Economic trends which will impact India

There are four broad trends that will impact the Indian economy in the years to come.

Government capital expenditure will drive the economy in the medium term: The latest Economic Survey underlines the fact that government capital expenditure has risen from a long-term average of 1.7 per cent of gross domestic product (GDP) in the period FY2009 to an estimated 2.9 per cent of GDP in FY2023. The latest central Budget expects capex to rise to 3.3 per cent of GDP in FY2024.

This points to an inconvenient fact: Private investment has remained sluggish and the government has had to compensate. The behavior of private investment is not unique to India. It is part of a trend that is seen in emerging and developing economic (EMDEs).

Several factors responsible for the slowdown in investment growth in EMDEs: Slower output growth in 2010-19; lower commodity prices; lower and more volatile capital inflows to EMDEs; higher economic and geopolitical uncertainly; and a substantial build-up of public and private debt. Many of these factors apply to India.

High fiscal deficits are here to stay: Analysts cheered the finance minister for sticking to the fiscal deficit of 6.4 per cent for 2022-23, and projecting a fiscal deficit of 5.9 per cent for 2023-2024. The figure for 2023-2024 is a budget estimate.

After the global financial crisis and then the pandemic, we are seeing a rise in government deficits and public debt everywhere. India is no exception.

If anything, the rise in debt-to-GDP ratio from 81 to 85 per cent between 2005 and 2021 look modest in comparison with the increases elsewhere-66 to 128 per cent in US; 39 to 95 per cent in UK; 26 to 72 per cent in China; and 69 to 93 per cent in Brazil.

India’s public debt position look even better when we take into account the fact that 95 per cent of the liabilities are domestic and we have the growth-interest differential working in our favour.

Inflation will be higher than before: High fiscal deficits can be expected to translate into high inflation. That apart, deglobalisation will happen to a greater or lesser degree. The movement may be gradual, but the direction is clear enough.
Globalisation was about procuring goods and services at the lowest cost from almost anywhere in the world. There is a historical pattern of glovalisation driving disinflation.

Self-reliance and import-substitution are a reality: make at home will gain in importance by every country. This will be especially important for leading economic and military powers.

As India moves towards becoming the third largest economy in the world with matching military clout, a lurch towards greater self-reliance is inevitable. We need not be unduly apologetic about this trend: We are only falling in line with a worldwide trend.

The adjustments in tariffs in the recent Budget, analysts have noted, are aimed at helping domestic industry.

Macroeconomic outcomes in the coming years will be governed by the four trends outlined above.

T T Rammohan



आर्थिक रुझान जो भारत को प्रभावित करेंगे

आने वाले वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था को चार बड़े महत्त्वपूर्ण रूझान प्रभावित कर सकते हैं।

पहला महत्त्वपूर्ण रूझान यह है कि मध्यम अवधि में पूंजीगत व्यय अर्थव्यवस्था को दिशा देगा। सरकार का पूंजीगत व्यय वित्त वर्ष 2009 से वित्त वर्ष 2020 की अवधि में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 1.7 प्रतिशत के दीर्घ अवधि के औसत से बढ़कर वित्त वर्ष 2023 में जीडीपी का 2.9 प्रतिशत हो गया। प्रस्तुत बजट में पूंजीगत व्यय वित्त वर्ष 2024 में बढ़कर जीडीपी का 3.3 प्रतिशत रहने की उम्मीद है।

यह आंकड़ा एक असहज तथ्य की तरफ इशारा करता है। निजी क्षेत्र से निवेश सुस्त रहा है और इस कमी की भरपाई भी सरकार को करनी पड़ी है। भारत में निजी निवेश में उतार-चढ़ाव कोई अनूठी बात नहीं है। यह उस रूझान का हिस्सा है जो तेजी से उभरते बाजारों एवं विकासशील देशों (ईएमडीई) में देखने को मिलता है।

