Rapid strides in digital payments notwithstanding, the Indian economy will likely remain cash-reliant for years to come.

After growing at over 20 per cent for most of 2020, growth of currency in circulation (CIC) fell to 8.5 per cent as of October 29 this year, reveals the Reserve Bank of India (RBI) data.

The reason for s steep rise in currency last year was due to uncertainties related to the Covid-19 pandemic. People chose to hoard cash to meet exigencies.

The outstanding stock of currency now stands at R28.5 trillion, but the pace of increase has slowed – the need for additional cash is less. During demonetization five years ago, CIC was R18 trillion.

In five years, digital payments went mainstream, leaving behind the need for cash-at least in metro and urban areas.

UPI transactions this year may touch 40-42 billion, compared with 22 billion transactions last year, observes National Payments Corporation of India’s Chief Executive officer (CEO) Dilip Asbe.

India has the third-largest number of ATMs in the world, but is also one of the most underpenetrated (population density-wise). The cash velocity- or ATM withdrawals as a percentage of CIC – is also one of the lowest in the world at 1.5x, compared with 8 in Canada and China.


भुगतान में तेज बढ़ोतरी के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था कम से कम अगले कुछ साल नकदी पर निर्भर बने रहने के आसार हैं।

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के आंकडें दर्शाते हैं कि पिछले साल ज्यादातर समय चलन में मौजूद मुद्रा में वृद्धि 20 फीसदी से ज्यादा रही, लेकिन यह साल 29 अक्टूबर तक गिरकर 8.5 फीसदी रह गई। पिछले साल मुद्रा में भारी बढ़ोतरी की वजह महामारी से संबंधित अनिश्चितताएं थीं, जिससें लोगों ने आकस्मिक जरूरतों के लिए नकदी रखने को प्राथमिकता दी। इस समय 28.5 लाख करोड़ रुपये की मुद्रा चलन में है। मगर बढ़ोतरी की रफ्तार सुस्त पड़ी है क्योकि अतिरिक्त नकदी की जरूरत कम है।

पांच साल पहले नोटबंदी के दौरान महज 18 लाख करोड़ रुपये की मुद्रा चलन में थी। हालांकि इन पांच वर्षो के दौरान कम से कम महानगरों और शहरी इलाकों में डिजिटल भुगतान नकदी की जरूरत को पीछे छोड़कर मुख्यधारा में आ गए हैं।

भले ही शहरी इलाकों में डिजिटल भुगतान आम हो गया है मगर लेकिन मझोले एवं छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में अब भी लेनदेन का जरिया नकदी ही है। कस्बाई और ग्रामीण अर्थव्यवस्था नकदी पर चलती है।

भारत में दुनिया में तीसरे सबसे ज्यादा एटीएम हैं, लेकिन देश आबादी सघनता के हिसाब से सबसे कम एटीएम वाले देशों में शामिल है। नकदी वेलोसिटी यानी सीआईसी के प्रतिशत के रुप में एटीएम निकासी डेढ़ गुना है, जो दुनिया में सबसे कम में शुमार है। यह कनाडा और चीन में 8 है।