Editorial 2021

But the demand for indigenous products in the domestic market as well as in the world market will increase as expected when their quality increases and they meet the international competition in terms of productivity. It should be noted that much work remains to be done in this direction. In fact, there is a need to get to the bottom of the reasons due to which many such Chinese products are being consumed in India, which can be easily manufactured and consumed in the country as well as exported.



The increasing demand for Indian goods in the world is a reality and it is confirmed by the recent achievement of export target of 400 billion dollars. Undoubtedly, this is a sign of India’s growing potential, but it still needs to be increased further. To fulfill this need, there has been talk of promoting local products under the Vocal for Local campaign for a long time. This should be done to make the country self-reliant,

But the demand for indigenous products in the domestic market as well as in the world market will increase as expected when their quality increases and they meet the international competition in terms of productivity. It should be noted that much work remains to be done in this direction. In fact, there is a need to get to the bottom of the reasons due to which many such Chinese products are being consumed in India, which can be easily manufactured and consumed in the country as well as exported.

It is the need of the hour that we the people of India should give priority to the purchase of indigenous products, but at the same time it is also to be seen that how our entrepreneurs should be able to increase the quality level of their products? This capability can increase only when an effective campaign is launched at the government level to make the quality of indigenous products world class and research and research is given priority under it. In this sequence, the government will have to specially help the small and medium industries generating employment opportunities. Only by doing this, schemes like One District One Product and Make in India can be made successful. To make such schemes successful, the central government will have to be active as much as the state governments. It is high time that such research and research centers should be established at the state level, whose sole objective is to improve the quality of local products, they cannot make a place in the world market. At a time when all the countries of the world want to reduce their dependence on Chinese products, then this situation is an opportunity for India. Some steps have been taken to capitalize on this opportunity, but the expected results are not yet visible and that is why India is not able to convert itself into an export based economy.

Meanwhile, inflationary pressures intensified, owing to elevated global commodity prices due to Russia’s invasion of Ukraine. Input prices increased at the fastest pace in five months, while output charge inflation hit a 12- month high.

“A major insight from the latest results was an intensification of inflationary pressures, as energy price volatility, global shortage of inputs and the war in Ukraine pushed up purchasing costs, Companies responded to this by hiking their prices to the greatest extent in one year,”

This escalation of price pressures could dampen demand as firms are trying to share additional cost burdens with their clients.

“There has been a gradual yet consistent easing in momentum since the beginning of CY22, and high global commodity prices add to downside risks to the growth ahead. Even as India is still leading the Asian emerging markets, overall business confidence remained subdued by historical standards. It was marred by economic uncertainty and inflation concerns among manufacturers.”

Suresh Bahety |9050800888



लेकिन घरेलू बाजार के साथ विश्व बाजार में देसी उत्पादों की मांग अपेक्षा के अनुरूप तब बढ़ेगी, जब उनकी गुणवत्ता बढ़ेगी और वे उत्पादकता के मामलें में अंतराष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा में खरे उतरेंगे। यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि इस दिशा में अभी बहुत काम करना शेष है। वास्तव में उन कारणों की तह तक जाने की जरूरत है जिनके चलते अनेक ऐसे चीनी उत्पादों की भारत में खपत हो रही है, जिन्हें आसानी से देश में बनाने-खपाने के साथ उनका निर्यात भी किया जा सकता है।

विश्व में भारतीय वस्तुओं की बढ़ती मांग एक वास्तविकता है और इसकी पुष्टि हाल में चार सौ अरब डालर के निर्यात का लक्ष्य हासिल करने से होती है। निःसंदेह यह भारत की बढ़ती क्षमता का परिचायक है, लेकिन अभी उसे और बढ़ाने की आवश्यकता है। इस आवश्यकता की पूर्ति हेतु लोकल के लिए वोकल अभियान के तहत स्थानीय उत्पादों को प्रोत्साहित करने की बात एक लंबे समय से की जा रही है। देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए ऐसा किया ही जाना चाहिए।

