Climate Change and Smart Agriculture Practices
- January 24, 2022
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The Intergovernmental Panel on Climate Change (IPCC) is the group of climate scientists who together evaluate periodically the consensus among experts of the effects and status of climate change. Its Sixth Assessment Report has just been released, and it makes for grim reading for the world in general and for India in particular. Since the fifth report, the consensus has firmed up, and the IPCC reports that the evidence is now “unequivocal” that anthropogenic- human caused- warming is in effect, and that temperatures have already risen 1.1 degrees Celsius since the Industrial Revolution, when humans increased the emission of greenhouse gases such as carbon dioxide into the atmosphere. The report has specific warming faster than the global average, and snow cover in the Himalayas is decreasing.
India is among the countries most exposed to the effects of global warming. Its coastline is under threat from rising sea levels and an increasing number of cyclones and other extreme weather events; its hilly regions are exposed to an increasing number of landslides. Uttarakhand and Himachal Pradesh have already seen loss of life in landslides this season, and as glacial runoff increases and cloud bursts become more intense, landslide risk will increase. For India’s densely populated plains, the greatest danger will be heat and humidity stress. The number of days with temperatures over 40 degrees Celsius will increase proportionately with the average temperature. For those who conduct manual labour in the sun-still a large proportion of India’s workforce-this presents a real threat to life.
Policy responses must not be limited to collecting better data about the effects of climate change on Indian lives and livelihoods. Greater action is needed both on mitigation of carbon emissions and adaptation to warming. On mitigation, technological and financial factors have already scaled up India’s transition to renewable energy. Current cropping patterns and agricultural practices also contribute greatly to India’s carbon footprint, and over the next decade they will have to be addressed, alongside greater reforestation to serve as traps for carbon.
Adaptation will need more out-of-the-box thinking. Climate –smart agriculture is already being trialled across the country, but thechanging weather patterns warned of by the IPCC report mean farmers will need access to the latest advice and methods. The revival of the agricultural extension system is overdue, and is the only weapon in India’s arsenal when it comes to adaptation in the primary sector. Climate change has to be at the heart of planning and policy across multiple domains going forward.
जलवायु परिवर्तन और उचित कृषि प्रणाली
जलवायु परिवर्तन पर अंतरसरकारी पैनल (आईपीसीसी) जलवायु वैज्ञानिकों का समूह है जो साथ मिलकर समय-समय पर जलवायु परिवर्तन की स्थिति और उसके प्रभाव को लेकर विशेषज्ञों के बीच बनी सहमति का आकलन करते हैं। समूह की छठी आकलन रिपोर्ट हाल ही में जारी की गई है और इसमें पूरे विश्व और खासकर भारत को लेकर बहुत सकारात्मक बातें नहीं कही गईं हैं। पांचवीं रिपोर्ट के बाद सहमति मजबूत हुई है और आईपीसीसी रिपोर्ट के अनुसार इस बात के सुस्पष्ट प्रमाण हैं कि तापवृद्धि मानवजनित है और औद्योगिक क्रांति के बाद मनुष्यों की गतिविधियों से हुआ गैसों का उत्सर्जन बढ़ने के बाद से तापमान 1.1 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है। रिपोर्ट में दक्षिण एशिया और भारत के लिए खास चेतावनी हैं। हिंद महासागर वैश्विक औसत से अधिक तेजी से गर्म हो रहा है और हिमालय में बर्फ की चादर पतली हो रही है।
भारत उन देशों में शामिल है जिनके सामने वैश्विक तापवृद्धि के असर की आशंका सबसे ज्यादा है। उसके तटीय इलाके बढ़ते जलस्तर के कारण खतरे में है और चक्रवात तथा अन्य अतिरंजित मौसम की घटनाएं भी ज्यादा हो रही हैं . पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन तेजी से बढ़ रहा है। उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में इस वर्ष भूस्खलन से कई लोगों की जान जा चुकी है और बादल फटने तथा ग्लेशियर टूटने की घटनाएं तेज हुई हैं। इससे भूस्खलन का जोखिम और बढ़ेगा।
भारत के घनी आबादी वाले मैदानों को देखते हुए गर्मी और आर्द्रता बड़ा खतरा हैं। 40 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा गर्म दिनों की तादाद बढ़ेगी। देश के श्रमिकों में ऐसे लोग अभी भी काफी हैं जो धूप में शारीरिक श्रम करते हैं। उनकी जिंदगी के लिए यह बड़ा खतरा है।
नीतिगत प्रतिक्रिया भारतीयों के जीवन और आजीविका पर जलवायु परिवर्तन के आंकड़ों की सही तस्वीर सामने लाने तक सीमित नहीं रहनी चाहिए। उत्सर्जन कम करने के क्षेत्र में कड़े कदम जरुरी हैं। उत्सर्जन की बात करें तो नवीकरणीय ऊर्जा की ओर बदलाव को लेकर तकनीकी और वित्तीय पहल जारी हैं। मौजूदा फसल संबंधी और कृषि व्यवहार भी कार्बन उत्सर्जन की बड़ी वजह है। अगले एक दशक में इन्हें भी हल करना होगा। इसके अलावा बड़े पैमाने पर पौधरोपण करना होगा।
बढ़ते तापमान के साथ समायोजन की दिशा में भी पहल करनी होगी और इसके लिए नई सोच की आवश्यकता होगी। जलवायु परिवर्तन की दृष्टि से उपयुक्त कृषि को लेकर पहले ही देश भर में काम हो रहा है। परंतु जैसी कि आईपीसीसी ने चेतावनी दी है लगातार बदलते मौसम के कारण किसानों को उचित सलाह और तरीके सिखाने होंगे। कृषी प्रणाली में नई जान फूंकनी होगी। भविष्य की नीतियों और नियोजन में जलवायु परिवर्तन को मूल में रखना होगा।