Possibilities of Investment of 40 Thousand Crores in Proper Disposal of Stubble
- January 3, 2022
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Two hundred lakh tonnes of stubble is presently a headache not only for Punjab but for the whole of North India. If it is disposed of properly, then there is a possibility of investment of 40 thousand crore rupees in this sector. Apart from this, the problem of importing petrol, diesel and chemical fertilizers in the country can be overcome. An MoU was signed between Punjab Investment Promotion and Renewable Gas Association of India to explore these possibilities.
Sanjeev Nagpal, an expert in this sector said that German company Verbio has set up its first and the country’s largest plant in Punjab. Its capacity is to dispose of only one lakh metric tonnes of stubble, but from this plant, 33 thousand tonnes of bio-CNG gas, 550 tonnes of organic manure will be available daily from this stubble. He said that R220 crore has been spent on his plant and there is a possibility of setting up 200 such plants in Punjab itself. Due to the use of chemical fertilizers in Punjab, farmers’ products are not being exported. Such plants are also the solution, because after removing the methane gas produced before composting from the stubble, organic manure will be available. It will get 550 tonnes per day, but till now no company has come forward to buy this manure. However, an agreement has been signed with Indian Oil to buy the gas. If we handle and dispose of 200 lakh tonnes of stubble burning in Punjab properly, then the cost of import of crude oil can also be saved.
Sanjeev Nagpal, who has been working to make bio-fertilizer from stubble for five years, said that methane is produced during the decomposition of biomass, which is 27 times more polluting than carbon dioxide, but if methane is used to make bio-CNG So we will have the best manure to survive. He told that we have also done its tests in collaboration with Punjab Agricultural University, Ludhiana.
Association’s general secretary Maninder Singh said that stubble is still considered as waste material, while it is wealth. He said that the government is not paying attention to this, it can be gauged from the fact that in 2023, 5000 plants for preparing bio-CNG should have been set up in the country, but there are not even a hundred big and small together. Maninder said that we hold the farmers responsible for the pollution caused in Delhi every year, but the subsidy being given to them on the machines is not being given to the plants, due to which not many plants have been set up.
पराली के समुचित निस्तारण में 40 हजार करोड़ के निवेश की संभावनाएं
दो सौ लाख टन पराली इस समय पंजाब ही नहीं बल्कि पूरे उत्तर भारत के लिए सिरदर्द बनी हुई है। इसका यदि समुचित निस्तारण हो तो इस सेक्टर में 40 हजार करोड़ रुपये के निवेश की संभावनाएं हैं। इसके अलावा देश में पेट्रोल, डीजल व रासायनिक खाद को आयात किए जाने की समस्या से निजात मिल सकती है। इन संभावनओं की तलाश के लिए पंजाब इन्वेस्टमेंट प्रमोशन और रिन्यूएबल गैस एसोसिएशन ऑफ इंडिया के बीच समझौता हुआ।
इस सेक्टर के विशेषज्ञ संजीव नागपाल न बताया कि पंजाब में जर्मन कंपनी वरबियो ने अपना पहला और देश का सबसे बड़ा प्लांट लगाया है। इसकी क्षमता मात्र एक लाख मीट्रिक टन पराली का निस्तारण करने की है, लेकिन इस प्लांट से इतनी पराली से रोजाना 33 हजार टन बायो सीएनजी गैस, 550 टन आर्गेनिक खाद मिलेगी। उन्होंने बताया कि उनके प्लांट पर 220 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं और पंजाब में ही इस तरह के 200 प्लांट लगाने की संभावना है। पंजाब में रासायनिक खादों का उपयोग होने के चलते किसानों के उत्पाद निर्यात नहीं हो पा रहे हैं। इस तरह के प्लांट उसका भी समाधान हैं, क्योंकि पराली से खाद बनाने से पूर्व बनने वाली मिथेन गैस को निकालने के बाद आर्गेनिक खाद मिलेगी। यह 550 टन हर रोज मिलेगी, लेकिन अभी तक इस खाद को खरीदने के लिए कोई कंपनी आगे नहीं आई हैं। हालांकि गैस को खरीदने के लिए इंडियन आयल से समझौता हो गया है। अगर हम पंजाब में जलाई जाने वाली 200 लाख टन पराली को संभालकर उसका समुचित निस्तारण करें तो कच्चे तेल के आयात पर होने वाला खर्च भी बचाया जा सकता है।
पांच साल पराली से बायो खाद बनाने का काम कर रहे संजीव नागपाल ने बताया कि बायोमास के डीकंपोजीशन के दौरान मिथेन पैदा होती है जो कार्बन डाइआक्साइड की तुलना में 27 गुणा अधिक प्रदूषणकारी है, लेकिन यदि मिथेन का उपयोग बायो सीएनजी बनाने के लिए कर लिया जाए तो हमारे पास बचने वाली सबसे अच्छी खाद होगी। उन्होने बताया कि हमने पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, लुधियाना के साथ मिलकर इसके टेस्ट भी कर लिए हैं।
एसोसिएशन के महासचिव मनिंदर सिंह ने बताया कि पराली को आज भी वेस्ट मैटिरियल माना जाता है, जबकि यह वेल्थ है। उन्होंने बताया कि इस ओर सरकार का ध्यान नहीं है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2023 में बायो सीएनजी तैयार करने के 5000 प्लांट देश में लग जाने चाहिए थे, लेकिन बड़े और छोटों को मिलकर अभी सौ भी नहीं हैं। मनिंदर ने कहा कि हम हर साल दिल्ली में होने वाले प्रदूषण के लिए किसानों को जिम्मेदार ठहराते हैं, लेकिन मशीनों पर जो सिब्सिडी उन्हें दी जा रही है वह प्लांट्स के लिए नहीं दी जा रही जिस कारण ज्यादा प्लांट नहीं लगे हैं।