Economy: Slow Reform Process
- October 4, 2020
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Economy: Slow Reform Process
Now that lockdown is being opened continuously to save the livelihood of the people, making vaccines and getting it to the entire population as soon as possible is the only way to prevent infection. This is a big job. As Nandan Nilekani said in an interview, it took five years to enroll the base of one billion population but vaccination can be done quickly. Vaccine users can be trained and certified online. Technology will play an important role in this whole exercise. However, there is still time to make the vaccine and it is not clear how soon the vaccine will be available in the country. But the government will have to be fully prepared.
Meanwhile, its impact on the economy will be much higher than previously estimated. Because the localized lockdowns will affect the production chain and the reform process will be slow. The Indian economy grew by 24 per cent in the first quarter of the current financial year. Production decline was higher than anticipated. Most analysts are now missing full-year estimates. Sharp indicators such as the Car Sales and Purchasing Managers’ Index have improved, but it remains to be seen if this improvement continues. Continued growth in transition will disrupt both demand and supply. Supply sector shocks have pushed up inflation and this trend may persist in the coming months as well. As a result, the central bank will not be in a position to support economic activity by reducing policy rates. Not only this, the problem of double balance sheet will increase further. Reserve Bank One-time restructuring of the loan is allowed. But there is no clarity on recapitalization of public sector banks.
In such a situation, it would be expected from monetary and fiscal authority to come up with some constructive measures. The Goods and Services Tax (GST) issue is an example of new challenges. The central government has recommended to the states that they should complete the reduction in GST by borrowing. It can be repaid by increasing the cess. But many states have denied this. In addition, it will be necessary to prevent incidents of bankruptcy on a large scale and to provide consumption support to the poor. The government will need more resources to fulfill its obligations and help the economy. In such a situation, he will soon have to prepare a revised expenditure blueprint and find ways to raise additional funds. On the other hand, one year is going to be in the field of education. Overall, there is an all-round chain of bad news and they do not even see the end.
अर्थव्यवस्था: धीमी सुधार की प्रक्रिया
अब जबकि लोगों की आजीविका बचाने के लिए लाॅकडाउन लगातार खोला जा रहा है तो टीका बनाना और उसे जल्द से जल्द पूरी आबादी तक पहुँचाना ही संक्रमण को रोकने का इकलौता तरीका है। यब बहुत बड़ा काम है। जैसा कि नंदन नीलेकणी ने दिए गए साक्षात्कार में कहा भी कि एक अरब की आबादी का आधार नामांकन करने में पांच वर्ष लगे लेकिन टीकाकरण जल्दी किया जा सकता है। टीका लगाने वालों का ऑनलाइन प्रशिक्षण और प्रमाणन किया जा सकता है। इस पूरी कवायद में तकनीक की अहम भूमिका होगी। बहरहाल, टीका बनने में अभी भी वक्त है और यह स्पष्ट नहीं है कि देश में टीके की जल्द उपलब्धता कैसे सुनिश्चित होगी। परंतु सरकार को पूरी तैयारी रखनी होगी।
इस बीच अर्थव्यवस्था पर इसका असर पहले लगाए गए अनुमानों से कहीं अधिक होगा। क्योंकि स्थानीय स्तर पर लगने वाले लाॅकडाउन उत्पादन श्रृंखला को प्रभावित करेंगे और सुधार की प्रक्रिया धीमी होगी। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 24 फीसदी गिरी। उत्पादन में गिरावट अनुमान से अधिक थी। अधिकांश विश्लेशक अब पूरे वर्ष के अनुमान में कमी कर रहे हैं। कार बिक्री और पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स जैसे तीव्र संकेतकों में सुधार हुआ है लेकिन अभी यह देखना है कि क्या यह सुधार बरकरार रहता है। संक्रमण में निरंतर इजाफा मांग और आपूर्ति दोनों को बाधित करेगा। आपूर्ति क्षेत्र के झटके ने मुद्रास्फीति को बढ़ाया है और यह रूख आने वाले महीनों में भी बरकरार रह सकता है। परिणामस्वरूप केंद्रीय बैंक इस स्थिति में नहीं होगा कि वह नीतिगत दरों में कमी करके आर्थिक गतिविधियों की सहायता कर सके। इतना ही नहीं दोहरी बैलेंस शीट की समस्या और बढ़ेगी। रिजर्व बैंक ने ऋण के एकबारगी पुनर्गठन की इजाजत दी है। परंतु सरकारी बैंकों के पुनर्पूंजीकरण पर स्पष्टता नहीं है।
ऐसे हालात में मौद्रिक और राजकोषीय प्राधिकार से यही आशा होगी कि वह कुछ रचनात्मक उपाय लेकर आए। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) का मसला नई चुनौतियों का एक उदाहरण है। केंद्र सरकार ने राज्यों से अनुशंसा की है कि वे उधारी लेकर जीएसटी में हुई कमी पूरी करें। इसे उपकर बढ़कर चुकाया जा सकता है। परंतु कई राज्यों ने इससे इनकार कर दिया है। इसके अलावा व्यापक पैमाने पर दिवालिया होने की घटनाएं रोकने और गरीबों को खपत समर्थन मुहैया कराना जरूरी होगा। सरकार को अपने दायित्व निभाने और अर्थव्यवस्था की मदद करने के लिए ज्यादा संसाधनों की आवश्यकता होगी। ऐसे में उसे जल्दी ही व्यय का संशोधित खाका तैयार करना होगा और अतिरिक्त फंड जुटाने के तरीके तलाश करने होंगे। उधर शिक्षा के क्षेत्र में एक वर्ष का जाया होना तय है। कुल मिलाकर बुरी खबरों का चैतरफा सिलसिला चल रहा है और इनका अंत भी नजर नहीं आ रहा।