Balancing the Environment is Proving to be the Most Difficult Step, for the Industrialist
- December 30, 2021
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With the onset of winter, the voice against pollution starts raising everywhere. As pollution levels rise in Delhi, the two sectors agriculture and industry are the most targeted. Court, government, pollution control board and officials, everyone becomes strict. The industry has to bear the brunt of this the most. The same thing is happening this time as well. Industrialists are facing the most trouble in the capital and NCR region due to increasing pollution in Delhi.
The situation remains the same this time also. Pollution levels have increased in Delhi and NCR. The result has fallen on the industry for the first time. A letter was issued by the Central Pollution Control Board on November 27, expressing objection to the non-fulfillment of the instructions regarding pollution control. The highest concern in the letter was expressed on the use of generator sets.
The possibilities of shutting down the industry have arisen after such strictness. The industrialist said that the industry is already going through many obstacles due to Covid. Now only the industry is being brought in the high level of strictness regarding pollution.
Generator is not allowed to run when the power goes out. Provision has been made for imposing a fine ranging from ten lakh rupees to one crore rupees. Now if the power goes out during the day, the industrialist will wait for the electricity to come. No matter how late the electricity comes. No matter how much damage is done to the factory during this period.
Industrialist are unable to work at all In this way. The industrialists of Karnal, Ambala, Yamunanagar and Punjab are also scared due to strictness in Delhi NCR. They are worried that right now this strictness is in Delhi and NCR, one day this strictness will reach them too. What will happen then? This question is standing in front of them.
Industrialists say that there is no concrete policy in the name of pollution. Sometimes a decree is issued that instead of normal fuel, gas will be used. It is not checked that how the old industry can use gas. How is it possible for them to use gas? How much would it cost? How will this cost be met?
Bhim Singh Rana, president of The Panipat Dyers Association, said that the gas connection is only for the new industry. But notices were also issued to old industries in Panipat to get gas connections. He told that when he raised his voice on this, the member secretary of Pollution Control Board S Narayan also clarified it. This shows how serious the system is regarding the industry.
Industrialists are also concerned that they are not covered in the policy. At least Govt. should also ask them before passing any regulation. It is not that we do not want to do our part in eliminating pollution. But it is also not right to hold them responsible in this way.
Delhi NCR Plywood Manufacturers Association has written a letter to Deputy Chief Minister Dushyant Chautala demanding that they be allowed to use wood as fuel in the industry. Association President Vikas Khanna Treasurer Sunil Goyal and General Secretary Amrit Goyal said that they are facing a lot of trouble due to the instructions of the Pollution Control Board. Because the order to run the industry on gas is proving very expensive for them. They cannot afford it. So they should be allowed to burn wood as fuel. Agro forestry will also benefit from this, along with this waste wood will also be used properly. Therefore, the industry should be allowed to run on bio fuel.
