Presently, wood produced from farmlands are treated as forest produce requiring regulatory clearances and discouraging farmers from growing trees. We propose shifting agro-forestry from forest to agriculture sector and thereby providing all the economic benefits of agriculture to the farmers engaged in agro forestry.


It is worth mentioning that a fresh look at the commercial timber plantations in agro-forestry sector by the farmers can enhance self – reliance in timber production in the country. India has the advantage of scale, second largest arable land resource in the world that can be an asset in achieving self-reliance in timber.

However, as India’s real estate and furniture demand booms, reliance on timber imports is likely, as India looks to meet its composite panel requirements. A 5 percent shift of agriculture area from cash crops to timber plantations through incentives would result in the enhancing farmer’s incomes, ensuring sustained supply to the wood-based industries and significantly increase in rural employment generation, thus arresting the rural Indian brain drain and strengthening the country’s green cover and ecology.

We would like to express that how certain policy levers, which can pave the way for woodbased industries to achieve their full growth potential:

  • Presently, wood produced from farmlands are treated as forest produce requiring regulatory clearances and discouraging farmers from growing trees. We propose shifting agro-forestry from forest to agriculture sector and thereby providing all the economic benefits of agriculture to the farmers engaged in agro forestry.
  • We also propose the removal of licensing requirement for wood-based units including Veneer Mills, Saw Mills, Plywood Factories, Medium Density Fibreboard (MDF) Units, Particle Board Units, Pulp and Paper Units, Furniture Industry and all other industries that primarily use ‘farm wood’ and its produce as raw materials. This will enable local producers and other users of farm wood to build sustainable businesses at the plantation sites and generate employment and livelihood opportunities for farmers.

The above interventions are likely to have a multi-pronged economic and ecological benefits:

  • Rural job creation: Potential of 2-2.5 million+ new jobs in rural India and substantive impact on farmer incomes.
  • GDP growth & import substitution: Full value chain potential of $150 billion+ and balance of trade improvement as timber imports are substituted by domestic production besides climate and sustainability:
  • Climate and sustainability impact: 2 Bn+ mt of carbon sequestration potential by 2050 from the increase in tree cover and supply of raw material for cluster level biomass wood-based power plants.

We firmly believe that this sector has the potential to be the growth engine for rural prosperity in the country. Establishment of plywood and panel industries is the vehicle for the sustainable development of Agro-forestry timber in the country on one hand and creating employment opportunity in the rural India on the other hand besides increasing green/tree cover in the country.

Most of these agroforestry species grown by the farmers are generally harvested at shorter rotation as such it helps inmore carbon sequestration.

These Agro-Forestry plantations not only increase the Forest Green Cover, but in a short time also significantly increase the availability of timber for mfg. of Plywood, MDF, PB and other wood based products. To sustain this Agro-Forestry drive, the Government has to make sure that enough processing facilities are set up in the country, so that the increased supply of such short duration timber, is absorbed, and the farmers continue to get remunerative prices for their Agro-Forestry timber.

In 2009, China was producing 59 Million CBM of Plywood, which now in 2018 has crossed 195 Million CBM – an increase of 229 %. Similarly, China’s production of PB in 2009 was 14 Million CBM, which in 2018 has crossed 33 Million CBM – an increase of 134%. And China’s production of MDF which was 33 Million CBM in 2009, has now touched to 50 Million in 2018 – an increase of 50%. From a Net Importer, China has now become the Largest Exporter of these products. Today China boasts of 75% of World’s Plywood production, 43% of World’s MDF Production and 27% of World’s PB Production.

As against that, India produces a meagre 4% of World’s Plywood. And its share in the production of PB and MDF are not even worth mentioning – less than 1% of World’s production. It may be argued that the land mass of China is almost 3 times more than India and so China will have more area for such plantations. However, if you see the topography of China, almost 60 – 65% of its land mass is snow bound and or non-cultivable, leaving hardly any difference in the area available for cultivation in China and India.

India, can very well adopt few progressive policies of China, which will soon make India, as the second largest mfg. hub of Agro-Forestry based wood products in the world.

