RERA rules diluted by states
- June 23, 2022
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If homebuyers are forced to do even more extensive due diligence for an under-construction project than earlier, one reason is that states have diluted the 2016 Real Estate (Regulation & Development) Act or RERA, allowing developers to flout the rules.
With each state having diluted the rules differently, the task has become even more complex for home buyers. This is why the Supreme Court recently asked the Ministry of Housing and Urban Affairs to undertake a detailed scrutiny of RERA rules in every state.
All ongoing construction projects which have not received a completion certificate prior to commencement of the Act are meant to be applied uniformly across the country. But seven key states including Haryana, Uttar Pradesh, and Maharashtra have waived this rule, according to analysis by Anarock Property Consultants.
Uttar Pradesh has excluded ongoing projects which have applied for an occupancy certificate or received a partial completion certificate or sale deed for 60 per cent of the flats executed before the Act was notified from the purview of the RERA.
Haryana has excluded all ongoing projects and Maharashtra has excluded ongoing projects if any building has received an occupancy or completion certificate.
In Karnataka, ongoing projects in which 60 per cent of the work has been completed or which have a partial occupancy certificate, are not subject to RERA rules.
The study showed that among key states, only Gujarat has followed this RERA clause inspirit as formulated by the Centre.
This dilution of clauses has made RERA less stringent, say analysts, and allowed developers to circumvent the rules designed to protect home buyers.
Even punishments have been lightened. The RERA prescribed a fine of up to 10 per cent of the project cost and imprisonment for up to three years for repeated offences.
On changing the sanctioned plan, RERA said the consent of two thirds of the allottees is required.
Finally, RERA’s model sale agreement stipulated a 10 per cent advance payment or the charging of an application fee from buyers at the time of entering into a written agreement for sale. Moreover, if any structural defect appeared within five years of buyers taking possession, developers would be liable to rectify the defects free of cost.
Ministry of Housing and Urban Affairs should review how states have diluted the law.
राज्यों द्वारा कमजोर किये गये रेरा अधिनियम
अगर मकान खरीदने वाले खरीदारों को पहले की तुलना में एक निर्माणाधीन परियोजना के बारे में और अधिक पता करने के वास्ते ज्यादा मेहनत करने के लिए मजबूर होना पड़ता है तो इसकी एक वजह यह है कि राज्यों ने 2016 रियल एस्टेट (विनियमन एवं विकास) अधिनियम या रेरा को कमजोर कर दिया है। नतीजतन डेवलपरों को भी नियमों का उल्लंघन करने की अनुमति मिल जाती है।
प्रत्येक राज्य ने नियमों को अलग-अलग तरीके से कमजोर किया है जिसकी वजह से मकान खरीदारों के लिए काम और भी मुश्किल हो गया है। यही कारण है कि सर्वाेच्च न्यायालय ने हाल ही में आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय को हर राज्य में रेरा नियमों की विस्तृत जांच करने के लिए कहा था।
सभी चालू निर्माण परियोजनाएं जिन्हें कानून के शुरू होने से पहले पूरा होने का प्रमाणपत्र नहीं मिला था उन्हें रेरा के अंतर्गत आना हैं। इन नियमों को पूरे देश में समान रूप से लागू किया जाना था। लेकिन एनारॉक प्रॉपर्टी कंसल्टेंट्स के मुताबिक हरियाणा, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र सहित सात प्रमुख राज्यों ने इस नियम से छूट दे दी है।
उत्तर प्रदेश ने उन चालू परियोजनाओं को बाहर रखा है जिन्होंने ऑक्यूपेंसी प्रमाणपत्र के लिए आवेदन किया है या कानून को रेरा के दायरे से अधिसूचित किए जाने से पहले 60 प्रतिशत फ्लैट के लिए आंशिक या पूरे होने का प्रमाणपत्र हासिल किया है या बिक्री का ब्योरा हासिल किया है।
हरियाणा ने सभी जारी परियोजनाओं को इसके दायरे से बाहर कर दिया है वहीं दूसरी तरफ महाराष्ट्र ने भी उन चालू परियोजनाओं को इसके दायरे से बाहर कर दिया जिनकी इमारत को ऑक्यूपेंसी या पूरा हो जाने का प्रमाणपत्र मिला है।
कर्नाटक में भी चल रही परियोजनाएं जिनमें 60 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है या जिनके पास आंशिक ऑक्यूपेंसी के प्रमाणपत्र हैं वे रेरा नियमों के अधीन नहीं हैं।
इस अध्ययन से पता चलता है कि प्रमुख राज्यों में केवल गुजरात ने केंद्र द्वारा तैयार किए गए रेरा नियमों का पालन उस तरह से किया जिस मकसद से इसे लागू किया गया था।
विश्लेषकों का कहना है कि इसकी धाराओं ने रेरा को कमजोर बना दिया गया है और डेवलपरों को खरीदारों की सुरक्षा के लिए तैयार किए गए नियमों को दरकिनार करने का मौका मिल गया है। यहां तक कि सजा को भी कम कर दिया गया है। रेरा ने परियोजना लागत का 10 प्रतिशत तक जुर्माना लगाने और बार-बार अपराध करने पर तीन साल तक की कैद का प्रावधान किया है।
स्वीकृत योजना में बदलाव के लिहाज से रेरा के मुताबिक आवंटियों में से दो-तिहाई की सहमति जरूरी है।
रेरा के मॉडल बिक्री समझौते में बिक्री के लिए एक लिखित समझौते करने के वक्त खरीदारों से 10 प्रतिशत अग्रिम भुगतान या आवेदन शुल्क लेना तय किया है। इसके अलावा, अगर खरीदारों के घर कब्जा लेने के पांच साल के भीतर कोई संरचनात्मक खामियां होती हैं तो डेवलपर उन गड़बड़ियों को मुफ्त में ठीक करने के लिए जिम्मेदार होंगे।
आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय को इस बात की समीक्षा करनी चाहिए कि राज्यों ने कानून को कैसे कमजोर किया है।