इन कारकों में 2010-19 के दौरान उत्पादन में धीमापन, जिंसों की कमजोर कीमतें, ईएमडीई में पूंजी प्रवाह में अधिक उतार-चढ़ाव, आर्थिक एवं भू-राजनीतिक अनिश्चितता और सार्वजनिक और निजी स्तरों पर भारी कर्ज बोझ शामिल हैं। इसमें कई कारक भारत पर लागू होते है।

दूसरा अहम रूझान यह है कि राजकोषीय घाटा ऊंचे स्तर पर बना रहेगा। वित्त मंत्री ने वित्त वर्ष 2022-23 में राजकोषीय घाटा जीडीपी का 6.4 प्रतिशत तक सीमित रखने का लक्ष्य अपरिवर्तित रखा है। विश्लेश्कों ने इसका स्वागत किया है। बजट में वर्ष 2023-24 में राजकोषीय घाटा 5.9 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है।

वैश्विक वित्तीय संकट और कोविड महामारी के बाद हर जगह सरकार का घाटा बढ़ रहा है और सार्वजनिक कर्ज में इजाफा हो रहा है। भारत भी इसका अपवाद नहीं है।

वर्ष 2005 से 2021 की अवधि में भारत का ऋण-जीडीपी अनुपात 81 प्रतिशत से बढ़कर 85 प्रतिशत तक पहुंच गया। मगर दुसरे देशों की तुलना में सामान्य ही लग रहा है। अमेरिका का यह अनुपात 66 प्रतिशत से 128 प्रतिशत, ब्रिटेन में 39 प्रतिशत से 95 प्रतिशत, चीन में 26 से 72 प्रतिशत और ब्राजील में 69 प्रतिशत से बढ़कर 93 प्रतिशत पहुंच गया है।

भारत पर 95 प्रतिशत देनदारियां घरेलू है, इसलिए इस लिहाज से यहां सार्वजनिक कर्ज थोड़ा नियंत्रित लग रहा है। वृद्धि-ब्याज अंतर (ग्रोथ-इंटरेस्ट डिफरेंशियल) भी भारत के पक्ष में दिख रहा है।

तीसरा अहम रूझान यह है कि महंगाई दर ऊंचे स्तर पर बनी रहेगी। राजकोषीय घाटा अधिक रहने से महंगाई ऊंचे स्तर पर पहुंच सकती है। इसके अलावा कमोबेश दुनिया के देशों के बीच आपसी सहयोग कम होता जाएगा। यह प्रक्रिया धीरे-धीरे हो सकती है मगर दिशा काफी स्पष्ट लग रही है।

वैश्वीकरण का एक प्रमुख उद्देश्य दुनिया में कहीं भी सस्ते दाम पर वस्तु एवं सेवाओं का लाभ उठाना है। इतिहास गवाह है कि वैश्वीकरण के कारण महंगाई दर में कमी लाने में मदद मिली है।

चौथा महत्त्वपूूर्ण रूझान यह है कि आत्मनिर्भरता और आयात प्रतिस्थापन अब नई वास्तविकता बन गई है। दुनिया के हरेक देश स्थानीय स्तर पर विनिर्माण को अधिक बढ़ावा देंगे। यह बात अग्रणी आर्थिक एवं सैन्य शक्तियों के लिए अधिक महत्त्वपूर्ण होगी।

भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है और इसकी सैन्य ताकत भी बढ़ रही है। इस लिहाज से आत्मनिर्भर बनने की तरफ झुकाव अवश्यसंभावी है। हमें इस रूझान को लेकर अनावश्यक रूप से चिंतित नहीं होना चाहिए। भारत भी वही कर रहा है जिससे अनुसरण दुनिया में दूसरे देश कर रहे हैं।

बजट में शुल्कों में कुछ बदलाव किए गए हैं। विश्लेषकों की नजर में घरेलू उद्योग को बढ़ावा देने के लिए यह कदम उठाया गया है। आने वाले वर्षों में औद्योगिक नीति आर्थिक नीति का अभिन्न हिस्सा होगी। आने वाले वर्षों में वृहद आर्थिक परिणाम इन चारों रूझानों पर निर्भर रहेंगे।

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