India's trade policy challenges in the changing global trade scenario

There has been an increase in India’s exports during the last few years, but this increase has not been regular. The main reasons for the increase in exports are price impact, search for alternatives during the period of pandemic and disruption of trade route due to Ukraine crisis.

There is a need to improve the quality of manufacturing sector. This will help in the growth of the business on a regular basis. Participating in Global Value Chain GVC is the way to achieve this goal in less time. A favorable business climate can be promoted through a comprehensive policy framework. This will pave the way for regulatory reforms and development in infrastructure and logistics. If this happens, India can become an attractive center for export-oriented foreign direct investment.

But this does not mean that the GVC should be changed so much that the entire process of production becomes limited to one’s own country. GVCs have to pay the price of change and also require investment of capital. So it proves to be an expensive deal. The post-Corona pandemic conditions do not appear to be appropriate for carrying forward these trends. The fragmentation of production is a regular process.

The varying levels of development across economies dictate that supply chain networks are constantly growing and evolving. However, the difference at such times will be that it will find a way to consolidate. MNCs will also look for sources of dual/multiple inputs and find ways of collaboration. In such a situation, trade in inter-regional trade or regional trade block will get a boost.

India needs to negotiate trade agreements with major trading economies participating prominently in GVCs. During this, there is a need to adopt a liberal approach in all businesses, investments and developed provisions.



बदलते वैश्विक व्यापार परिदृष्य में
भारत की व्यापार नीति की चुनौतियां


बीते कुछ सालों के दौरान भारत के निर्यात में बढ़ोतरी दर्ज हुई है लेकिन यह बढ़ोतरी नियमित रूप से नहीं हुई है। निर्यात में बढ़ोतरी के प्रमुख कारण मूल्य का प्रभाव, महामारी के दौर के दौरान विकल्पों की तलाश और यूक्रेन संकट के कारण व्यापार मार्ग में अवरोध हैं।

विनिर्माण क्षेत्र की गुणवत्ता को बेहतर करने की जरूरत हैं। इससे नियमित रूप से व्यापार के विकास में मदद मिलेगी। इस लक्ष्य को कम समय में हासिल करने का रास्ता वैश्विक मूल्य श्रृंखला जीवीसी में सहभागिता करना है। व्यापक नीति ढ़ांचे की बदौलत अनुकूल कारोबारी मौहाल को बढ़ावा दिया जा सकता है। इससे नियामकीय सुधार और आधारभूत ढांचे व लाॅजिस्टिक्स में विकास का मार्ग प्रशस्त होगा। ऐसा होने पर भारत निर्यातोन्मुख विदेशी प्रत्यक्ष निवेश का आकर्षक केंद्र बन सकता है।

लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि जीवीसी में इतना बदलाव किया जाए कि उत्पादन की संपूर्ण प्रक्रिया अपने ही देश तक सीमित हो जाए। जीवीसी के लिए बदलाव की कीमत अदा करनी पड़ती है और पूंजी के निवेश की भी जरूरत होती है। लिहाजा यह महंगा सौदा साबित होता है। कोरोना महामारी के बाद की स्थितियां इन रूझानों को आगे बढ़ाने के लिए उचित प्रतीत नहीं होती हैं। उत्पादन का वखिंडीकरण नियमित प्रक्रिया है।

अर्थव्यवस्थाओं में अलग-अलग विकास के स्तर यह तय करते हैं कि आपूर्ति श्रृंखला नेटवर्क लगातार बढ़ रहा है और विकास हो रहा है। हालांकि ऐसे समय में अंतर यह होगा कि यह मजबूती का रास्ता खोजेगी। बहुराष्ट्रीय कंपनियां भी दोहरी/बहु इनपुट के स्त्रोत को ढूंढ़ेगी और सहयोग के रास्ते तलाशेगी। ऐसे में अंतर क्षेत्रीय व्यापार या क्षेत्रीय व्यापार ब्लाॅक में व्यापार को बढ़ावा मिलेगा।

भारत को जीवीसी में प्रमुख रूप से भागीदारी करने वाली प्रमुख कारोबारी अर्थव्यवस्थाओं के साथ कारोबारी समझौतों पर वार्ता करने की जरूरत है। इस दौरान सभी कारोबारों, निवेशों और विकसित उपबंधों में उदार रूख अपनाए जाने की आवश्यकता है।

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