‘Cash-lending’ business will be closed in the markets
- March 7, 2019
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Second Demonetization: ‘Cash-lending’
business will be closed in the markets
Ordinance prohibiting unregulated deposit has stirred markets and small traders and it is believed that there will be many types of informal business transactions in its purview, which have not yet been in government records. Although the advances given for the supply of goods or services in the Ordinance have been kept separate, but there is still a deep difference in the definition of unregulated deposit and the government is seeking cleanliness.
Many trade organizations have asked the Ministry of Finance to clarify the ‘By the Way of Business’ for the unregulated deposit under Section 2 (17) of Ordinance. Business sources say that non-interest mutual transactions are commonplace for business needs in the markets, although it is also used to hide income. On emergency requirements, traders carry millions of transactions on informal agreements like verbal or dowry-slip. Deposit in the committees is also a common trend. All such methods will be in the purview of this ordinance, for which there can be imprisonment up to 10 years or up to 25 crores of fine.
CA Rakesh Gupta said, “In the Standing Committee report, only the public deposit was said, whereas in Section 2 (6) of Ordinance, except for a relationship, every person, proprietorship, firm, LLP, company, trust are included. I think it will have an effect on many types of loans, advances and transactions prevailing in common business. This is the reason why common businessmen have a nervousness about it ‘.
Many businessmen raise money from the market on a large scale and return in the same financial year, so that the transaction is not recorded in their account. The law will work to stop these dead-entries. Tax expert Ritul Patwa says, “As long as there is no further clarification on this, we are convinced that the purpose of the government is to regulate Ponzi schemes or cash hoardings, not genuine business transactions. The scheme also regulates the deposit holder, it is a safety for those who pay the money. ‘
According to him, if someone is giving money to the business, then it is necessary that he takes interest on it and deduct TDS and submit it. The person concerned will also show this in their filing. In this way, every deposit will be in the eyes of the government, but if someone gives advancement for supply and if the order is canceled or the amount is saved then he has to return it in the prescribed time limit. However, such advances have been excluded from the ordinance.
Courtesy: Navbharat times
‘दूसरी नोटबंदी’: बाजारों में बंद होगा ‘नकद-उधार‘ का कारोबार
अनरेम्युलेटेड डिपाॅजिट पर पाबंदी लगाने वाले अध्यादेश से बाजारों और छोटे कारोबारियों में हड़कंप मचा है और माना जा रहा है कि इसके दायरे में कई तरह के अनौपचारिक बिजनेस लेन-देन आएंगे, जो अब तक सरकारी रेकाॅर्ड में नहीं आतेे थे। हालांकि आॅर्डिनेंस में किसी वस्तु या सेवा की सप्लाई के लिए दिए गए एडवांस को अलग रखा गया है, लेकिन अब भी अनरेग्युलेटेड डिपाॅजिट की परिभाषा पर गहरा मतभेद है और सरकार से सफाई मांगी जा रही है।
कई व्यापार संगठनों ने वित्त मंत्रालय से सेक्शन 2 (17) के तहत अनरेग्युलेटेड डिपाॅजिट के लिए ‘बाय द वे आॅफ बिजनस‘ को और स्पष्ट करने को कहा है। व्यापारिक सूत्रों का कहना है कि बाजारों में कारोबारी जरूरतों के लिए बिना ब्याज आपसी लेन-देन आम बात है, हालांकि इसका इस्तेमाल इनकम छिपाने के लिए भी किया जाता है। आपात जरूरतों पर ट्रेडर मौखिक या हुंडा-पर्ची जैसे अनौपचारिक करार पर भी लाखों की लेन-देन करते हैं। कमेटियों में जमा भी एक आम चलन है। ऐसे सभी तरीके इस आॅर्डिनेंस के दायरे में होंगे, जिनके लिए 10 साल तक कैद या 25 करोड़ तक जुर्माना हो सकता है।
सीए राकेश गुप्ता ने बताया, ‘स्टैडिंग कमेटी की रिपोर्ट में सिर्फ पब्लिक डिपाॅजिट की बात कही गई थी, जबकि आॅर्डिनेंस के सेक्शन 2 (6) में रिश्ते को छोड़कर हर व्यक्ति, प्राॅपराइटरशिप, फर्म, एलएलपीए कंपनीए ट्रस्ट शामिल हैं। मेरे ख्याल से आम बिजनेस में प्रचलित कई तरह के लोनए अडवांस और लेन-देन पर इसका असर होगा। यही कारण है कि आम कारोबारियों में इसे लेकर घबराहट है‘।
कई कारोबारी बड़े पैमाने पर मार्केट से पैसा उठाते हैं और उसी वित्त वर्ष में लौटा देते हैं, जिससे यह ट्रांजैक्शन उनके अकाउंट में दर्ज नहीं होता। कानून इन डेड-एंट्रीज को रोकने में कारगर होगा। टैक्स एक्सपर्ट रितुल पटवा कहते हैं, ‘जब तक इस पर और स्पष्टीकरण नहीं आ जाता हम, मानकर चल रहे हैं कि सरकार का मकसद सिर्फ पोंजी स्कीमों या कैश होर्डिंग को रेगुलेट करना है, न कि जेनुइन कारोबारी लेन-देन को। स्कीम भी सिर्फ डिपाॅजिट लेने वाले को रेगुलेट करती है, पैसा देने वालों के लिए यह एक सेफ्टी है।‘
उनके मुताबिक अगर कोई किसी को बिजनस के लिए पैसा दे रहा है, तो जरूरी है कि वह उस पर ब्याज ले और टीडीएस काटे और जमा कराए। संबंधित व्यक्ति भी अपनी फाइलिंग में इसे दर्शाएगा। इस तरह हर डिपाॅजिट सरकार की नजर में होगी, लेकिन अगर किसी ने सप्लाई के लिए अंडवास दिया और आर्डर कैंसल हो गया या बच गई तो उसे भी निर्धारित समय-सीमा में लौटाना होता है। हालांकि, अध्यादेश में इस तरह के एडवांस को बाहर रखा गया है।
सौजन्यः नवभारत टाइम्स