सबसे मुश्किल भरा कदम साबित हो रहा है, इंडस्ट्रलिस्ट के लिए पर्यावरण में संतुलन साधना
सर्दी आते ही प्रदूषण को लेकर हर तरफ आवाज उठाना शुरू हो जाती है। दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बढ़ते ही दो सेक्टर कृषि और इंडस्ट्री को सबसे ज्यादा निशाने पर लिया जाता है। कोर्ट, सरकार, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और अधिकारी हर कोई सख्त हो जाता है। इसका सबसे ज्यादा खामियाजा इंडस्ट्री को भुगतना पड़ता है। इस बार भी यही हो रहा है। दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण से राजधानी और एनसीआर एरिया में सबसे ज्यादा मुश्किल इंडस्ट्रियलिस्ट को आ रही है।
इस बार भी ऐसे ही हालत बने हुए हैं। दिल्ली और एनसीआर में प्रदूषण का स्तर बढ़ गया है। नतीजा पहली गाज इंडस्ट्री पर गिरी है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से 27 नवंबर को एक पत्र जारी कर प्रदूषण नियंत्रण को लेकर दी हिदायत को पूरा न करने पर ऐतराज जताया गया था। पत्र में सबसे ज्यादा चिंता जनरेटर सेट के प्रयोग पर जताई गई थी।
इस तरह की सख्ती के बाद इंडस्ट्री को बंद करने के आसार पैदा हो गए हैं। इंडस्ट्रलिस्ट ने बताया कि पहले ही कोविड की वजह से इंडस्ट्री कई दिक्कतों से गुजर रही है। इस पर अब प्रदूषण को लेकर बरती जा रही सख्ती की जद में सबसे ज्यादा इंडस्ट्री को ही लाया जा रहा है।
बिजली जाने पर जनरेटर नहीं चला सकते। चलाया तो दस लाख रुपए से एक करोड़ रुपए तक का जुर्माना लगाया जाने का प्रावधान कर दिया गया है। अब यदि दिन के वक्त बिजली चली जाए तो इंडस्ट्रलिस्ट बिजली के आने का इंतजार करेगा। चाहे बिजली कितनी भी देरी से आए। इस दौरान फैक्टरी में कितना भी नुकसान क्यों न हो जाए। यह तर्क संगत नहीं है।
इस तरह से तो वह काम ही नहीं कर पाएंगे। इधर दिल्ली एनसीआर में सख्ती से करनाल, अंबाला, यमुनानगर और पंजाब के इंडस्ट्रलिस्ट भी डरे हुए है। इनकी चिंता है कि अभी यह सख्ती दिल्ली व एनसीआर में हैं, एक न एक दिन यह सख्ती उन तक भी पहुंच जाएगी। फिर क्या होगा? यह सवाल उनके सामने मुंह बाए खड़ा है।
इंडस्ट्रलिस्ट का कहना है कि प्रदूषण के नाम पर ठोस पॉलिसी नहीं है। कभी फरमान जारी कर दिया जाता है कि ईंधन की जगह गैस प्रयोग की जाएगी। यह नहीं देखा जाता कि जो पुरानी इंडस्ट्री है, वह किस तरह से गैस का प्रयोग कर सकती है। क्या गैस का प्रयोग उनके लिए संभव है। इस पर कितना खर्च आएगा। यह खर्च कैसे पूरा होगा?
दी पानीपत डायर्स एसोसिएशन के प्रधान भीम सिंह राणा ने बताया कि गैस कनेक्शन सिर्फ नई इंडस्ट्री के लिए है। लेकिन पानीपत में पुरानी इंडस्ट्री को भी गैस कनेक्शन लेने के नोटिस जारी किए गए। उन्होंने बताया कि जब इस पर उन्होंने आवाज उठाई तो प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मेंबर सेक्रेटरी एस नारायण ने इसे स्पष्ट भी किया। इससे पता चल रहा है कि इंडस्ट्री को लेकर सिस्टम कितना संजीदा है।
इंडस्ट्रियलिस्ट को इस बात की भी चिंता है कि पॉलिसी में उन्हें शामिल नहीं किया जाता। कम से कम एक उनसे भी पूछ लेना चाहिए कि क्या हो सकता है। ऐसा नहीं है कि हम प्रदूषण को खत्म करने में अपना योगदान नहीं देना चाहते। लेकिन इस तरह से उन्हें इसके लिए जिम्मेदार ठहराना भी सही नहीं है।
दिल्ली एनसीआर प्लाईवुड मैन्युफैक्चर एसोसिएशन ने डिप्टी चीफ मिनिस्टर दुष्यंत चैटाला को एक पत्र लिख कर मांग की कि उन्हें इंडस्ट्री में ईंधन के तौर पर लकड़ी के प्रयोग की इजाजत दी जाए। एसोसिएशन के प्रेसिडेंट विकास खन्ना ट्रेजरार सुनील गोयल और जनरल सेक्रेटरी अमृत गोयल ने बताया कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के निर्देशों की वजह से उन्हें खासी दिक्कत आ रही है। क्योंकि गैस पर इंडस्ट्री चलाने का आदेश उनके लिए खासा महंगा साबित हो रहा है। इसे वह वहन नहीं कर सकते हैं। इसलिए उन्हें ईंधन के तौर पर लकड़ी जलाने की इजाजत दी जाए। इससे एग्रोफोरेस्ट्री को भी लाभ होगा, इसके साथ ही वेस्ट लकड़ी का सही से उपयोग भी हो सकेगा। इसलिए बायो फ्यूल पर इंडस्ट्री चलाने की इजाजत दी जाए।