Mood turns dark
- August 28, 2020
- 0
Mood turns dark
The mood of the investor community globally has turned dark, alongside a gloomier outlook for the world economy.
The immediate impact of both the stimulus and the growing uncertainty is seen in the price of gold. Globally and in India, the precious metal seen as both a store of value in times of uncertainty and as a hedge against possible inflation has reached levels not seen before since 2011. It is easy to see the mechanism at work here. Global gold prices have gone up by 25 per cent over the year, as most of its competitor assets have struggled, reflecting its status as a safe haven in times of trouble.
Inflation might tell first, therefore, on asset classes like gold so traders are running up the prices in anticipation.
India must see this as both opportunity and threat. The capital can certainly be put to use in building productive assets. But it must be directed towards the areas where it will provide the optimal combination of social and private return. It must not dissipate itself purely in pushing up stock and asset prices. The government must work overtime to make available appealing financial instruments that will push this flood of yield-seeking capital to greenfield investments in India.
सोने में तेजी
विश्व स्तर पर निवेशक समुदाय का मिजाज निराशाजनक हो चुका है। इस बीच विश्व अर्थव्यवस्था को लेकर भी कोई सकारात्मक पूर्वानुमान नहीं जताए जा रहे।
प्रोत्साहन पैकेज और बढ़ती अनिश्चितता का तात्कालिक असर सोने की कीमतों में देखा जा सकता है। वैश्विक स्तर पर और भारत में भी सोना 2011 के बाद के उच्चतम स्तर पर पहंुच गया है। अनिश्चितता के वक्त में इस कीमती धातु में निवेश तथा संभावित मुद्रास्फीति से बचाव के रूप में इसका इस्तेमाल आम है। फिलहाल ये दोनों कारक काम करते दिख रहे हैं। विश्व स्तर पर सोने की कीमतें इस वर्ष 25 फीसदी तक बढ़ी हैं जबकि इसकी तमाम प्रतिस्पर्धी परिसंपत्तियों की स्थिति ठीक नहीं रही है। जाहिर है संकट के समय सुरक्षित निवेश की इसकी छवि मजबूत हुई है।
सोने जैसे परिसंपत्ति वर्ग में दिख सकती है। यही कारण है कि कारोबारी अनुमान पर कीमतें बढ़ा रहे हैं।
भारत की इसे अवसर और चेतावनी दोनों के रूप में देखना चाहिए। पूंजी का इस्तेमाल उत्पादक परिसंपत्ति निर्माण में किया जा सकता है। परंतु इसे ऐसे क्षेत्रों में निर्देशित किया जाना चाहिए जहां यह सामाजिक और निजी प्रतिफल का उपयुक्त मिश्रण मुहैया कराए। इसे पूरी तरह शेयर और परिसंपत्ति कीमतों को बढ़ावा देने में नहीं व्यय कर देना चाहिए। सरकार को दिन रात काम करके आकर्षक वित्तीय योजनाएं पेश करनी चाहिए जो प्रतिफल की चाह में आ रही इस पूंजी का देश में नई योजनाओं और निर्माण में निवेश सुनिश्चित कर सकें।