Efficient Income tax department
- August 31, 2021
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The government has introduced technology in a big way to reduce the extent of physical interface with taxpayers. Faceless scrutiny and assessments can be completed much faster, with fewer people with the use of technology. The preliminary processing of tax returns is already undertaken with the help of technology. There is now greater scope of using more technology to reduce the human interface even further. Globally, there has been a trend of reducing the number of officiates employed by the direct taxes department. So, why should India be an exception?
The data for 2018-19 shows that’s much as 37 per cent of the total direct tax receipts came to the government through tax deduction at source. Another 40 per cent came by way of advance tax payments from corporate and individual taxpayers. This has been the trend for the last several years.
It’s true that in the last two decades, the income tax department has done quite well in reducing its cost of collecting direct taxes. Its expenditure on collection has declined from 1.36 per cent of the total direct tax receipts in 2000-01 to 0.62 per cent in 2018-19. But this decrease has taken place against the backdrop of a huge rise in direct tax collections in this period, even as technology induction has helped in keeping the cost of collections under check. Perhaps, there is even greater scope of reducing the expenditure on collecting direct taxes, particularly when almost 77 p0er cent of the taxes are collected through deductions at source and voluntary payments.
So, the finance ministry may also debate how it could streamline the functioning of the top team in the income tax department, how more efficiently these positions could be repurposed, and how effectively the hugely increased manpower strength in the income-tax department could be used or, if found surplus, redeployed.
चुस्त-दुरूस्त आयकर विभाग
सरकार ने करदाताओं के साथ भौतिक संपर्क को काफी हद तक कम करने के लिए तकनीक का सहारा लिया। इस वजह से पहचान रहित जांच एवं कर आकलन अब कहीं अधिक तेजी से हो पाता है जिसमें कम कर्मचारियों की दरकार होती है। कर रिटर्न की शुरूआती प्रोसेसिंग को तकनीक की ही मदद से अंजाम दिया जाता है। अब इसकी अधिक संभावना है कि मानव संपर्क और कम करने के लिए तकनीक का ज्यादा इस्तेमाल किया जाए। वैश्विक स्तर पर प्रत्यक्ष कर विभाग में तैनात अधिकारियों की संख्या में कटौती का रुख देखा गया है। फिर भारत किस तरह इसका अपवाद हो सकता है?
वर्ष 2018-19 के आंकड़े बताते हैं कि कुल प्रत्यक्ष कर प्राप्तियों का 37 फीसदी सरकार को स्त्रोत पर कर कटौती के माध्यम से ही मिला। बाकी 40 फीसदी राजस्व कंपनियों एवं व्यक्तिगत करदाताओं से अग्रिम कर भुगतान के तौर पर आया। पिछले कई वर्षों से यही रूझान रहा है।
यह सच है कि पिछले दो दशकों में आयकर विभाग ने प्रत्यक्ष कर संग्रह पर आने वाली लागत कम करने के मामले में काफी अच्छा काम किया है। कर संगह पर इसका व्यय वर्ष 2000-01 में कुल प्रत्यक्ष कर प्राप्तियों का 1.36 फीसदी हुआ करता था लेकिन यह 2018-19 में घटकर सिर्फ 0.62 फीसदी हो गया। लेकिन यह गिरावट इस अवधि में प्रत्यक्ष कर संग्रह में हुई भारी बढ़ोतरी की पृष्ठभूमि में आई है और तकनीक के इस्तेमाल ने भी संग्रह की लागत कम करने में भूमिका निभाई है। शायद प्रत्यक्ष कर संग्रह पर खर्च कम करने की अब भी गंुजाइश है, खासकर जब 77 फीसदी कर संग्रह स्त्रोत पर कर एवं स्वैच्दिक भुगतान से ही होता है।
वित्त मंत्रालय को इस पर चर्चा करनी चाहिए कि वह आयकर विभाग की शीर्ष टीम के कामकाज को किस तरह चाक-चैबंद कर सकता है, इन पदों को अधिक असरदार बनाने के लिए किस तरह पुनर्नियोजित किया जा सकता है और आयकर विभाग के श्रमबल का इस्तेमाल किस तरह किया जा सकता है एवं अतिरिक्त संख्या पाए जाने पर उन्हें कैसे दूसरी जगह तैनात किया जा सकता है?