Export contraction add challenges to Indian Manufacturers
- December 13, 2022
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Exports to seven of the top 10 destination of India, including the US, the United Arab Emirates (UAE), and China witnessed contraction in October, leading to the country’s overall outbound shipments dipping for the first time in two years, according to the data compiled by the Department of Commerce. These 10 nations have a share of 47 per cent in India’s overall exports.
The three nations that saw positive growth in exports were the Netherlands (21.6 per cent), Singapore (24.8 per cent), and Brazil (57.7 per cent).
The US, which has been India’s largest export market for a decade, saw a dip in its value of exports by a fourth in October, according to the data reviewed. The UAE, which signed a free trade agreement with India’s earlier this year, witnessed 18 per cent fall in shipments.
Similarly, a slowdown in economic activity in China Due to its zero-Covid policy and real estate market crisis resulted in 47.5 per cent degrowth in outbound shipments of the country.
Other countries that showed contraction during the month include Bangladesh (52.5 Per cent), the UK (22 per cent), Saudi Arabia (20.4 per cent), and Hong Kong (23.6 per cent), On a cumulative basic for the April-October Period, three of the top 10 export partners China, Bangladesh, and Hong Kong- saw 37.3 per cent, 8.1 per cent, and 14.6 per cent, contraction, respectively.
The October trade data released on Tuesday showed India’s merchandise exports had contracted to their lowest levels in 20 months as fears of recession in the West started impacting shipments from the country. Domestic factors, such as a higher number of holidays during the festival month, as well as export restrictions on certain agricultural and engineering goods, also affected outbound shipments that declined 16.6 per cent in October.
A sharp contraction in exports is a reflection of the mounting geopolitical tension triggered by the Russia- Ukraine stand-off that started in February this year. Besides, high inflation, monetary policy tightening, currency depreciation, as well as pandemic-led supply-chain constraints, caused disruption worldwide.
Another aspect of the reduction in exports is that all the goods that were not exported were consumed in the Indian markets only. Due to which the competition in the domestic market was further increased. This will further add to the challenges for Indian manufacturers who are already grappling with lack of demand.
निर्यात सुस्त हाने पर भारतीय निर्माताओं की चुनौतियों बढ़ी
अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात और चीन सहित भारत के 10 प्रमुख निर्यात गंतव्यों में से सात में निर्यात में गिरावट देखी गई। वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार अक्तुबर महीने में देश से वस्तुओं और सेवाओं का निर्यात करीब दो साल में पहली बार घटा हैं। देश के कुल निर्यात में इन 10 देशों की हिस्सेदारी करीब 47 फीसदी है।
लेकिन केवल तीन देशों नीदरलैंड (21.1 फीसदी), सिंगापूर (24.8 फीसदी) और ब्राजील (57.7 फीसदी) में निर्यात बढ़ा है, बाकी सात में निर्यात मांग घटी है।
आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि अमेरिका दशकों से भारत के लिए सबसे बड़ा निर्यातक देश रहा है लेकिन अक्टूबर में यहां भेजे जाने वाली खेप का मुल्य करीब एक-चौथाई घट गया। संयुक्त अरब अमीरात ने इस साल की शुरूआत में भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौता किया था लेकिन यहां भेजे जाने वाली खेप 18 फीसदी घट गई।
इस तरह चीन में शून्य कोविड नीति और रियल एस्टेट संकट के कारण आर्थिक गतिविधियां नरम पड़ने से वहां भारत से निर्यात 47.5 फीसदी घट गई। इसके साथ ही बांग्लादेश (52.5 फीसदी), ब्रिटेन (22 फीसदी), सऊदी अरब (20.4 फीसदी) और हॉन्ग कॉन्ग (23.6 फीसदी) में भी निर्यात मांग में गिरावट आई।
पश्चिमी देशों में मंदी की आशंका से देश का निर्यात 20 महीने के निचले स्तर पर रहा। इसके साथ ही घरेलू मोर्चे पर त्योहारों की वजह से लंबी छुट्टियों का भी असर निर्यात पर पड़ा है।
निर्यात में तेज गिरावट में रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण भू-राजनीति तनाव बढ़ना भी प्रमुख कारण है। इसके अलावा सख्त मौद्रिक नीति, मुद्रा में नरमी और कोविड-19 के कारण आपूर्ति श्रृंखला में बाधा से भी निर्यात प्रभावित हुआ है।
निर्यात में कमी का दुसरा पहलु यह भी है कि निर्यात न होने वाला सारा माल भारतीय बाजारों में ही खपाया गया। जिससे घरेलु बाजार में प्रतिस्पर्धा और भी बढ़ गई। पहले से ही मांग में कमी से जुझ रहे भारतीय विनिर्माताओं को इससे और अधिक चुनौतीयों का सामना करना पड़ेगा।