकारात्मक प्रभाव डालेंगे और इन उपायों जैसी कुछ नीतियां बजट में शामिल नहीं होती हैं तो हैरत की बात होगी। इसके लिए खपत बढ़ाने के उपाय करने होंगे और रोजगार सृजित करने वाली नीति बनानी होगी।
औसत उपभोक्ता को इस समय भारी बेरोजगारी का माहौल दिख रहा है और जिनके पास रोजगार है, उनकी प्रति व्यक्ति आय में भी बहुत सुस्त वृद्धि हो रही है। इसलिए जिन लोगों के पास ठीकठाक बचत है, वे भी खर्च करने से हिचक रहे हैं। जो क्षेत्र रोजगार देते हैं, जिनमें रियल एस्टेट, निर्माण एवं रिटेल शामिल हैं, उनको बढ़ावा देने वाली नीतियाँ बनानी होंगी।