The views were expressed in the webinar of WINCOIN of 24 July



कृषि क्षेत्र के प्रोत्साहन का दायरा कृषि वाणिकी में भी बढ़ाया जाए


वर्तमान में, खेतों से उत्पन्न लकड़ी को वन्यजन्य उत्पाद के रूप में देखा जाता है जिसमें विनियामक प्रमाणन की आवश्यकता होती है और किसानों को पेड़ उगाने से निरुत्साहित करती है। हमारा सुझाव कि कृशि वाणिकी को वन विभाग से कृषि क्षेत्र में स्थानांतरित करें और कृषि वाणिकी में लगे किसानों को कृशि क्षेत्र को दिए जाने वाले सभी आर्थिक लाभ प्रदान करें।


यह उल्लेख करना महत्वपूर्ण होगा कि किसानों द्वारा कृषि-वनिकी क्षेत्र में वाणिज्यिक वृक्षारोपण को एक नए दृष्टिकोण से देखने से भारत में वृक्षीय उत्पादन में आत्मनिर्भरता को बढ़ाया जा सकता है। भारत को अपने आकार का फायदा है, जो दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा कृषि भूमि संसाधन है, जो वृक्षीय उत्पादन में आत्मनिर्भरता को प्राप्त करने में एक संपत्ति के रूप में काम आ सकती है।

हालांकि, जैसे ही भारत के रियल एस्टेट और फर्नीचर मांग बढ़ती है, भारत को अपनी पैनल की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए लकड़ी आयात पर निर्भरता बढ़ने की संभावना है। कृषि क्षेत्र की नकद फसलों के सिर्फ 5 प्रतिशत भाग को प्रोत्साहन देते हुए वृक्षरोपण के लिए स्थानांतरित कर देने से किसानों की आय में बढ़ोतरी होगी, वृक्ष आधारित उद्योगों को निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित होगी और ग्रामीण रोजगार में काफी वृद्धि होगी, जिससे ग्रामीण भारतीय मस्तिष्क निर्वाह रुक जाएगा और देश की हरियाली और पारिस्थितिकी को मजबूती मिलेगी।

हम विस्तार से बयां करना चाहते हैं कि कैसे कुछ नीतियां लकड़ी आधरित उद्योगों की वृद्धि के लिए मार्ग प्रशस्त कर सकती हैः

  • वर्तमान में, खेतों से उत्पन्न लकड़ी को वन्यजन्य उत्पाद के रूप में देखा जाता है जिसमें विनियामक प्रमाणन की आवश्यकता होती है और किसानों को पेड़ उगाने से निरुत्साहित करती है। हमारा सुझाव कि कृषि वाणिकी को वन विभाग से कृषि क्षेत्र में स्थानांतरित करें और कृषि वाणिकी में लगे किसानों को कृषि क्षेत्र को दिए जाने वाले सभी आर्थिक लाभ प्रदान करें।
  • हमारा यह भी सुझाव हैं कि लकड़ी से जुड़ी इकाइयों के लाइसेंस की आवश्यकता को हटा दिया जाए, जिसमें कृषि वाणिकी का उपयोग करने वाले सभी उद्योग हों, जैसे कि विनियर मिल, सॉ मिल, प्लाईवुड फैक्ट्री, मीडियम डेंसिटी फाइबरबोर्ड (एमडीएफ) इकाई, पार्टिकल बोर्ड इकाई, पल्प और पेपर इकाई, फर्नीचर इंडस्ट्री। इससे स्थानीय उत्पादकों और अन्य कृषि लकड़ी के उपयोगकर्ताओं को प्लांटेशन स्थलों पर स्थायी व्यवसाय बनाने और किसानों के लिए रोजगार और जीविका के अवसर पैदा होने की संभावना बढ़ेगी।

उपरोक्त संशाधनों से बहुस्तरीय आर्थिक और पारिस्थितिकी लाभ होने की संभावना हैः

  • ग्रामीण रोजगार सृजनः ग्रामीण भारत में 20-25 लाख से अधिक नए नौकरियों की संभावना और किसानों की आय में महत्वपूर्ण वृद्धि।
  • जीडीपी वृद्धि और आयात प्रतिस्थापनः 150 खरब डॉलर मूल्य श्रृंखला और आयात घाटे का प्रतिस्थापन, जब आयात की पूर्त्ति लकड़ी के घरेलु उत्पादन से ही हो जाएगी।
  • जलवायु और संघारणीयताः वृक्षीय आवरण की वृद्धि और लकड़ी आधारित पावर प्लांटों में बायोमास जैसे कच्चे माल से पूर्ति होने पर 2050 तक 2 खरब $ मेट्रिक कार्बन प्रच्छादन की संभावना।

