President, All India Plywood Mfg. Ass.

Emm Dee Plywood Industries


Accept challenges by adopting advanced machineries and modern technology



 

Current situation in plywood
There is hardly a difference of five to ten rupees in the production and administration cost between a branded company and non-brand plywood manufacturer. But difference in the selling rate is as much as R40-50. Is it due to quality difference or marketing excellence or both, we should have to think deeply.

Every plywood manufacturer has to be more attentive, not to be trapped in financial crisis. To overcome the challenges one have to manage good marketing as well as diversified products in his arm. In non branded segment also some of our follow industrialist are working smartly in different and beautiful way, and are able to sell their products at reasonable good price, standing between the branded and non branded company (of Yamunanagar). They are marketing their product magnificently. With hard work and brilliance, they are trying to fill the vacuum.

Each & every industry in Yamunanagar has a very humble start. We have also started two decades back on a very tiny scale. That was the time when dealers respected industry. Rates were very reasonable. We ourselves managed to produce ply with sun dry core. Glue was procured from the market. By adopting new technology slowly and continuously, we have achieved a satisfactory position in the industry.

The plywood industry had a glorious past. Due to over production and growing competition from MDF and particle board, industry is facing crunch of the market. Bold steps should be taken to put new energy in plywood industry. Everyone has to work collectively to sustain.

This is the time when every manufacturer have to adopt modern technology with advanced machines. Only then we can get recognition and good price for our product in the market.

Timber Size
From very beginning considering girth above 18” is standard practice in trading for ‘over’ size of timber. VIZ:

Poplar Wood- Sokhta 9” to 14”
– Under 14” to 18”
– Over 18” & up
Eucalyptus – Under 14” to 18”
– Over 18 ” & up

From quite some time we are compromising on the girth, which is making the purchases more costly than the actual rates. The crucial topic was discussed in the meeting of AIPMA and all state presidents were requested to call upon the Aarthiyas to bring it back on the old and correct pattern. Association is trying its best to bring everyone in consensus and hope to find an amicable solution as early as possible.

Timber availability and plantation of agri wood
As long as the farmer gets something extra than their routine crops, they will remain motivated to plant long rotation trees for plywood. Prices of poplar and Eucalyptus is on bullish mode. This is reflecting in the increasing area of plantation currently. Manipulation of the rates from Yamunanagar ultimately affects countrywide. (Including UP and Punjab)

The prospects of the timber market right now is very good. Demand is increasing with the production of plywood. Milia Dubia will take time to replace the existing timbers. Therefore, the demand for popular and Eucalyptus will remain upwards. Not long ago when production was marginal, and timber became surplus, the rates of timber were came down desperately. But the chances of such type of crisis is very slim, Because of the manifold increase in production capacity in the meantime. Therefore, there is no expectation of any slump in timber prices in near future.

Scarcity will be felt by is us for some more months but certainly there is strong possibility that farmers will be attracted for plantation of industrial trees because they will get extra profit margin. If it will be less profitable, he will turn to sugarcane and other crops by default.

Imported face veneer and effect on costing
There is a need to reduce the basic cost of the face.

We can use popular, Boarpat, Kadam Mekahi face which can be developed and produced indigenously. The face of milia dubia has also great prospects. We can save our foreign currency by cutting down our imports by using indigenous face. Plywood with indigenous face will save extra bucks in production cost benefitting consumer.

Suggestions to industry
I would like to draw attention of all industrialists on two important deficiencies in the industry. We have surrendered our factory brands, by promoting the brands of distributor. Secondly, for the benefit and satisfaction of distributor, putting IS 710 on the general commercial ply of IS 303.

Industrialist and consumer, both are loosing from these two discrepancies, especially the manufacturer.

Every industrialist is requested to release himself gradually, from the clutches of market forces, by strengthening themselves. More importantly, discuss the matter openly and widely and help each other in bigger interests of the industry.



आधुनिक तकनीक और उन्नत मशीन से उच्च गुणवत्ता के प्लाईवुड उत्पाद से ही आने वाले समय की चुनौतियों से निपटा जा सकता हैै।


प्लाईवुड में आज की परिस्थितियां
ब्रांडेड कंपनी और नान ब्रांड प्लाईवुड निर्माता के कुल उत्पादन और प्रबन्धन लागत में पांच से दस रुपए का अंतर होता है। लेकिन इन के विक्रय मूल्य में 40-50 रु का फर्क है। विचारनीय है कि यह फर्क क्वालिटी का है या मार्केटिंग का, या दोनों का?

इसलिए हर प्लाईवुड संचालक को सचेत होना होगा। यदि ऐसा नहीं हुआ तो प्लाईवुड संचालक भारी आर्थिक दिक्कतों में फंस सकते हैं। जो सही मार्केटिंग करेगा, जो डाइवर्सिफिकेशन में जाएगा, वही युनिट संचालक खुद को इन चुनौतियों से पार पा सकता है। नाॅन ब्रांडेड में भी कुछ लोग अलग एवं सुन्दर तरीके से काम कर रहे हैं, वह भी अच्छे दाम पर अपना माल बेच पा रहे हैं। वह ब्रांडेड और (यमुनानगर के) नान ब्रांडेड कंपनी के बीच में आ खड़े हुए हैं। इनकी मार्केटिंग का तरीका भी अलग है। मेहनत और समझदारी से उन्होंने इस खालीपन (वेक्यूम) को भरने की कोशिश की है।



