The situation is well known. The US Federal Reserve is raising interest rates to reduce inflation. The dollar is moving sky high. The pace of the world economy is slow.

However, this time there is a slight change in the situation. Experts used to predict a crisis in emerging countries, but there is peace.

In 1980, the Federal Reserve’s anti-inflation measures led to a debt crisis in Latin America. India, Brazil, Indonesia, South Africa and Turkey were in crisis in 2010 after the global financial crisis. Once again the fear of such a situation was being raised. But other emerging countries including India are facing the crisis strongly as compared to the rich countries.

The International Monetary Fund predicts that emerging countries will overtake the rich countries in terms of economic growth this year, despite the impact of economic growth in China and Russia.

The euro, the British pound and the Japanese yen are diving against the dollar. The decline of the Indian rupee and the Indonesian rupee is respectable. The currency of Brazil and Mexico has strengthened.

The story of India and other countries standing strong is one story of maturity. Management of local financial markets and banks has improved after the crises of the 1980s and 1990s. Central banks have taken measures to target inflation.

Many central banks had already started raising interest rates in comparison to richer countries. Due to this inflation has not been able to get out of control. Following the path of the US Fed Reserve, the value of the currency in Europe and Japan has fallen drastically. Inflation is uncontrollable.

Governments of India and other emerging countries have overcome the biggest weakness of not being able to take loans in their currency. Earlier these governments had to borrow in other currency under compulsion.

After the global financial crisis, after the decline in profits from the rich countries’ brands, investors turned to other countries. This led to the buying of bonds in the local currency in emerging countries.

However, economic stability also increases risks. Emerging countries have taken on so much debt which was earlier considered too high even for rich countries. This debt can make it difficult later.


भारत और उभरते देशों की स्थिति अमीर देशों से बेहतर


स्थिति जानी-पहचानी है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व महंगाई कम करने के लिए ब्याज दरें बढ़ा रहा है। डॉलर आसमान पर है। विश्व अर्थव्यवस्था की गति धीमी है।

फिर भी इस बार स्थिति में थोड़ा बदलाव है। विशेषज्ञ उभरते देशों में संकट का अनुमान लगाते थे पर वहां शांति है।

1980 में फेडरल रिजर्व के महंगाई विरोधी उपायों से लेटिन अमेरिका में कर्ज संकट खड़ा हो गया था। वैश्विक वित्तिय संकट के बाद 2010 में भारत, ब्राजील, इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्ररिका और तुर्की संकट के घेरे में थे। एक बार फिर ऐसी स्थिति की आशंका जताई जा रही थी। लेकिन अमीर देशों के मुकाबले भारत सहित अन्य उभरते देश संकट का सामना अच्छी तरह से कर रहे है।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का अनुमान है, चीन और रूस में आर्थिक वृद्धि दर प्रभावित होने के बावजूद उभरते देश इस वर्ष आर्थिक विकास के मामले में अमीर देशों को पीछे छोड़ देंगे।

डॉलर के मुकाबले यूरो, ब्रिटिश पाउंड और जापानी येन गोता खा रहे है। भारतीय रूपए और इंडोनेशियाई रूपैया की गिरावट सम्मानजनक है। ब्राजील और मेक्सिको की करेंसी तो मजबूत हुई है।

भारत और अन्य देशों के मजबूती से खडे़ रहने की कहानी परिपक्वता से जुड़ी है। 1980 और 1990 के संकट के बाद स्थानिय वित्तिय बाजारों और बैंकों का प्रबंध बेहतर हुआ है। सेंट्रल बैंकों ने महंगाई पर निशाना साधने के उपाय किए हैं।

कई सेंट्रल बैंकों ने अमीर देशों की तुलना में ब्याज दर बढ़ाना पहले ही शुरू कर दिया था। इससे महंगाई काबू से बाहर नहीं जा पाई है। अमेरिका फेड रिजर्व के रास्ते पर चलने से यूरोप और जापान मेें मुद्रा का मूल्य बहुत अधिक गिरा है। महंगाई बेकाबू है।

भारत और अन्य उभरते देशों की सरकारों ने अपनी करंसी में कर्ज ना ले पाने की सबसे बड़ी कमजोरी को दूर किया है। पहले इन सरकारों को मजबूरी में दूसरी करेंसी में उधार लेना पड़ता था।

वैश्विक वित्तिय संकट के बाद अमीर देशों के ब्रॉण्ड से फायदे में गिरावट के बाद निवेशकों ने दूसरे देशों का रूख किया था। इससे उभरते देशों में स्थानीय करेंसी में बॉण्ड की खरीद शुरू हो गई।

बहरहाल, आर्थिक स्थिरता से जोखिम भी बढ़ते हैं। उभरते देशों ने इतना कर्ज ले लिया है जो पहले अमीर देशों तक के लिए अधिक माना जाता था। यह कर्ज बाद में मुश्किल खड़ी कर सकता है।