Fixing the quality problem in making a Global Manufacturing Hub

The global supply chain disruption and geopolitical tension of the last few years have made it imperative for all countries to reduce dependence on China. In early 2020, when the pandemic and the lockdowns in China hit almost every global product manufacturer, a number of countries were seen as being potential alternative hubs that could reduce dependence along with Malaysia, Indonesia, Vietnam and a few others including India, as having the capability of becoming a global hub.

But the progress in attracting big global strategic manufacturing investment to India since then has been disappointing. India’s own dependence on China for both inputs and manufactured goods has only increased.

Multiple hurdles have come to the fore when analysts have dissected the inability of the country to get its manufacturing act right. The common ones are infrastructure issues, the cost and ease of doing business high taxes as well as, frequent policy changes.

One major factor that often does not get the attention it deserves is India’s regulatory failures in enforcing quality consciousness among manufacturers. The Indian government and regulators have adopted lower standards than developed countries.

Worse, they have been lax in even enforcing those lower standards. It is hard to remember a single instance of manufacturers in any sector having had to undertake large scale recalls, or when manufacturing facilities were forced by regulators to improve their quality norms.

The excuse often proffered for prescribing lower quality standards is that stricter norms could increase costs sharply.

This is an entirely misleading argument because it is often the taxes and infrastructure issues that add to the costs rather than higher quality standards. Indeed, most countries which end up becoming big exporters find that adopting quality practices actually help in reducing costs.

So why don’t the government and manufacturers in the country focus on producing uniformly higher quality products? Why does china with higher manpower costs than India still manage to produce better products at lower costs in most sectors?

Part of the reason is because, till at least the economic liberalization started in the 1990s, Indian manufacturers did not have to worry about quality.

Even when the economic reforms started, the gap between what the Indian consumers expected and what consumers in developed markets demanded remained fairly large. The government could have stepped in and benchmarked the quality standards in all sectors to those in developed markets.

It however never thought that quality was critical to becoming a major manufacturing hub. It focused on many things but entirely neglected the quality equality equation.

It was a big mistake that continues to hamper us from our goal of becoming a global manufacturing hub.



वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनने में आ रही
गुणवत्ता की समस्या



बीते कुछ सालों में वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला बाधित होने और भू राजनीतिक तनाव के कारण सभी देशों के लिए चीन पर निर्भरता कम करना जरूरी हो गया है। साल 2020 की शुरूआत में जब महामारी शुरू हुई थी। और चीन में लॉकडाउन लगा था। तब विश्व के हर विनिर्माता पर असर पड़ा था। उस समय विश्व वैश्विक उत्पादन के संभावित प्रमुख केंद्र के रूप में भारत की और आशा भरी निगाहो से देख रहा था।

हालांकि इस दौड़ में मलेशिया, इंडोनेशिया, वियतनाम सहित कुछ और देश भी शामिल थे। लेकिन भारत का बड़ा वैश्विक निवेश आकर्षित करने के मामले में प्रदर्शन निराशाजनक रहा। बल्कि उत्पादन में इस्तेमाल होने वाले सामान और विनिर्मित उत्पादन के मामले में चीन पर भारत की निर्भरता बढ़ गई है।

जब विश्लेषकों ने देश के विनिर्माण अधिनियम को दुरूस्त करने की कोशिश की तो उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। इसमें कुछ सर्वमान्य समस्याएं जैसे आधारभूत संरचना, लागत और कारोबार करने की सहजता, करों की उच्च दर और लगातार बदलती नीतियां उजागर हुई। हालांकि एक प्रमुख समस्या गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दिया जाना है। भारत का नियामक विनिर्माताओं में गुणवत्ता को लेकर जागरूकता फैलाने में विफल रहा हैं।

विकसित देशों की तुलना में भारत के नियामक ने कम कड़े मानदंडों को अपना रखा है। इसमें भी सबसे खराब पहलू यह है कि कानून लागू करने वाली एजेंसियों ने अपेक्षाकृत कम मापदंडों को अपनाने में भी ढिलाई बरत रखी है। ऐसा कोई मामला याद नहीं पड़ता है कि विनिर्माण के किसी क्षेत्र ने उत्पाद को बड़े स्तर पर वापस मंगवाया हो या नियामकों ने विनिर्माण सुविधाओं की गुणवत्ता बेहतर करने के लिए कड़े कदम उठाए हों।

कम गुणवत्ता मानदंडों को अपनाने के लिए आमतौर पर यह तर्क दिया जाता है कि उच्च मानदंडों को अपनाने से लागत कहीं ज्यादा बढ़ जाएगी। यह पूरी तरह भ्रामक तर्क है। आमतौर पर उच्च गुणवत्ता मानदंडों के बजाए करों और आधारभूत मुद्दों के कारण लागत बढ़ती है।

असलियत में देखा जाए तो निर्यातक बनने वाले ज्यादातर देशों ने गुणवत्ता मानदंडों को अपनाकर अपने उत्पाद की लागत घटाई है।
क्यों फिर हमारे देश की सरकार और विनिर्माता गुणवत्ता के उच्च मानदंडों पर ध्यान नहीं केंद्रित करते हैं? क्यों चीन मानवश्रम की लागत अधिक होने के बावजूद ज्यादातर क्षेत्रों में भारत से कम लागत पर उत्पाद तैयार कर लेता है?

इसके कारण 1990 के दशक में शुरू किए गए आर्थिक उदारीकरण है। इससे पहले भारत के विनिर्माता गुणवत्ता को लेकर अधिक चिंतित नहीं थे। भारत में जब आर्थिक उदारीकरण का दौर शुरू हुआ था तब भारत के उपभोक्ताओं की उम्मीदें और विकसित देशों के बाजार में मांग को लेकर खासा अंतर था।

विकसित देशों के बाजार के सभी क्षेत्रों के लिए सरकार गुणवत्ता मानदंड का ‘बेंचमार्क‘ निर्धारित करने की पहल कर सकती है।

यह कभी सोचा नहीं गया कि देश को विनिर्माण का प्रमुख केंद्र बनाने के लिए गुणवत्ता बेहद जरूरी है। देश को विनिर्माण का केंद्र बनाने के लिए कई मुद्दों पर ध्यान दिया गया लेकिन गुणवत्ता को पूरी तरह नजरंदाज कर दिया गया।

मेरे विचार से यह बड़ी गलती थी, इनसे वैश्विक विनिर्माण का केंद्र बनाने के अपने लक्ष्य को दूर किया है।

Prosenjit Datta