हर उद्योग धीरे धीरे तरक्की करता है। हमने स्वयं बहुत छोटे स्तर से काम शुरू किया था। वह दौर भी ऐसा था जब व्यापारी उद्योग को मान-सम्मान देते थे। तब प्रोडक्सन कम थी। रेट बहुत ही रिजनेबल थे। हम स्वयं सन ड्राई से पत्ता सुखाते थे। ग्लू बाजार से लेते थे। धीरे-धीरे संयमपूर्वक नयी तकनीक अपनाते हुए हमने एक संतोषजनक मुकाम हासिल कर लिया।

एक समय तक प्लाईवुड उद्योग ने खूब तरक्की की। अब इसमें ठहराव सा आ गया है। हमें अब यह सोचना होगा कि प्लाईवुड उद्योग में नयी ऊर्जा लाने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए। यह व्यक्तिगत तौर पर भी और सामूहिक तौर पर भी सोचना होगा। सभी को मिल कर काम करना होगा। तभी हम खुद को बनाए रख सकते हैं।

वक्त आ गया कि हर युनिट संचालक को अब उन्नत मशीने और आधुनिक तकनीक अपनाना होगा। तभी उन्हें अपने उत्पाद की बाजार में पहचान और अच्छे दाम मिल सकते हैं। और यह बहुत आवश्यक है।

कच्ची लकड़ी की साइज में दिक्कत

लकड़ी में शुरू से यह धारा चलती आ रही है, जिसमें 18’’ से उपर की गोलाई को ओवर में लेने का रिवाज है। मसलनः

Poplar Wood- Sokhta 9” to 14”
– Under 14” to 18”
– Over 18” & up
Eucalyptus – Under 14” to 18”
– Over 18 ” & up

पिछले कुछ समय से प्रचलित और उचित धारा से अलग घटी हुई गोलाइयों पर काम हो रहा है। जिसकी वजह से जिन रेटों पर खरीदी हो रही है, असल में उद्योग को वह उससे कहीं अधिक महंगी पड़ रही है। एआईपीएमए की बैठक में भी इस बारे में चर्चा की गयी थी और सभी प्रदेशाध्यक्षों द्वारा संबंधित आढ़तीयों से चर्चा कर इसे वापस पुराने ढ़र्रे पर लाने का प्रयास करने का आह्वान किया गया था। उम्मीद है जल्द ही इसे सही करने के लिए आढ़ती और किसानों से और भी विचार-विमर्श कर के सहमति बन पाए।

कच्ची लकड़ी की उपलब्धता

किसान को जब तक पैसा मिलेगा वह उत्साहित रहेगा। पापुलर और सफेदे के दाम लगातार बढ़ रहे हैं। इसका असर प्लांटेशन पर भी दिख रहा है। प्लांटेशन भी लगातार बढ़ रही है। यमुनानगर से रेट बढ़ने की शुरुआत होती है। इसका असर पंजाब व यूपी पर भी पड़ता है।

अभी लकड़ी के बाजार की संभावना अच्छी है। क्योंकि प्लाईवुड में लकड़ी की जरूरत है। मिलिया को आने में वक्त लगेगा। इसलिए पॉपुलर और सफेदे की डिमांड बनी रहेगी। कुछ समय पहले जब यूनिटें कम थी, और लकड़ी ज्यादा हो गई थी। तब लकड़ी के रेट बहुत नीचे आ गए थे। अब ऐसा होने की संभावना बहुत कम हैं। क्योंकि युनिट बहुत ज्यादा हो गए हैं और कुल उत्पादकता में बढ़ोत्तरी हुई है इसलिए लगता नहीं कि लकड़ी की कीमतंे निचे आएगी।

अभी कुछ महिने दिक्कत के अवश्य हैं लेकिन वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए यह भी निश्चिीत है कि किसान इन औद्योगिक वृक्षारोपण की ओर अधिक से अधिक आकिर्षत होंगे क्योंकि उसे दूसरी फसल से अधिक मुनाफा होगा। यदि मुनाफा नहीं मिलेगा तो वह गन्ने और दूसरी फसलों की ओर मुड़ सकता है।

आयातित फेस विनियर का विकल्प

फेस पर खर्च कम करने की जरूरत है।

हम पापुलर, कदम, बोरपात, मेकाई का फेस इस्तेमाल कर सकते हैं, जिन्हें देश में विकसीत और उगाया जा सकता है। मिलीया डुबीया से भी फेस उत्पादन की अच्छी संभावना है। इसके उपर भी विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। स्थानीय फेस के इस्तेमाल से हम किमती विदेशी मुद्रा की बचत कर सकते हैं। स्थानीय फेस के इस्तेमाल करने से उत्पादन लागत में होने वाले बचत से अंततः उपभोक्ता भी लाभान्वित होंगे।

उद्योग के लिए सुझाव

काफी समय से चली आ रही दो विशेष कमीयों की ओर, पूरे उद्योग जगत का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं। पहली, अपनी फैक्ट्री के बजाय, वितरक के ब्रान्ड से, माल बेचने की धारा हमने बना ली है। और दुसरी साधारण IS303 के माल पर IS710 लगाकर, वितरक को खुश करने की कोशिश कर रहे हैं।

इन दोनों धाराओं से फैक्ट्री और उपभोक्ता दोनों का नुकसान हो रहा है। और इस वजह से फैक्ट्रीयां व्यापकता से पिछड़ रही हैं।

सभी उद्योगपतियों से मेरा आग्रह है कि, अपने आपको, धीरे-धीरे मजबुत करते हुए, इस खाई से बाहर निकालें। इस विषय की खुलकर आपस में चर्चा करें और उद्योग के विकास के लिए, एक दुसरे का सहयोग करें।