हम मज़बूती से विश्वास करते हैं कि यह क्षेत्र देश की ग्रामीण समृद्धि के लिए विकास त्वरक बनने की संभावना रखता है। देश में हरित वन्य विकास के अलावा, प्लाइउड और पैनल उद्योग की स्थापना से जहां एक ओर कृषि वाणिकी का सत्त विस्तार होगा वहीं दुसरी ओर ग्रामीण भारत में रोजगार के नए अवसर पैदा करेगा।

इन अधिकांश कृषि वाणिकी में उगाए जाने वाली प्रजातियों को किसानों द्वारा आम तौर पर छोटे समयांतर में काटा जाता है, इसलिए इससे कार्बन संग्रहण में अधिक मदद मिलती है।

ये कृषि-वनिकी के वृक्षारोपण न केवल वन हरित क्षेत्र को बढ़ाती हैं, बल्कि लघु अवधि में प्लाईवुड, एमडीएफ, पीबी और अन्य लकड़ी आधारित उत्पादों के लिए लकड़ी की उपलब्धता को भी बढ़ाती हैं। इस कृषि-वनिकी अभियान को बनाए रखने के लिए सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि देश में पर्याप्त प्रसंस्करण सुविधाएं स्थापित की जाएं, ताकि इस छोटी अवधि वाली लकड़ी की बढ़ी हुई आपूर्ति को समाहित (उपयोग) किया जा सके और किसानों को उनकी कृषि-वनिकी लकड़ी के लिए उचित मूल्य मिलता रहे।

2009 में चीन 590 लाख सीबीएम प्लाईवुड उत्पादन कर रहा था, जो अब 2018 में 1950 लाख सीबीएम को पार कर गया है – यह 229 प्रतिशत की वृद्धि है। उसी तरह, 2009 में चीन का पीबी उत्पादन 140 लाख सीबीएम था, जो 2018 में 330 लाख सीबीएम को पार कर गया है – यह 134 प्रतिशत की वृद्धि है। और 2009 में चीन का एमडीएफ उत्पादन 330 लाख सीबीएम था, जो 2018 में 500 लाख में पहुंच गया है – यह 50 प्रतिशत की वृद्धि है। एक आयातकर्ता से, चीन अब इन उत्पादों का सबसे बड़ा निर्यातक बन गया है। आज चीन विश्व के 75 प्रतिशत प्लाईवुड उत्पादन, 43 प्रतिशत विश्व का एमडीएफ उत्पादन और 27 प्रतिशत विश्व का पीबी (पार्टीकल बोर्ड) उत्पादन कर रहा है।

उसके मुकाबले, भारत विश्व का केवल 4 प्रतिशत प्लाईवुड उत्पादन करता है। और उसका पीबी और एमडीएफ उत्पादन भी उल्लेखनीय नहीं है – विश्व के उत्पादन के 1 प्रतिशत से भी कम। यह कहा जा सकता है कि चीन में लगभग 3 गुना भू-भाग भारत से अधिक है और इसलिए चीन के पास वृक्षरोपण के लिए अधिक क्षेत्र होगा।

हालांकि, अगर आप चीन की भू-रचना को देखें, तो उसके लगभग 60 – 65 प्रतिशत भू-भाग बर्फीले या अकृषि-योग्य है, जिससे चीन और भारत में कृषि के लिए उपलब्ध क्षेत्र में लगभग कोई अंतर नहीं होता है।

भारत, चीन की कुछ प्रगतिशील नीतियों को आसानी से अपना सकता है, जो कृषि वाणिकी आधरित लकड़ी उत्पादों में जल्द ही भारत को दुसरा सबसे बड़ा निर्माण केंद्र बना देगा।

 

SAJJAN BHAJANKA

PRESIDENT

Federation of Indian Plywood and Panel Industry

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