March-April saw the extreme heat wave in the last 125 years in India, day temperature reached 50 degree Celsius, heat wave occurred in Antarctica, 35 of the world’s 50 most polluted cities are in India. Delhi remained the most polluted city in the world for the fourth time in a row. Plastic particles were found in the fish of the Alaknanda River coming out of the mountains and the salt obtained from the sea, due to unbalanced climate and extreme temperatures, the yield of wheat in the world decreased.

This time the message of Environment Day is ‘There is only one earth’. Despite billions of galaxies, all of us viz. humans, plants, animals, etc. can survive only on this earth and that too when the dangers looming over the air, sea, river, pond, soil etc. can be removed. It is believed that the present generation is the only one who can save the earth. Why the need to protect the earth? Drinking water is rapidly decreasing in the world. Glaciers are melting at a faster rate, due to which the water level of the oceans is rising. An estimated about 800 million people live only at a distance of one hundred kilometers from the sea, there is a danger of their displacement. In the last 12 years, around 50 million people in the world have been displaced due to natural disasters.

The quality of 33 percent of the world’s arable land has decreased, but the number of people is increasing. Due to the warming seas, the number of cyclones has increased rapidly also in India along with other countries. After all, who will take the initiative to protect the environment? Environment cannot be protected only through government policies and administration. This work is possible only when every man discharges his duties. Major changes in history have come only due to the united efforts of the people. Sadly, most people assume that they are not part of the problem and that someone else will fix it. It is necessary that our lifestyle should be of environmental protection. We should understand the deep connection between environment and ethics. Our culture has been to give respect to plants, animals and birds anyway.

In Indian culture these five elements earth, sky, fire, water and air have been accepted as life givers. Being the root cause of the creation of the universe, all of them are alive, because the non-living does not have the capacity to create anyone.

The thinking of our sages was very broad and scientific. They were sensitive to its protection. Therefore, considering nature as a goddess, they made laws to worship each and every element of it.

We cannot survive without oxygen. A person needs 14,000 liters of air in a day. By living up to the age of 70, each person uses about the same amount of oxygen that 65 trees give in their entire life time. The question is, how many saplings did we plant and take care of them? Can we stop using unnecessary electricity in our home, office? Can we use natural light? We have to go beyond Reduce, Reuse, Recycle and inculcate the habit of refusing as the most important thing.

Due to unprecedented scientific progress, man forgot his sacred relationship with the earth. As a result, indiscriminate destruction of natural resources led to a threat to the Earth’s ecosystem. As a result, threats like environmental imbalance, climate change and global warming became a challenge for the whole world. This is the result of considering nature as lifeless.

In today’s materialistic era, buying goods has become a psychological disease. We should not buy things which we don’t need. Water, electricity, coal can all be saved by stopping unnecessary use of resources. The consequences of single use are appalling. In a day, 150 crore plastic bottles are used in the world. When we go to the market, we can make a big contribution in saving resources and waste by keeping our bags with us. In view of dried up rivers, falling ground water, we can do rain water harvesting ourselves by working together in our house, office, locality. We have to remember that we are just only trustees of the earth.

In fact, only the contemplation of Indian sages can save the world from environmental crisis. Considering nature to be alive, we should make it our companion and ensure its safety.

We have to use this earth for the coming generations in such a way that those generations can also get the resources which we have used. At present, we are using so much of the earth’s resources, which is more than one and a half earths. Today there is a need to think seriously that what are we doing for our ‘mother earth’, because of which we exist? ‘Only one earth’ i.e. the only solution to save our existence is beginning with ourself.


 

अपना अस्तित्व बचाने का अंतिम अवसर


भारत में मार्च- अप्रैल में पिछले 125 वर्षाे में सबसे अधिक गर्मी पड़ी, दिन का तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक पंहुचा, अंटार्कटिका में लू चली, विश्व के 50 सबसे प्रदूषित शहरों में 35 भारत के हैं। दिल्ली लगातार चौथी बार विश्व का सबसे प्रदूषित शहर रहा। पहाड़ांे से निकलती अलकनंदा नदी की मछलियों और समुंद्र से प्राप्त नमक में भी प्लास्टिक के कण मिले, असंतुलित जलवायु और अत्यधिक तापमान के कारण दुनिया में गेहूं की उपज कम हुई है।

इस बार पर्यावरण दिवस का संदेश ‘केवल एक पृथ्वी है’। अरबों गैलेक्सियों के बावजूद हम सब यानी मनुष्य, पेड़-पौधे, जीव-जंतु आदि केवल इस पृथ्वी पर ही जीवित रह सकते है और वह भी तब, जब वायु, समुद्र, नदी, तालाब, मृदा आदि पर मंडरा रहे खतरे दूर हो सकें। यह माना जा रहा है कि वर्तमान पीढ़ी ही है, जो पृथ्वी को सहेज सकती है। पृथ्वी के सरंक्षण की आवश्यकता क्यों? दुनिया में पीने का पानी तेजी से कम हो रहा है। ग्लेशियर तेज गति से पिघल रहे है जिससे समंदरों का जलस्तर बढ़ रहा है। एक अनुमान से करीब 80 करोड़ लोग समुद्र से सौ किलोमीटर की दूरी पर ही रहते है, इसलिए उनके विस्थापन का खतरा पैदा हो गया है। गत 12 वर्षाे में विश्व में करीब 5 करोड़ लोग प्राकृतिक आपदाओं के कारण विस्थापित हुए भी हैं।

