Muhammed Nihal – Bombay Plywood Industries
- February 11, 2023
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The local market is growing
along with the exports
As the market is on a consistent uptrend, it is positively expected that demand will further improve in the future.
What is the status of the market?
There was a slight decline during the last quarter of the last year, but now the situation is improving. Orders are also improving in response to market demands. The market is expected to improve further in the coming days. As the market is on a consistent uptrend, it is positively expected that demand will further improve in the future.
The export prospects
There is a steady increase in exports from India. The demand for Indian plywood is increasing in Dubai, Bahrain, Iran, Iraq, and Oman. Now, India is also exporting commercial plywood. Approximately 100 truckloads of shuttering, marine plywood and an equal load of commercial plywood are being exported. In addition to these countries, there are regular enquiries from other countries also.
Quality expected in Export Market
The notion that Indian plywood cannot withstand the temperature of Arabian countries has been refuted. Instead, the demand for Indian plywood is constantly increasing from these countries. In comparison to China and other countries, Indian plywood is considered to have good density and quality and has been recognized as a reliable product.
Encouragement in export
The Kochi port is only 40 kilometers away from us. We can transport the goods to the port by spending just Rs. 10,000- 12,000. We are making the most of it. Currently, only 20% of the factory manages to take advantage from this, as all factories don’t have the necessary infrastructure required for export. The export has the added advantage of instant payment. All transactions are billed. On top of that, we also get a certain additional rates from the domestic market.
The impact of export on the domestic market
Although India currently has a low export share, yet it releases some pressure from the Indian plywood market. At the moment, the international market was a little sluggish, but it is beginning to recover. All associations and individuals should take more effective efforts to increase exports from India so that they can demand more facilities and incentives from the government in addition to the present. This will reduce competition in the local market which is necessary to revitalize the industry.
How do availability of raw materials?
There is a shortage of raw materials in the market. This was also due to the fact that the harvesting had decreased due to a decrease in demand, which led to a decrease in supply and therefore to an increase in prices. Rubber, Eucalyptus, Milia Dubia, silver oak, jungle wood, jackfruit, and mango timber are available as raw material. Eucalyptus is sourced from Mysore and Munnar. Eucalyptus and Milia Dubia are grown in plenty in Mysore. Plenty of raw timber is sourced from there only.
What further steps should be taken?
With the help of Subhash Jolly, Plyinsight had well conducted webinars to create awareness about Milia Dubia and agro-forestry. Subsequently, the industrialists showed keen interest with the farmers. Such efforts are still required continuously. Like Mysore, if a similar awareness is created in other places as well, there will not be any timber issue in the coming days.
The rate of timber was determined through mutual consent
Previously, the rate of timber was determined through mutual consent between the Timber Association and Plywood Association. However, this system breaks down when the supply of raw timber in the market decreases, and those with higher demand have to negotiate the rate. When there is more demand in the market, it is obvious that the rate will have to be paid slightly higher. Raw timber is valued according to demand and supply. However, with extra supply, the price remains relatively low just Rs. 200 to 300 per tonne.
Availability of skilled and technical workers
Sometimes major and minor issues come up. Workers come from North East to work here and are available as per demand of industry. However the shortage of experienced technical people is often felt. We expect that skilled workers trained by institutes will be available in the coming days.
निर्यात के साथ – साथ
बढ़ रहा घरेलू बाजार
क्योंकि जिस तरह से बाजार लगातार उठ रहा है, इससे आने वाले दिनों में मांग की स्थिति और बेहतर होने की पूरी संभावना है।
बाजार की क्या स्थिति है?
