Plywood industry is in the transition phase – Ashok Agarwal
- July 20, 2021
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Plywood industry is in the transition phase, have to invest in new technology, machines and quality pouring with new advanced technology.
Ashok Aggarwal, newly elected president of Indian industries in association, is special conversation with Plyinsight.
Update on plywood license?
A guidance was expected for wood based industries to define Agro forestry properly. Difference in timber produced in forest and by farmers should have been demarketed clearly. It is awaited since long. May be it was delayed due to recent changes in ministry of forests. Actually every state has different policies according to their needs. But single guideline and policy for the nation is required, like GST, in the current scenario. This is what we are demanding from the govt. to plan the future of next generation.
Is it possible for private plantation by industries on leased land?
Timber used in industry is produced by farmers in India. Industries are allowed for plantation on sustainable basis on the leased land provided by the govt for 99 years in Malaysia and several other countries. Govt realizes the royalty whereas industry gets the confirmed raw material regularly. India don’t have the facility of such land bank even on remote areas of Rajasthan and Gujarat. Most of the land is owned by public, which can only be acquired by paying exorbitant rates. Regarding vacant land in possession of gram Panchayat there is a very remote chance of handling it over is industries by the villagers.
Whereas industry is running on its 50-60 % capacity and raw material is costlier, how cans industry will survive on de licensing?
Factory owners have to install improved machines to produce quality goods. Process of de licensing of industries can be averted but cannot be stopped. The challenge has to be accepted by one and all. Surely it will be shocking affair. Although this is a suggestion and warming yet I believe it can’t be delayed for long. Industrialist has no option but to produce quality products.
Marketing trend is changing, even branded giants have to market economy grade.
It may be marketing policy. Industrialist have to sit on new ideas not to be secluded. New players are in the field with new machines and technology making it difficult to entrepreneurs sticked with the age old Technics, without delays, you have to start a fresh, just now, for new horizons.
Sentiments are very low on new investment at present.
But change is investable in present circumstances. We have to think for diversification and new innovations leaving apart the traditional working methods entrepreneurs have to focus on fresh ideas in technology as well as market behavior.
People have lost their jobs in the pandemic. Will the situation return to normal in the future?
For the loss on the employment front, it should be divided into two parts – strategic and structural. Strategic because the business has come to a standstill due to the epidemic, but after some time it will gain momentum again. Structural means that the business structure has now fundamentally changed and is no longer the same. I think new skills, new opportunities, new talents, structural changes have become necessary for the times to come.
Is fiscal stimulus needed now?
In order to reduce the shock to the economy, the time has come for the fiscal to step up. I would recommend support the lower end of the society by direct intervention through ways such as direct benefit cash transfer. Second, give fiscal support to the stressed sectors. I believe time has come for fiscal stimulus to support the economy.
What are you thought on the government’s ambitious Aatmanirbhar Bharat (Self-reliant India) push?
In many ways Covid 2.0 has highlighted that there are parts where we will have some interdependencies. So we can’t be completely secluded. Having said that, we will be better in withstanding shocks if we are stronger as a country. We have to be engaged and globally competitive but then at the same time we must get stronger.
We can’t shut ourselves from the rest of the world. If self-reliance means getting stronger as people and ad a country, it is a good sign.
प्लाइवुड इंडस्ट्री बदलाव के दौर में है, यह चैलेंज स्वीकार कर अपनी सोच, तकनीक, मशीन और गुणवत्ता को उन्न्त करना होगा।
इंडियन इंडस्ट्री एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक अग्रवाल से विशेष बातचीत
प्लाइवुड लाइसेंस को लेकर क्या रणनीति है?
वुड्स बेस इंडस्ट्री (WBI) को लेकर कोई गाइडलाइन आनी चाहिए थी। एग्रोफोरेस्ट्री को सही से परिभाशित करने की जरूरत है। जंगल की लकड़ी और किसानों द्वारा उत्पादित पेड़ों को लेकर स्पष्टता होनी चाहिए। इस तरह की गाइड लाइन में बदलाव की जरूरत काफी समय से महसूस की जा रही है। हाल ही में वन मंत्रालय में कुछ बदलाव हुए हैं। इस वजह से शायद देरी हो रही है। एक बार यह गाइडलाइन सही तरीके से बनने के बाद ही आगे की रणनीति बनाई जा सकती है। वस्तुतः प्रत्येक राज्य की जरूरत और नीति अलग-अलग है। जीएसटी की तरह पुरे भारत की वन नीति यदि एक जैसी होगी तो काम करने में सभी को सहुलियत हो सकती है। इसलिए हम यह मांग उठा रहे हैं कि गाइड लाइन जल्दी तैयार की जाए। ताकि भविष्य अगली पीढ़ी के लिए स्पष्ट रणनीति बनाई जा सके।
क्या यह संभव है कि उद्योगों द्वारा जमीनों को लीज पर लेकर प्लांटेशन किया जाए?
