Ashok Agarwal - Vidya ply & board

Even existing industries are operating at a capacity of 25% to 30%, which explains the future of the new units itself


The period ahead is full of challenges. Industrialists who can withstand the ups and downs of the market will only be successful to operate. Smaller units or those with lower capacity will shut down on their own. Therefore, the industry is not excited but concerned with the licensing of the new units. This is what Ashok Agarwal, president of the Federation of Indian Industry and plywood manufacturer of UP, believes. What is the opinion of the existing industrialist about the government’s initiative to give licenses to new units in UP? Ashok Agarwal told Ply Insight that we must now proceed very tactfully.

New licenses will increase production capacity in UP

The most significant factor is- Demand and Supply. Mass Production is beneficial only if there is demand in the market. At the moment, the units are not working at full capacity. They are forced to shut down the production process during night, and units are not even working at full capacity during the daytime. That’s why their labor is underutilized. It is also true that installing units on newly issued licenses will take time. As the challenges are escalating, only strong units will be able to survive. The small units have no future, looking at the present scenario.

Is the new unit likely to cause problems for existing unit?

The middle class suffers the most. The lower class and upper class are on the agenda of the government, and the policies are formulated accordingly. Among existing units 70% are middle class, 10% are upper class and 20% are the lower class who work on a daily basis, produces every day and sell them for cash. Large companies also offer a discount of 5%-7% on cash payments. Thus, our money is either going to the lower class or big businesses. But the middle class is the hardest hit. That’s why I don’t think that a lot of factories will comes. If it happens, it will benefit the market, farmers, and workers. Presumably, units that are already working but are weak have to shut down. Our outstanding is stuck in the market. Either it goes to the big industry because there’s a discount, or it goes to the small unit operators. Our payment is delayed by 5 – 6 months.

Those who have invested in new units will set up them in any case?

Yes, they can. It can be 15 to 20%. There can be a scarcity of timber when these units will start operating. There is a high probability of an increase in the rates of raw materials. Peeling and saw mills may get installed initially. This may also put an increased load on middle-class factory operators. Although timber prices were fetching good prices in 2022, Plantations is also believed to take place in large quantities. Its results will be seen at the end of 2 years when this timber will be available in the market and it will be available abundantly. The growth of 109 and 110 poplar varieties is considered extremely good. It can make a huge difference in the market as well.

What is your perspective about the future?

There can be problems. That is why we have to proceed very tactfully. There may be issues with timber, labor, and the market. We are preparing ourselves for it. We have planned to set up our own nursery with the help of FRI, to make sure that we have good plants for the future. Work is in progress. So that, we are able to produce sufficient raw materials in our own fields. However, it requires a lot of resources, which, once again, would be out of reach for a middle-class industrialist. As far as labor and market is concerned, a similar strategy should be developed to deal with it. We will have to work harder at our own level. This is the only way to meet the challenges of the times ahead.

 


जो फैक्टरी पहले से चल रही है, वह ही 25 से 30 प्रतिशत क्षमता पर चल रही है, जिससे नई यूनिट का भविष्य समझ सकते हैं


आने वाला वक्त चुनौतियों वाला है। वह यूनिट संचालक ही चल पाएंगे जो बाजार के उतार चढ़ाव को सहन कर सकेंगे। जो छोटे होंगे या जिनकी क्षमता कम होगी, वह अपने आप ही बंद हो जाएंगे। इसलिए नए यूनिट के लाइसेंस से इंडस्ट्री उत्साहित नहीं बल्कि चिंता में हैं। यह मानना है भारतीय उद्योग संघ के अध्यक्ष और यूपी के प्लाईवुड निर्माता अशोक अग्रवाल का। यूपी में नए यूनिट को लाइसेंस देने की सरकार की पहल को लेकर वहां की मौजूदा इंडस्ट्री संचालक क्या सोचते हैं? इसी क्रम में प्लाई इनसाइट को अशोक अग्रवाल ने अपनी बातचीत में कहा कि अब बहुत सोच समझ कर आगे बढ़ना होगा।

यूपी में नए लाइसेंस से उत्पादन क्षमता बढ़ जाएगी

सबसे ज्यादा जरूरी है, डिमांड एंड सप्लाई, अब बाजार में यदि डिमांड होगी तो ही उत्पादन करने का फायदा है। अभी तो स्थिति यह है कि यूनिट पूरी क्षमता से चल ही नहीं रही है। रात के वक्त उत्पादन बंद है। दिन में भी यूनिट कम उत्पादन कर रही है। इसलिए उनकी लेबर के पास ही काम कम है। यह भी सही है कि जो नए लाइसेंस जारी हुए हैं, उन यूनिटों का लगने में भी समय लगेगा। इसलिए अब मजबूत यूनिट ही चल पाएगी। क्योंकि चैलेंज बढ़ रहे हैं। इसलिए छोटी यूनिटों का कोई भविष्य नजर नहीं आ रहा है।

नई यूनिट से क्या मौजूदा फैक्ट्री संचालकों को परेशानी आ सकती है?

