Editorial May 2021
- June 1, 2021
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How to say that we are Involved in your Suffering?
An invisible virus has rattled our world vigorously. We are struggling to overcome the consequences of the pandemic. Employment, business, exams and studies, weddings and even worshipping everything has halted.
And now there is a wave of separation with our near and dear ones. We are hearing from childhood that happiness and sorrow stays in line side by side. Change is inevitable in our life. We had never thought that we will ever see such a pandemic in our lifetime and we have to go through such situations.
We feel helpless in times of distress. More often unable to console each other?
Sometimes we find it difficult to have words for sympathy. We try our best to heal others who is upset or unhappy. How can we make them feel comfortable?
First of all, we have to understand that we cannot calm down a person who have lost his near & dear ones. There is no way to lift the burden of anyone. Now, what option do we have?
The most important it will be just to accompany the person in distress. He needs only you, not your advice. Especially when traditional methods (like hugging) are not acceptable. This is most unusual and difficult situation for all.
When we stay beside him, listen him, no matter how many times he repeats his words, it will certainly help him to forego his grief. Our aim should not be to eradicate feelings, but to accept the situation. And for this, we don’t have to push back the feelings of pain or deny them, or try to divert attention. Here, need to stabilize ourselves in the midst of storm of these feelings. There should not be fighting with emotions nor running away but to accept them.
Remember the story.
The aircraft was shaking badly due to bad weather. Everyone was very scared except a little girl. When the turbulence was over, the lady sitting next to the girl asked, “you were not scared”? “My father is the pilot. I have faith on him, he will save me from any mishappening.” The girl replied smilingly. This is faith.
A mantra does not cure a patient directly, only the faith on the outcome of mantra heals him. Often people don’t die of illness, but by the fear of illness.
Negative news on covid do have a stress full impact in our mind. Newspaper, news channels are also serving unintentional negativity, even if they are trying to warn us. It is a fact that one gets excited by the discouraging news, just as no one gets inspiration from criticism. Of course we are facing situation, never before imagined. It is time of testing, remaining to be alert. But remember that pilot of our aircraft is the supreme God. Keep that faith in mind.
If you are atheist and do not believe in god, then believe in subconscious capacity of the mind that our mind; our thoughts, our pituitary gland do, wonders. Self suggestion is a factor of victory or defeat. Remember that we win with our positive mind. The goal of any goal is to comminate the hope and enthusiasm that will continue to work. Success or defeat is not a final goal, it is a stage in your life travel.
Suresh Bahety
9050800888
कैसे कहें कि तुम्हारे दुख में हम शामिल हैं?
एक अदृश्य वायरस ने आकर हमारी दुनिया को जोरदार धक्का मारा है। हम इस महामारी और उससे होने वाली समस्याओं से जूझ रहे हैं। नौकरी छूट जाना, व्यवसाय ठप्प, परीक्षाओं, पढ़ाई, करियर के अते-पते नहीं, शादियां रूकीं टूटीं, और अब आई है अपने से बिछोह की लहर। हम बचपन से सुनते आए हैं कि सुख-दुख का चोली-दामन का साथ है। जीवन परिवर्तनशील है। हमने कभी सोचा भी नहीं था कि हम अपने जीवनकाल में ऐसी महामारी को देखेंगे और इस तरह की विकट और कठिन परिस्थितियों से गुजरना या जूझना पड़ेगा।
दुख की घड़ी में हम असहाय महसूस करते हैं। समझ में नहीं आता कि आखिर बोलें तो क्या बोलें? कौन से ऐसे शब्द हैं जिनको बोलने से किसी का दर्द कम हो सके? हमारा उद्देश्य तो उस व्यक्ति को जो परेशान है, दुखी है, उसे राहत प्रदान करना है। हम सोचते तो यही हैं कि किसी तरह इसका दुख कम कर दें।
सबसे पहले तो हमें यह समझना होगा कि जब कोई किसी अपने को खो बैठता है तो ऐसे में होने वाले दुख को हम कुछ भी कह कर कम कर ही नहीं सकते। वो दुखों का पहाड़ उठाना ही पड़ता है। इसके सिवाय कोई उपाय ही नहीं तो फिर हम क्या करें?
शोकाकुल व्यक्ति के साथ बने रहना ही सबसे महत्वपूर्ण बात है। उस वक्त उसे आपकी सलाह से ज्यादा आपके साथ की जरूरत है। खासकर ऐसे में जब हम पारंपरिक विधि से कुछ भी करने की स्थिति में नहीं है। यह और भी असामान्य और कठिन परिस्थिति है।
जब हम उनके साथ बने रहते हैं, उनकी बात सुनते हैं चाहे वह कितनी बार भी उसे क्यों न दोहराए, तब धीरे-धीरे उनकी दुख को सहन करने की शक्ति बढ़ती है। तो हमारा उद्देश्य दुख को मिटाना नहीं है। उसको स्वीकार करना है। और इसके लिए हमें दर्द की भावनाओं को पीछे धकेलना, या उन्हें नकारना, या उन से ध्यान हटाने की कोशिश करना, यह सब करने की जरूरत नहीं है। जरूरत है तो इन भावनाओं के तूफान के मध्य में स्वयं को स्थिर करने की। भावनाओं से लड़ना नहीं है, न ही भागना है। उनको स्वीकार करना है।
उस कहानी को याद करें।
विमान बुरे मौसम के कारण बुरी तरह हिल-डुल रहा था, एक छोटी लड़की को छोड़ सब बेहद डरे हुए थे। जब मौसम ठीक हुआ तो बच्ची के पास की सीट पर बैठी महिला ने पूछा- ‘तुम्हें डर नहीं लगा?’ लड़की मुस्करा कर बोली-‘पायलट मेरे पिता हैं, वे मुझे कुछ नहीं होने देंगे, इसका मुझे विश्वास था।’ यह होता है विश्वास!
कोई मंत्र शायद मरीज को ठीक नहीं करता, उसका मंत्र के परिणाम का विश्वास उसे ठीक करता है। अक्सर लोग बीमारी से नहीं बीमारी के डर से मरते हैं।
कोरोना वायरस के संबंध में भी नकरात्मक खबरों का मन पर प्रभाव होता है। अखबार, समाचार चैनल्स सब अनजाने में नकरात्मकता परोस रहे हैं, भले ही वे हमें सचेत करने की कोशिश कर रहे हों। कहते हैं, हतोत्साहित करने वाले समाचारों से कोई उत्साहित नहीं होता, ठीक वैसे ही जैसे आलोचना से प्रेरणा शायद ही किसी को मिलती हो। निश्चय ही हमने पहले कभी नहीं सोची ऐसी स्थितियां सामने हैं। समय परीक्षा का, सजग रहने का है। परंतु याद रखें हमारे विमान के पायलट परमपिता परमेश्वर हैं।
आप नास्तिक हैं और ईश्वर को नहीं मानते तो मन की अवचेतन क्षमता पर विश्वास रखें कि हमारा मन, हमारे विचार, हमारी पीयूश ग्रंथी (pituitary gland) चमत्कार करती है। स्वयं सुझाव (self suggestion) विजय या पराजय का कारक होता है। याद रखें ‘मन के जीते जीत है। कोई कोविड-19 ग्रस्त हो तो उसे और परिवार को सकारात्मक बने रहना है। मन को कमजोर नहीं होने देना है।
सुरेश बाहेती
9050800888