It is important to avoid confusing things
- July 29, 2020
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It is important to avoid confusing things
Do you think the lockdown was the right decision?
There is no point in crying over what has happened. My only point is that the previous mistake should not be repeated again and again. In the last few days, many states have re-enforced the lockdown or extended its deadline. After all, what will be gained from this? Sweden’s chief scientist Johann Giesek said that if lockdown is done then you should know why it will be unlocked. The problem of this epidemic is that those who do not have symptoms will start spreading the infection as soon as they are unlocked.
But if the lockdown is not imposed then the number of infected people is not high?
I do not agree. In some parts of Pune, people have been locked in homes for the last three months. Suppose they had to do this to avoid infection, but when will they be allowed to leave the house? Either they will be allowed to pass only after the vaccine arrives. Then tell them to stay indoors throughout the year. I have the same problem with hotspots and containment zones. Now let’s talk about unlock. People were financially devastated during the three-month detention. If you stay for three more months, then you will end emotionally. Nothing will change even when the lockdown opens because they have to remain densely populated. I am not saying that people are getting infected because of the lockdown. I say that what is to happen will happen. The rate of infection did not fall flat, staying for some time.
भ्रामक बातों से बचना जरूरी
आपको लगता है कि लाॅकडाउन सही फैसला था?
जो हो चुका, उस पर रोने की कोई तुक नहीं। मेरा केवल यह कहना है कि पिछली गलती बार-बार न दोहराई जाए। पिछले कुछ दिनों में कई राज्यों ने लाॅकडाउन दोबारा लागू कर दिया है या इसकी समय सीमा बढ़ा दी है। आखिर इससे क्या हासिल होगा? स्वीडन के मुख्य वैज्ञानिक जोहान जीसेक ने कहा कि लाॅकडाउन करें तो आपको यह पता होना चाहिए कि अनलाॅक क्यों किया जाएगा। इस महामारी की दिक्कत यह है कि जिनमें लक्षण नहीं हैं, वे अनलाॅक होते ही संक्रमण फैलाने लगेंगे।
लेकिन लाॅकडाउन नहीं लगाया जाता तो संक्रमित लोगों की संख्या अधिक नहीं होती?
मैं नहीं मानता। पुणे के कुछ हिस्सों में लोग पिछले तीन महीनों से घरों में बंद हैं। मान लेते हैं कि संक्रमण से बचने के लिए ऐसा करना पड़ा मगर उन्हें घर से निकलने कब दिया जाएगा? या तो टीका आने के बाद ही उन्हें निकलने दिया जाएगा। तब उनसे कह दीजिए कि साल भर घर में ही रहो। हाॅटस्पाॅट और कंटेनमेंट जोन से मुझे यही दिक्कत है। अब अनलाॅक की बात करें। तीन महीनों की बंदी में लोग आर्थिक रूप से बरबाद हो गए। तीन महीने और बंद रहेंगे तो भावनात्मक रूप से भी खत्म हो जाएंगे।
लाॅकडाउन खुलने पर भी कुछ नहीं बदलेगा क्योंकि उन्हें घनी आबादी में ही रहना है। मैं यह नहीं कह रहा कि लाॅकडाउन की वजह से लोग संक्रमित हो रहे हैं। मेरा कहना है कि जो होना है, वह होगा। संक्रमण की दर सपाट नहीं हुई, कुछ समय के लिए ठहर गई थी।