अपने देश में एग्रोफोरेस्ट्री किसान करता है। मलेशिया और कुछ दूसरे देशों में 99 सालों के लिए जमीन पट्टे पर लेकर प्लांटेशन किया जाता है। सरकार को नियमित राॅयल्टी और इंडस्ट्री को नियमित तौर पर लकड़ी मिलती रहती है। लेकिन भारत में यह संभव नहीं है। क्योंकि यहां सरकार का लैंड बैंक नहीं है। ऐसी जमीन भी नहीं है जिसे लीज पर लिया जा सके। यहां ज्यादातर जमीन किसानों के पास है। यदि सरकार जमीन का अधिग्रहण करती है तो बाजार भाव से चार गुणाा ज्यादा भाव देना पड़ेगा। ऐसी जमीन भी नहीं है, जो बंजर या बेकार हो। इसलिए यह प्रयोग अपने यहां तो संभव नहीं है। फिर चाहे राजस्थान हो, या फिर गुजरात के रिमोट एरिया में भी शायद इस तरह का प्रयोग संभव नहीं है। ग्राम सभा के पास ही अतिरिक्त जमीन है, लेकिन गांव के लोग इस जमीन को किसी को देने नहीं देंगे। इसलिए मलेशिया का माॅडल यहां कामयाब नहीं हो सकता।
जब कि उद्योग 50 से 60 प्रतिशत उत्पादन क्षमता पर चल रही है? कच्चे माल के दाम बढ़ रहे हैं। ऐसे में डिलाइसेंसिग होने पर कैसे प्लाइवुड इंडस्ट्री खुद को रेस में बनाए रख सकती है?
अब प्लाईवुड संचालक को चाहिए कि वह अच्छी मशीन लगाए। अच्छा माल तैयार करें। डि लाइसेंसिंग को रोका तो नहीं जा सकता है, कुछ समय के लिए टाला जा सकता है। अब इस चुनौती को स्वीकार करना ही होगा। हांलाकि इससे एक बार जबरदस्त उथल-पुथल होगी। यह चेतावनी भी है और सलाह भी है। इसमें अब लंबा समय नहीं लगने वाला। अब इंडस्ट्रिलिस्ट को अच्छा माल तैयार करना होगा। गुणवत्ता पर अधिक ध्यान देना होगा।
बाजार के काम करने का तरीका बदल रहा है, ब्रांडेड फैक्टरी को भी इकोनोमी ग्रेड तैयार करना पड़ रहा है।
यह बाजार में टिकने की एक रणनीति हो सकती है। इंडस्ट्री में जो बदलाव आ रहे हैं, इससे इंडस्ट्रियलिस्ट को अपनी सोच बदलनी होगी। अन्यथा वह अलग-थलग पड़ जाएगा। नए प्लेयर इस मार्केट में आ रहें हैं। वह बेहतर सोच के साथ-साथ अच्छी मशीनरी और नयी तकनीक लेकर आ रहे हैं। इसलिए पुराने इंडस्ट्रियलिस्ट के सामने यह समय चुनौतियों वाला है। उन्हें यह चुनौती स्वीकार कर अपनी सोच, तकनीक, मशीन और गुणवत्ता को उन्नत करना होगा। इस स्थिति को लंबे समय तक टाला नहीं जा सकता है। इसकी तैयारी आज और अभी से करनी होगी। नए आयाम स्थापित करने होंगे।
लेकिन फिलहाल तो नई तकनीक और मशीनों पर इनवेस्टमेंट बहुत कम हो रहा है?
लेकिन बदलाव तो लाना ही होगा। यह वक्त की जरूरत है। अब अपने डाइवर्सिफिकेशन के बारे में सोचना होगा। पारंपरिक ढर्रे पर चलते हुए काम नहीं हो सकता। इंडस्ट्रलिस्ट को हर वक्त न सिर्फ बाजार पर नजर रखने की जरूरत है, बल्कि तकनीक को लेकर नया क्या चल रहा है, इस पर ध्यान देना होगा। यही वक्त की मांग है।
महामारी में लोगों से उनके रोजगार छिन गए हैं। क्या भविष्य में स्थिति सामान्य हो जाएगी?
रोजगार के मोर्चे पर हुए नुकसान के लिए इसे दो हिस्सों- रणनीतिक एवं ढांचागत- में विभाजित किया जाना चाहिए। रणनीतिक इसलिए क्योंकि महामारी के कारण कारोबार थम गया है, लेकिन कुछ समय बाद यह दोबारा रफ्तार पकड़ लेगा। ढांचागत से तात्पर्य है कि कारोबारी ढांचा अब बुनियादी तौर पर बदल चुका है और पहले की तरह नहीं रह गया है। मुझे लगता है कि आने वाले समय के लिए नए कौशल, नए अवसर, नई प्रतिभाएं, ढांचागत बदलाव आवश्यक हो गए हैं।
अर्थव्यवस्था पर कोविड महामारी का असर कम करने और आर्थिक गतिविधियों को तेजी देने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन की जरूरत है। सबसे पहले समाज के कमजोर वर्ग के लोगों तक प्रत्यक्ष नकद अंतरण जैसे माध्यमों से रकम सीधी पहुंचाई जा सकती है। इसके बाद अत्यधिक दबाव झेल रहे क्षेत्रों को आर्थिक प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।
आप सरकार के महत्वाकांक्षी आत्मनिर्भर भारत (आत्मनिर्भर भारत) को आगे बढ़ाने के बारे में क्या सोचते हैं?
कई मायनों में कोविड 2.0 ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि कुछ हिस्से ऐसे भी हैं जहां हमें परस्पर आश्रित रहना पड़ेगा। इसलिए हम पूरी तरह से अकेले नहीं रह सकते। अगर हम एक देश के रूप में मजबूत होते हैं तो हम झटके झेलने में बेहतर होंगे। हमें लगे रहना है और विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी होना है लेकिन साथ ही हमें मजबूत होना पड़ेगा।
हम बाकी दुनिया से खुद को अलग नहीं कर सकते। अगर आत्मनिर्भरता का मतलब देश और जनता का मजबूत होना है तो यह एक अच्छा संकेत है।