माली का खुशबू पर कोई अधिकार नहीं
- मई 8, 2024
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नेकी कर दरिया में डाल। यह वह नैतिक सीख है, जिसके साथ हम सब बड़े हुए हैं। यह स्पष्ट रूप से हमें बताती है कि यह निर्णय करने का अधिकार हमें नहीं है, कि हमारी सहायता पाने वाले को अपना जीवन कैसे जीना चाहिए या हमारे द्वारा दिये गये उपादान को उसे कैसे खर्च करना चाहिए। यह हमारी सहायता पाने वाले उस ’भाग्यशाली‘ व्यक्ति का निजी मामला (अधिकार) है।
दानदाताओं का अधिकार इस प्रतिस्पर्धी दुनिया में संघर्ष करने के लिए किसी को बुनियादी संसाधन प्रदान करना है। हालांकि यह ‘सहयोग’ उसके भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे, लेकिन यह भी अटल सत्य है कि हम उनके भविष्य के रास्ते चुनने के अधिकार को नियंत्रित नहीं कर सकते। वो अपने लिए ऐसा रास्ता भी चुन सकते है, जो हमारे लिए अप्रत्यासित या अवांछित हो।
इसका तात्पर्य यह भी है कि किसी को समर्थ बनाने में अगर आप कोई भूमिका निभाते हैं, तो यह आपने ईश्वर द्वारा प्रदत्त एक महान उत्तरदायित्व निभाया है। यह भी सच है कि मेहनत की कमाई से वापस किसी प्रतिफल की आशा को छोड़ना कठिन हैं। जिसने आप से मदद ली है, (वह चाहे छोटी हो या बड़ी) अगर वह कुछ ऐसा करे, जिससे आप सहमत न हो या (अतिरेक स्थिती में) आपका विरोध करे, तो क्या आपको अषांत होना चाहिए?
माली बीज को विकसीत होने तक पोषित करता है। जब पौधों पर फूल खिलने लगते हैं तो यह नियंत्रित करने का अधिकार उसका नहीं रह जाता कि वे अपनी सुगंध कहां तक फैलाते हैं।
जब हम कृषि वाणिकी क्षेत्र के लिए, किसानों को किसी भी रूप में प्रोत्साहन दे रहें हों, तो भले ही इसमें हमारा स्वार्थ छिपा हो, लेकिन है यह भी, एक तरह का दान ही। पेड़ों के तैयार होने पर यह कट कर किस को उपकृत करेगा, अगर इस उहापोह में रह गए, फिर तो हम उस महान कार्य में सहयोग कर ही नहीं पाएंगे।
याद रखिए, आप व्यापारी के साथ-साथ सृजनकर्त्ता भी हैं। हमारे बुजुर्गों ने आम का पेड़ यह जानते हुए भी लगाया था, कि उसका फल खाना उन्हें कम, औरों को ज्यादा नसीब होगा।
सुरेश बाहेती
9050800888
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