Editorial September 2020
- October 4, 2020
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There is federal structure in the country where the rights and roles of the Centre and states are divided. States pose the hurdles in the way of business ease. The role of the center is limited. If all states do not change, then Centre alone cannot promise business ease. The role of the Centre is limited to enacting central laws that address certain aspects of business facilitation. For example international trade, Taxation and Debt Settlement. Most permits and licenses and laws related to land and labor are in the hands of the states. Centre had to work closely with the sates where his party i.e. BJP is in power. This may have improved the atmosphere. But they did not do so.
It is said that governments in our country do not want to lose anything. If some tax system or provision goes against the government then it changes the law. Citizens always have to bear the loss. Their innovations do not work anywhere. Due to these things a lack of trust is arising. We have reached a position even beyond the ease of doing business where the government is asking that please do business.
Videocon promotes to take on competition from cheap products, which were made in China and dumped in the Indian market. But the Supreme Court judgment in 2012 hit the financial metrics of the entire group and it did not recover after that.
We have seen the same physics in Telecom Circle and in plywood license in UP where lots of fund and energy is hanged. Look at the scenario of Mandi Tax. Further along debate is seen in agro forestry where a popular demand by the industry to identity timber produced in farm land to be excluded from forest produce, is still awaited.
The GDP figures for the June quarter have been much worse than projected, with -23.9 on an annual basis. The decline in employment and the tendency to save more has led to reduced demand and could be a major concern for the remaining time of FY 2021. Monetary and financial measures to strengthen the economy have so far proved insufficient. It is necessary for policy makers to think of something new to bring about change.
देश में संघीय ढांचा है जहां केंद्र और राज्यों के अधिकार और भूमिकाएं बंटी हुई है। कारोबारी सुगमता की राह में बाधाएं राज्य भी उत्पन्न करते हैं। केंद्र की भूमिका सीमित है। यदि सभी राज्य बदलाव न करें तो केंद्र अकेले कारोबारी सुगमता का वादा नहीं कर सकते। केंद्र की भूमिका ऐसे केंद्रीय कानून बनाने तक सीमित है जो कारोबारी सुगमता के कुछ पहलुओं को हल करते हैं। उदाहरण के लिए अंतरराष्ट्रीय व्यापार, कराधान और ऋणशोधन निस्तारण है। अधिकांश परमिट और लाइसेंस तथा भूमि और श्रम से जुड़े कानून राज्यों के हाथ में हैं। केंद्र को उन राज्यों के साथ मिलकर काम करना चाहिए था जहां उनकी पार्टी यानी भाजपा सत्ता में है। इससे माहौल सुधरता। परंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया।
यह दुख की बात है कि हमारे देश में सरकारें कुछ गंवाना नहीं चाहतीं। यदि कुछ कर व्यवस्था या प्रावधान सरकार के खिलाफ जाते हैं तो वह कानून बदल देती है। नागरिकों को हमेशा नुकसान उठाना पड़ता है। उनके नवाचार (इनोवेशन) कहीं काम नहीं आते। इन बातों के चलते भरोसे की कमी उत्पन्न हो रही है। हम कारोबारी सुगमता से भी आगे ऐसी स्थिति में पहुंच गए हैं जहां सरकार को कहना पड़ रहा है कि कृप्या कारोबार कीजिए।
वीडियोकाॅन प्रवर्तकों ने कहा है कि वर्ष 1984 से (जब वीडियोकाॅन ने अपना व्यवसाय शुरू किया) दिसंबर 2016 तक, यानी करीब तीन दशकों में वीडियोकाॅन समूह कभी डिफाॅल्टर नहीं रहा और ऐसे सस्ते उत्पादों से प्रतिस्पर्धा करने में सफल रहा जो चीन निर्मित थे और उन्हें भारतीय बाजारों में खपाया गया था। लेकिन 2012 में आए सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से पूरे समूह की वित्तीय स्थिति प्रभावित हुई और उसके बाद में उस पर दबाव बना हुआ था।
हमने यही उदाहरण टेलिकाम सर्कल में देखा और अब उत्तर प्रदेश में प्लाईउड लाइसेंस का हब देख रहे हैं जहां लोगों की पंुजी और शक्ति बर्फ में दब गई। मंडी टैक्स के कार्यन्वन को गौर करें। किसानों द्वारा अपनी जमीन (फार्मलेन्ड) पर उगाये गए पोपुलर-सफेदा आदि को वन उत्पाद से अलग कृषि वानिकी में परिभाषित करने के लिए पता नहीं कितना इंतजार करना पड़े।
जून तिमाही के जीडीपी आंकड़े सालाना आधार पर -23.9 के साथ अनुमान के मुकाबले बेहद खराब रहे हैं। हालांकि जीडीपी एक बिल्कुल अलग कहानी है। रोजगार में गिरावट और ज्यादा बचत की प्रवृत्ति की वजह से मांग घटी है और यह वित्त वर्ष 2021 के शेष समय के लिए एक बड़ी चिंता हो सकती है। अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए मौद्रिक और वित्तीय उपाय अब तक नाकाफी साबित हुए हैं। नीति निर्माताओं के लिए कुछ नया सोचना बदलाव लाने के लिए जरूरी है।