लेकिन घरेलू बाजार के साथ विश्व बाजार में देसी उत्पादों की मांग अपेक्षा के अनुरूप तब बढ़ेगी, जब उनकी गुणवत्ता बढ़ेगी और वे उत्पादकता के मामलें में अंतराष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा में खरे उतरेंगे। यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि इस दिशा में अभी बहुत काम करना शेष है। वास्तव में उन कारणों की तह तक जाने की जरूरत है जिनके चलते अनेक ऐसे चीनी उत्पादों की भारत में खपत हो रही है, जिन्हें आसानी से देश में बनाने-खपाने के साथ उनका निर्यात भी किया जा सकता है।

यह समय की मांग है कि हम भारत के लोग देसी उत्पादों की खरीद को प्राथमिकता दें, लेकिन इसके साथ ही यह भी तो देखा जाए कि हमारे उद्यमी अपने उत्पादों की गुणवत्ता का स्तर बढ़ाने में कैसे समर्थ हों? यह सामर्थ्य तभी बढ़ सकती है, जब देसी उत्पादों की गुणवत्ता विश्वस्तरीय बनाने के लिए सरकार के स्तर पर कोई प्रभावी अभियान छिड़े और उसके तहत शोध एवं अनुसंधान को प्राथमिकता दी जाए। इस क्रम में सरकार को रोजगार के अवसर पैदा करने वाले छोटे और मझोले उद्योगों की विशेष रूप से मदद करनी होगी। ऐसा करके ही एक जिला-एक उत्पाद और मेक इन इंडिया जैसी योजनाओं को सफल बनाया जा सकता है। इस तरह की योजनाओं को सफल बनाने के लिए जितना केंद्र सरकार को सक्रिय होना होगा, उतना ही राज्य सरकारों को भी। यह सही समय है कि राज्यों के स्तर पर ऐसे शोध एवं अनुसंधान केंद्र स्थापित हों, जिनका एकमात्र उद्देश्य स्थानीय उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ाए बिना वे विश्व बाजार में स्थान नहीं बना सकते। एक ऐसे समय जब दुनिया के तमाम देश चीनी उत्पादों पर अपनी निर्भरता कम करना चाहते हैं, तब यह स्थिति भारत के लिए एक अवसर है। इस अवसर को भुनाने के लिए कुछ कदम अवश्य उठाए गए हें, लेकिन अभी अपेक्षित परिणाम सामने नहीं आए हैं और इसी कारण भारत स्वयं को निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था में परिवर्तित नहीं कर पा रहा है।

इस बीच यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के कारण जिंस के वैश्विक दामों में वृद्धि की वजह से मुद्रास्फीति का दबाव तेज हो गया। पांच महीनों में इनपुट की कीमतों में सबसे तेज गति से वृद्धि हुई, जबकि आउटपुट चार्ज मुद्रास्फीति 12 महीने के शीर्ष स्तर पर पहुंच गई।

हाल के परिणामों से महंगाई के दबावों की गंभीरता को लेकर एक व्यापक संकेत मिलते हैं, क्योंकि ऊर्जा की कीमतों में उतार-चढ़ाव, कच्चे माल की वैश्विक कमी, यूक्रेन में युद्ध के दबाव ने खरीद लागत बढ़ा दी है। कंपनियों ने इसका जवाब पिछले एक साल में अपना शुल्क बढ़ाकर किया है।

कीमतों के दबाव में बढ़ोतरी से मांग पर बुरा असर पड़ सकता है, क्योंकि कंपनियां लगातार अतिरिक्त लागत का बोझ अपने ग्राहकों पर डालने की कोशीस कर रही हैं।

कैलेंडर वर्ष 2022 की शुरूआत से गति में धीरे धीरे लेकिन लगातार बढ़ोतरी हो रही है। जिंसों के बढ़े दाम की वजह से आने वाले दिनों में वृद्धि कि रफ्तार घटने की संभावना है। अभी भी भारत एशिया के उभरते बाजारों में है, लेकिन कुल मिलाकर कारोबारी विश्वास कमजोर बना हुआ है। इसकी प्रमुख वजह विनिर्माताओं के बीच आर्थिक अनिश्चितता और महंगाई की चिंता है।

सुरेश बाहेती – 9050800888