विश्व की 33 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि की गुणवत्ता कम हो चुकी है, पर खाने वालो की संख्या में वृद्धि हो रही है। गर्म होते समंदरों के कारण अन्य देशो के साथ भारत में भी साइक्लोन आने की संख्या तेजी से बढ़ी है। आखिर पर्यावरण सरंक्षण की पहल कौन करेगा? पर्यावरण को केवल सरकारी नीतियों और प्रशासन के माध्यम से सरंक्षित नहीं किया जा सकता। यह काम तभी संभव है, जब प्रत्येक आदमी अपने कर्तव्यों का निर्वहन करे। इतिहास में बड़े परिवर्तन लोगों के एकजुट प्रयास से ही आए है। दुख की बात है कि अधिकांश लोग यह मानते है कि वे समस्या का हिस्सा है ही नहीं और निदान कोई दूसरा करेगा।

आवश्यकता है कि हमारी जीवनशैली पर्यावरण सरंक्षण की हो। हम पर्यावरण और नैतिकता के गहरे संबंध को समझें। हमारी संस्कृति तो वैसे भी पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों को आदर देने की रही है। भारतीय संस्कृति में धरती, आकाश, अग्नि, जल और वायु इन पंचतत्वों को जीवनदायक स्वीकार किया गया है। सृष्टि की उत्पति का मूल कारण होने से ये सभी जीवंत हैं, क्योंकि निर्जीव में किसी को उत्पन्न करने की क्षमता नहीं होती।

हमारे ऋषियों का चिंतन बहुत व्यापक और वैज्ञानिक था। वे इनके सरंक्षण के प्रति सवेंदनशील थे। इसलिए उन्होंने प्रकृति को देवी मानकर इसके प्रत्येक तत्व के पूजन का विधान किया।

बिना ऑक्सीजन के हम जीवित नहीं रह सकते। एक व्यक्ति को एक दिन में 14,000 लीटर हवा की आवश्यकता होती है। 70 वर्ष की आयु तक जीवित रहते हुए प्रत्येक व्यक्ति करीब उतनी ऑक्सीजन का उपयोग कर लेता है, जो 65 वृक्ष अपने पुरे जीवन काल में देते हैं। सवाल है कि हमने कितने पौधे लगाए और उनकी देखभाल भी की ? क्या हम अपने घर, कार्यालय में अनावश्यक बिजली का उपयोग बंद कर सकते है? क्या हम प्राकृतिक रोशनी का इस्तेमाल कर सकते हैं? हमें रिड्यूस, रियूज, रिसाइकिल से आगे जाकर सबसे महत्वपूर्ण रिफ्यूज यानी मना करने की आदत डालनी होगी।

अभूतपूर्व वैज्ञानिक प्रगति के कारण सुविधाभोगी मनुष्य ने धरती के साथ अपने पवित्र रिश्ते को भुला दिया। परिणामतः प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध विनाश से धरती के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरा उत्पन्न हो गया. फलतः पर्यावरण असंतुलन, जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग जैसे खतरे पूरी दुनिया के लिए चुनौती बन गए। यह प्रकृति को जड़ मानने का परिणाम है।

आज के भौतिकवादी युग में सामान खरीदना एक मनोवैज्ञानिक बीमारी सी हो गई है। जिन वस्तुओं की आवश्यकता नहीं है, हम उन्हें न ख़रीदे। संसाधनों के अनावश्यक उपयोग रोकने से पानी, बिजली, कोयला सब बचाए जा सकते है। सिंगल यूज़ का परिणाम भयावह है। एक दिन में विश्व में 150 करोड़ प्लास्टिक की बोतलों का उपयोग होता है। जब हम बाजार जाएं तो अपना थैला साथ रखकर संशाधन एवं कूड़ा बचाने में बहुत बड़ा योगदान कर सकते है। सुखी हुई नदियों, गिरते हुए भूगर्भ जल के दृष्टिगत हम अपने मकान, कार्यालय, मोहल्ले में मिलजुल कर स्वयं रेन वाटर हार्वेस्टिंग करा सकते है। हमें याद रखना होगा कि हम पृथ्वी के केवल ट्रस्टी है।

वास्तव में भारतीय ऋषियों का चिंतन ही दुनिया को पर्यावरणीय संकट से बचा सकता है। हम सब प्रकृति को जीवंत मानते हुए उसे अपना सहचर बनाएं और उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करें।

हमें आने वाली पीढ़ियों के लिए इस पृथ्वी का उपयोग इस प्रकार करना है कि उन पीढ़ियों को भी संसाधन मिल सकें जो हमें मिले है। वर्तमान में पृथ्वी के संसाधनों का इतना उपयोग हम कर रहे है, जो डेढ़ पृथ्वी से अधिक के है। आज इस पर गम्भीरता से विचार करने की आवश्यकता है कि हम अपनी ‘धरती माँ’ के लिए क्या कर रहे है, जिसकी वजह से हमारा अस्तित्व है? ‘केवल एक पृथ्वी’ यानी अपने अस्तित्व को बचाने का एकमात्र समाधान अपने आप से शुरुआत है।