पिछले साल की अंतिम तिमाही में थोड़ी दिक्कत थी। लेकिन अब स्थिति निरंतर सुधर रही हैं। बाजार से इंक्वायरी के साथ-साथ आर्डर भी लगातार बढ़ रहें हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले दिनों में मार्केट में और ज्यादा सुधार हो जाएगा। क्योंकि जिस तरह से बाजार लगातार उठ रहा है, इससे आने वाले दिनों में मांग की स्थिति और बेहतर होने की पूरी संभावना है।
निर्यात की संभावना
भारत से निर्यात लगातार बढ़ रहा है। दुबई, बहरीन, ईरान, ईराक और ओमान में भारतीय प्लाइवुड की मांग बढ़ रही है। अब तो भारत से कमर्शियल प्लाईवुड भी निर्यात हो रहा है। लगभग 100 ट्रक सटरींग और मेरीन प्लाइवुड और इतना ही कमर्शियल प्लाइवुड जा रहा है। उपरोक्त देशों के अलावा अन्य देशों से भी अनुरोध आ रहें हैं।
निर्यात में गुणवत्ता की कसौटी
यह धारणा टूट चुकी है कि भारतीय प्लाईवुड अरब जैसे दूसरे देशों के गर्म तापमान को बर्दाश्त नहीं कर सकती। बल्कि वहां हमारे प्लाइवुड की डिमांड लगातार बढ़ रही है। चीन एवं दूसरे देशों के मुकाबले भारतीय प्लाइवुड की डेन्सीटी और गुणवत्ता अच्छी मानी जाती है और विश्वसनीय माल के रूप में पहचान होने लगी है।
निर्यात में प्रोत्साहन
कोच्ची पोर्ट हमसे सिर्फ 40 किलोमीटर दूर है। दस से 12 हजार रुपए खर्च कर हम पोर्ट तक माल पहुंचा सकते हैं। जिसका हम बखूबी फायदा उठा रहे हैं। हालांकि इसका फायदा 20 प्रतिशत ही फैक्ट्री संचालक उठा पा रहे हैं, क्योंकि सभी फैक्ट्रीयों में आवश्यक बुनियादी ढांचा नहीं है, जो निर्यात की निरंतरता के लिए आवश्यक है। निर्यात से हमें एक बड़ा फायदा यह भी है कि पेमेंट नगद मिल जाती है। सारा माल फुल बिलिंग पर जाता है। इसके साथ ही कुछ न कुछ कीमत भी घरेलू बाजार से अधिक मिल जाती है।
निर्यात से घरेलु बाजार में असर
भले ही निर्यात में भारत का हिस्सा अभी बहुत कम है, लेकिन उससे भी भारतीय प्लाईवुड बाजार में दबाव कुछ न कुछ कम होता है। हालांकि अभी अंतरराष्ट्रीय बाजार कुछ नरम था, लेकिन अब फिर से शुरू हो गया है। भारत से निर्यात को बढ़ाने के लिए सभी एसोसिएशन द्वारा और व्यक्तिगत रूप से भी अधिक प्रभावी प्रयास करना चाहिए। जिसमें सरकार द्वारा किए जा रहे वर्तमान प्रयासों के अतिरिक्त और अधिक सुविधा और प्रोत्साहन मिल सके। जिससे घरेलू बाजार में प्रतिस्पर्धा कम होगी। जो इस उद्योग को पुनर्जीवन देने के लिए बहुत आवश्यक है।
कच्चे माल की उपलब्धता
लकड़ी की थोड़ी दिक्कत आ रही है। इसकी वजह यह भी है कि डिमांड कम होने की वजह से लकड़ी की कटाई थोड़ी कम हो गयी थी। इसलिए भी सप्लाई कम होने से कीमत बढ़ रही थी। कच्चे माल के तौर पर रबर, युकेलिप्टस के अलावा मिलिया दुबिया, सिल्वर ओक, जंगल वुड, जैकफ्रूट, और आम की लकड़ी उपलब्ध है। युकेलिप्टस मैसूर और मोनार से आ रहा है। मैसूर में युकेलिप्टस और मिलिया दुबिया अच्छी मात्रा में उगाया जा रहा है। वहां से ही यहां कच्ची लकड़ी आ रही है।
और क्या प्रयास किए जाने चाहिए?
पिछले दिनों सुभाष जौली के सहयोग से प्लाई ईनसाइट ने मिलिया द़ूबिया और कृषि वाणिकी पर वेबीनार करते हुए अच्छी जागरूकता पैदा की थी। जिसके बाद उद्योगपत्तियों ने किसानों के साथ सहयोगात्मक रूख अपनाया। इसी तरह के और भी प्रयासों की अभी भी जरूरत है। मैसूर की तरह बाकी जगह भी यदि इस तरह की जागरूकता आ जाए तो आने वाले दिनों में लकड़ी को लेकर किसी तरह की दिक्कत नहीं आएगी।
लकड़ी का रेट पहले आपसी तालमेल से तय होते थे
पहले लकड़ी एसोसिएशन और प्लाईवुड एसोसिएशन मिल कर लकड़ी के रेट तय कर लेते थे। लेकिन यह व्यवस्था तब टूट जाती है जब बाजार में कच्चा माल की आवक कम होने पर, जिन लोगों की खपत अधिक हैं, उन्हें रेट से समझौता करना पड़ता है। क्योंकि बाजार में यदि डिमांड ज्यादा होगी तो जाहिर है रेट थोड़ा ज्यादा देना ही पड़ेगा। कच्ची लकड़ी का भाव मांग और सप्लाई पर निर्भर करता है। लेकिन यदि माल ज्यादा आ गया तो भी 200 से 300 रुपए प्रति टन ही सस्ता होता है।
प्रशिक्षित और तकनीकी कर्मचारियों की उपलब्धता
कई बार छोटी मोटी समस्या आती है। नोर्थ ईस्ट से मजदूर यहां आते हैं। जिससे काम चल जाता है। इंडस्ट्री को लेबर पर्याप्त संख्या में उपलब्ध रहती है। हालांकि अनुभवी तकनीकी कारीगरों की कमी कई बार खलती है। उम्मीद है कि आने वाले दिनों में संस्थानों द्वारा प्रशिक्षित कारीगर इस क्षेत्र में उपलब्ध होंगे।