Industry hesitating to invest amid global headwinds, uncertain demand
- October 11, 2022
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India Inc is not confident of the durability of the demand recovery that together with external headwinds is not encouraging firms to increase investments.
Though private final consumption expenditure (PFCE), denoting demand in the economy, rose 13.5 per cent in the first quarter of 2022-23 (FY23) and was almost 10 per cent higher than the corresponding period of pre-Covid FY2019-20, businesses are not certain that demand will continue to gather momentum as the retail price inflation remained above the Reserve Bank of India’s threshold for the eighth consecutive month in August.
The confidence of the private sector on the sustainability of demand is low, given economic headwinds. This is leading to lower appetite for investing to build capacity.
Companies invest based on demand, which is not broad-based. That takes time to evolve.
High commodity prices, geopolitical uncertainties, and uneven consumer demand are likely to have prompted corporate India to deter their capex plans in spite of a healthy capacity untilisation in Q4 of FY2021-22.
According to the OBICUS (order books, inventories, and capacity untilisation) Survey conducted by the RBI, capacity untilisation in the manufacturing sector rose to 75.3 per cent in the fourth quarter of FY2021-22 from 72.4 per cent in Q3 of that year. Capacity utilisation levels have improved consecutively for three quarters in a row. In Q1FY2020-21, it had fallen sharply to 47.3 per cent because of the lockdown imposed by the government after the Covid-19 outbreak.
Capacity untilisation is likely to report a seasonal dip in Q1FY2022-23, exacerbated by uneven demand for goods and geopolitical headwinds.
The pre-Covid slowing down, the Covid shock, and the current fears of global growth Challenges owing to ultra–touch monetary stances of central banks to tackle inflation are leading to continued capacity slack.
मांग में सुधार पर संशय, निवेश से हिचकिचा रहीं कंपनियां
भारतीय कंपनियां मांग में सुधार के टिकाऊपन को लेकर आश्वस्त नहीं हैं साथ ही बाहरी दबाव भी उन्हें निवेश बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित नहीं कर रहा है।
हालांकि निजी अंतिम उपभोग व्यय (पीएफसीई) बता रहे हैं कि वित्त वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही में अर्थव्यवस्था में मांग 13.5 फीसदी बढ़ा है और यह कोरोनाकाल से पहले वित्त वर्ष 2019-20 की सामान अवधि से दस फीसदी अधिक है। फिर भी व्यापारियों को भरोसा नहीं है कि मांग आगे तेज होगी क्योंकि भारतीय रिजर्व बैंक की तय सीमा से खुदरा मुद्रास्फीति लगातार आठवें महीने अगस्त में भी अधिक रही।
आर्थिक दबाव के कारण आगे भी मांग की निरंतरता बनी रहेगी इस पर निजी क्षेत्र को भरोसा नहीं है। इससे क्षमता निर्माण पर निवेश करने की इच्छा कम है।
कंपनियां मांग के अनुरूप निवेश करती हैं, जो व्यापक आधारित नहीं है। इसे विकसित होने में समय लगता है।
जिंसों की उच्च कीमत, भू-राजनीतिक अस्थिरता और असमान मांग ने कंपनियों को पूंजीगत व्यय योजनाओं को टालने के लिए प्रेरित किया है। बावजूद इसके कि वित्त वर्ष 2021-22 की चौथी तिमाही में क्षमता उपयोग बढ़िया था।
आरबीआई द्वारा कराए गए ओबीकस सर्वे के अनुसार, विनिर्माण क्षेत्र में क्षमता उपयोग वित्त वर्ष 2021-22 की चौथी तिमाही में बढ़कर 75.3 फीसदी हो गया था। जो उसी साल की तिसरी तिमाही में 72.4 फीसदी था। क्षमता उपयोग के स्तर में लगातार तीन तिमाही में सुधार देखा गया। वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में कोरोना महामारी के कारण सरकार द्वारा लगाए गए लॉकडाउन से यह तेजी से गिरकर 47.3 फीसदी हो गया था।
वस्तुओं के असमान मांग और भू-राजनीतिक दबाव के कारण वित्त वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही में क्षमता उपयोग में थोड़ी गिरावट दर्ज की गई थी।
कोविड से पहले की मंदी, कोविड का झटका, और वैश्विक विकास की मौजूदा आशंकाएं मुद्रास्फीति से निपटने के लिए केंद्रीय बैंकों के अल्ट्रा-टच मौद्रिक रुख के कारण चुनौतियां निरंतर क्षमता में कमी की ओर ले जा रही हैं।