बसे ज्यादा मध्यमवर्ग को ही परेशानी आती है। क्योंकि सरकार के एजेंडे में निम्न तबका और अपर कलास है। इनको ध्यान में रख कर ही पॉलिसी बनती है। अभी जो इकाईया है, इसमें 70 प्रतिशत मध्यम वर्ग दस प्रतिशत अपर क्लास और 20 प्रतिशत वह है जो हर रोज के हिसाब से काम करते हैं। इन्हें हम लोअर क्लास मान सकते हैं। यह हर रोज माल तैयार करते हैं। हर रोज नकद बेच देते हैं। इसलिए जो हमारा पेमेंट गया हैं या तो इनके काम आ रहा है, या फिर बड़ी कंपनी के काम आ रहा है। जो बड़ी कंपनियां है, नगद में पांच से सात प्रतिशत छूट प्रदान कर देती है। इसलिए जाहिर है हमारा पैसा इन दोनो के काम आ रहा है। लेकिन मिडिल सबसे ज्यादा परेशान है। इसलिए मुझे नहीं लगता, बहुत ज्यादा फैक्ट्रियां आएगी। यदि आती है तो इसका लाभ बाजार, किसान और मजदूर तीनों को होगा।यह माना जा सकता है कि जो पहले से यूनिट चल रहे हैं, लेकिन कमजोर है, वह बंद हो सकती है। हमारा तो बाजार से भुगतान ही नहीं आ रहा है। या तो बड़ी इंडस्ट्री के पास भुगतान जा रहा है, क्योंकि वहां छूट मिल रही है, या फिर छोटी यूनिट संचालकों को। हमारे पेमेंट में तो पांच से छह माह की देरी हो रही है।

जिन लोगों ने नई फैक्ट्रियों में इनवेस्ट कर दिया है, वह तो यूनिट लगाएंगे ही ?

हां वह लगा सकते हैं। यह 15 से 20 प्रतिशत हो सकते हैं। जब यह यूनिटें उत्पादन में आयेंगी तो निश्चित ही लकड़ी की दिक्कत आ सकती है। कच्चे माल के रेट बढ़ने की पूरी संभावना है। पीलिंग और आरा मशीन ज्यादा लग सकती है।इसका भी सारा लोड मध्यम श्रेणी के फैक्ट्री संचालकों पर पड़ सकता है। हालांकि 2022 में लकड़ी की अच्छी कीमत मिल रही हैं, इसलिए यह माना जा रहा है कि पौधारोपण भी बड़ी मात्रा में हो रहा है। इसका परिणाम दो साल के बाद सामने आएंगे। दो साल के बाद यह लकड़ी बाजार में आना शुरू हो जाएगी। तब लकड़ी ठीक ठाक उपलब्ध होगी। 109 व 110 किस्म के पोपलर की ग्रोथ काफी अच्छी मानी जा रही है। इसका भी बाजार में खासा अच्छा फर्क पड़ सकता है।

भविष्य कैसा रहने वाला है? आप क्या समझते हैं?

देखिए दिक्कत तो आ सकती है। इसलिए अब बहुत सोच समझ कर आगे बढ़ना होगा। लकड़ी, लेबर और बाजार तीनों की समस्या आ सकती है। इसकी तैयारी हम अपने स्तर पर कर रहे हैं। एफआरआई की मदद से हम खुद की नर्सरी तैयार करने जा रहे हैं। जिससे भविष्य के लिए अच्छे पौधे मिले। इसे लेकर काम चल रहा है। जिससे कच्चे माल का एक बड़ा हिस्सा हम स्वयं अपने खेतों में तैयार कर सकें। हालांकि इसके लिए बहुत ही अधिक संसाधन की आवश्यकता होगी जोकि, फिर से कहुंतो मध्यम श्रेणी उद्योगपति की पहुंच में नहीं होगा। जहां तक लेबर और बाजार की बात है, तो इससे निपटने के लिए भी इसी तरह की रणनीति बनाई जाएगी। खुद अपने स्तर पर मेहनत और कड़े प्रयास करने होंगे। तभी आने वाले समय की चुनौतियों से निपटा जा सकता है।