Defending the pvt sector
- February 12, 2021
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Replying to the motion of thanks on the president’s address in the Lok Sabhs, Prime Minister Mr. Narendra Modi asserted that abusing wealth creators for votes was no longer acceptable, and that the bureaucracy should take the backseat in the running of factories and business. These are important remarks and should guide the broader approach of the government. There is no denying that the country needs wealth creators. It’s only when the private sector is allowed to flourish will jobs be created and the government will have the required resources to discharge its obligations. Redistribution cannot happen without wealth creation.
The government tried the model of public-sector dominance and excessive state control for several decades after Independence, but it did not yield desired outcomes. India moved to a higher-growth trajectory only after the economy was opened up to the private sector and greater competition in the 1990s.
Encouraging a pro-market system where the most capable entrepreneurs succeed as against the best networked is the only way to go. Potential monopolies and concentration of power in the private sector with state support will undermine trust and growth. A strong and stable regulatory environment will help attract investment, create jobs, boost output and demand, and enhance the overall wealth of the nation. Further, the government needs to invest in the judicial system for the smooth functioning of the private sector. Most importantly, steps have to be taken on improving India’s track record of enforcing contracts. This is one index on which the country has performed extremely poorly over the years and ranked 163rd in the World Bank’s Ease of Doing Business rankings.
निजी क्षेत्र का बचाव
लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण के धन्यवाद ज्ञापन का उत्तर देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जोर देकर कहा कि वोट जुटाने के मकसद से संपत्ति तैयार करने वालों को गाली देना अब स्वीकार्य नहीं रहा और कारखानों तथा कारोबार संचालन के मामले में अब अफसरशाही को पीछे हट जाना चाहिए। ये टिप्पणियां अहम हैं और सरकार के व्यापक रूख का निर्देशन इन्हीं के जरिये होना चाहिए। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि देश को संपत्ति तैयार करने वालों की आवश्यकता है। केवल उसी स्थिति में निजी क्षेत्र फल-फूल सकेगा, रोजगार तैयार हो सकेंगे और सरकार के पास अपने दायित्व निभाने के संसाधन रहेंगे। बिना संपत्ति तैयार किए पुनर्वितरण नहीं हो सकता।
आजादी के बाद कई दशकों तक सरकारी क्षेत्र के दबदबे और अत्यधिक सरकारी नियंत्रण वाला माॅडल अपनाया गया लेकिन इससे वांछित परिणाम नहीं हासिल हुए। भारत को उच्च वृद्धि दर तभी हासिल हुई जब सन 1990 के दशक में अर्थव्यवस्था को निजी क्षेत्र के लिए खोला गया और प्रतिस्पर्धा बढ़ी।
ऐसी बाजार समर्थक व्यवस्था को बढ़ावा देना ही एकमात्र रास्ता है जहां सर्वाधिक सक्षम उद्यमी सफल हों। संभावित एकाधिकार और सरकारी समर्थन से निजी क्षेत्र में शक्ति का केंद्रीकरण विश्वास और वृद्धि दोनों को प्रभावित करेगा। मजबूत और स्थिर नियामकीय माहौल निवेश जुटाने में मदद करेगा, रोजगार सृजित करेगा, उत्पादन और मांग बढ़ाएगा तथा देश की समग्र संपत्ति में इजाफा करेगा। निजी क्षेत्र के सुचारु कामकाज के लिए आगे चलकर सरकार को न्याय व्यवस्था में भी निवेश करना होगा। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अनुबंध प्रवर्तन के मामले में भारत का प्रदर्शन बेहतर करने के लिए कदम उठाने होंगे। यह एक ऐसा सूचकांक है जहां देश का प्रदर्शन बीते वर्षों में अत्यधिक खराब रहा है। विश्व बैंक की कारोबार सुगमता रैकिंग में भी हम इस क्षेत्र में 163वें स्थान पर रहे।