The Government of Haryana’s November 6 notification stipulating 75 per cent reservation for locals in private sector jobs with effect from January 15 next year reflects some of the practical difficulties involved in implementing this politically motivated exercise.

Following parleys with state-based entrepreneurs after the law was passed in 2020, the notification has made some significant modifications. The salary cut-off of Rs 50,000 has been lowered to Rs 30,000 and the domicile stipulation reduced from 15 years to five years, suggesting that the pressures of employing locals has somewhat eased.

These relaxations do not, however, eliminate the legal and practical difficulties of the law that commentators had raised when it was passed. The Haryana State Employment of Local Candidates Act, 2020, remains in violation of basic constitutional rights such as, among others, right to freedom to reside in any part of the country and practice any occupation or business.

No less important is the fact that even these modified conditions in the statute do nothing to enhance the ease of doing business dynamic at a time when attracting investment is becoming critical.

The irony of this modified law is that it is unlikely to assuage the demands of locals or satisfy industry.

The new law’s lower salary cut – off will still raise costs significantly for employers.

Those invested in less mobile capital, such as medium or large factories may have to raise salaries as they seek to cross the Rs. 30,000-threshold to keep essential non-local employees on their books. The Act allows employers to hire non-domicile employees if adequate numbers of local of equivalent qualifications are unavailable for the job.

As for the shorter duration domicile rule, this may benefit non-locals who have lived in the state for at least five years. But the problem is that proving this requires a Residence Certificate based on a voter card, Aadhaar or a ration card. Few migrant workers in this income category are likely to have documents registered in the state. All told, this is an illogical legislation to enforce in a state that is suffering high unemployment and urgently requires more investment.


रोजगार में आरक्षण


हरियाणा सरकार ने 6 नवंबर को एक अधिसूचना जारी की है जिसके मुताबिक अगले वर्ष 15 जनवरी से निजी क्षेत्र को रोजगार में 75 फीसदी आरक्षण देना होगा। राजनीति से प्रेरित इस कदम के क्रियान्वयन में कुछ व्यावहारिक कठिनाइयां हैं।

सन 2020 में कानून पारित होने के बाद राज्य के उद्यमियों के साथ चर्चा की गई और अधिसूचना में कुछ अहम संशोधन भी किए गए। वेतन की 50,000 की सीमा को घटाकर 30,000 कर दिया गया और स्थानीय निवास की अवधि 15 वर्ष से कम करके पांच वर्ष कर दी गई।

बहरहाल, ये संशोधन इस कानून की उन कानूनी और व्यावहारिक कठिनाईयों को कम नहीं करते जिनका जिक्र टीकाकरों ने कानून पारित होते समय किया था। हरियाणा स्टेट एंप्लाॅयमेंट आफ लोकल कैंडीडेट्स ऐक्ट, 2020 अभी भी देश में कहीं भी रहने की आजादी के अधिकार तथा कोई भी पेशा या रोजगार अपनाने जैसे बुनियादी संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन करता है।

यह तथ्य भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है कि भले ही ये संशोधित परिस्थितियां भी इन हालात में कारोबारी सुगमता बढ़ाने जैसी मदद नहीं पहुंचाएगी जबकि अर्थव्यवस्था की गति धीमी है और निवेश जुटाना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इस संशोधित कानून की विडंबना यह है कि यह न तो स्थानीय लोगों को संतुष्ट कर पाएगा, न ही उद्योग जगत को।
नए कानून में वेतन का स्तर कम होने के बावजूद नियोक्ताओं की लागत बहुत बढ़ेगी। यह कोई छिपी बात नहीं है कि हरियाणा ढेरों मोटे उद्योग और सेवाओं में देश के अन्य हिस्सों के लोग बड़ी तादाद में रोजगारशुदा हैं। इनमें बड़ी हिस्सेदारी पूर्वी तथा पूर्वोत्तर भारत की है। इस कानून ने एक झटके में इन राज्यों के कामगारों के रोजगार के अवसरों को कम कर दिया है। जिन उद्यमियों ने मझोले या बड़े कारखानों में निवेश किया है उन्हें वेतन बढ़ाना होगा ताकि 30,000 की सीमा पार की जा सके और वे जरूरी गैर स्थानीय कामगारों को रख सकें। कानून नियोक्ताओं को अनुमति देता है कि वे गैर स्थानीय कर्मचारियों को नियुक्ति दें, बशर्ते कि उसी काम के लिए समान अर्हता वाले स्थानीय युवा उपलब्ध न हों।

जहां तक अल्पावधि के स्थानीय निवास की बात है तो इससे उन गैर स्थानीय लोगों को मदद मिल सकती है जो कम से कम पांच वर्ष से राज्य में रह रहे हैं। लेकिन इसे साबित करने के लिए मतदाता कार्ड, आधार कार्ड या राशन कार्ड पेश करना होगा। इस आय वर्ग के बहुत कम प्रवासियों के पास राज्य के ये दस्तावेज हैं। कुल मिलाकर यह उच्च बेरोजगारी से जूझ रहे और निवेश की तलाश कर रहे राज्य में लागू करने की दृश्टि से बेतुका कानून है।