Rohit Vashisth
- April 30, 2021
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The Laminate and Plywood Industry is once again in trouble with the spurt of second wave of covid-19. Decreased demand and increased cost of raw material has put the industry on halt. A talk with Mr. Rohit Vashisth, M.D. Trikalp Laminates
How are you observing the present scenario?
Distributors have shrinked themselves by limiting their working strength. Some of them are patiently watching the market because of current price hike. Perhaps they are expecting the prices to come down. That’s why they are confined on dealing actual and final demand only. Not interested on piling stock. But industry cannot stop its working every now and then. We hope to settle down all the disruption we are facing as we are now unable to predict the health and social scenario for the coming day.
Performance of the Industry in the last F.Y.
Last year (2020-2021) had lots of ups and downs. Uncertainty is prevailing everywhere. New plants are on the stage. Factories are expanding their production capacity, to bring down their overheads. Small manufacturers have to struggle amid expanding competition.
Have to face the challenge
This is a cycle. There was a time when industry was focused on quality and thicker grade. Present phase in on heavy production even on liner grade. We have to control our production tactfully merging quantity with quality (of thicker grade). We have to find out the way for margins, according to market situations.
Raw Material situation in near future?
Experts are optimistic that chemical prices may fall April onwards. But no one is predicting the paper price to come down in near future, which is most essential part of our production cost. Craft paper is almost doubled in recent past, affecting the margins miserably.
Export potentiality
We should be very thankful that our India is a very vast market. It is the dream of every industrialist to have its presence in Pan India. Only after covering whole of India, one looks upon the export market. Uncontrollable increase in costing has put on hold our movement for growth and expansion. We are praying for an early settlement of the pandemic and normal routine of business is revived.
Conclusively:
We have always learnt that one should have the art of converting challenges into opportunities and this is exactly we experienced in the new normal.
एक बार फिर कोविड के बढ़ते संक्रमण की वजह से मांग में कमी आने से लेमिनेट और प्लाइवुड इंडस्ट्री परेषान है। कोविड की वजह से मांग पर असर पड़ रहा है। रही सही कसर कच्चे माल की बढ़ती कीमतों ने पूरी कर दी है। लेमिनेट की उत्पादन लागत बढ़ गयी। लेकिन मांग में कमी होने की वजह से यह रेट स्वीकार नहीं हो रहे हैं। क्योंकि यदि मांग होती तो बढ़े रेट बाजार में आसानी से स्वीकार हो सकते थे। कोविड की दूसरी लहर के बाद उद्योगपतियों को क्या-क्या दिक्कत आ रही है। इसी क्रम में इस बार त्रिकल्प लेमिनेट्स के श्री रोहित वशिष्ठ से……
मौजूदा वक्त को किस तरह से देख रहे हैं?
डिस्ट्रीब्यूटरों ने खुद को संकुचित कर रखा है। कुछ तो नयी रेट लिस्ट की वजह से शांत है। शायद उन्हें डर है कि कहीं भविष्य में रेट कम न हो जाए। इस वजह से वह सामान्य जरूरत भर माल को ही मंगा रहे हैं। लगता है उन्होंने आंतरिक मांग को ही होल्ड कर रखा है। जबकि उद्योगपति के सामने दिक्कत यह है कि उसे तो हर रोज काम करना है। उत्पादन करना ही है। अब तो बस यही उम्मीद है किसी तरह से बाजार में उतार चढ़ाव बंद हो जाए। क्योंकि अब तो हालात यह है कि अगली सुबह का पता ही नहीं क्या होगा?
पिछले वित्त वर्ष में उद्योग का प्रदर्शन?
पिछला वर्ष 2020-21 काफी उतार-चढ़ाव वाला रहा है। इतनी अनिश्चितता बनी हुई है कि बताया नहीं जा सकता है। नए प्लांट आ रहे हैं। विस्तार भी हो रहा है। क्योंकि एक विचारधारा यह भी हैै कि यदि हम अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ा लेते हैं तो बाजार में ज्यादा देर तक टिक सकते हैं। इससे ओवरहेड खर्च तो कम हो ही जाते हैं। मौजूदा हालात में छोटे उद्योगपतियों को बाजार में रहने के लिए लंबा संघर्ष करना होगा। प्रतिस्पर्धा लगातार बढ़ रही है।
चुनौतियों का सामना भी करना है
यह चक्र है, एक वक्त था जब क्वालिटी पर विशेष जोर था। अब इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि कितना ज्यादा उत्पादन बढ़ा सकते हैं। लेकिन अब वक्त आ गया है कि हमें इस तरह से अपनी नीति बनानी होगी जिसमें क्वालिटी और उत्पादन क्षमता में संतुलन साध सकंे। यह भी तय करना होगा कि कैसे हम अपना प्रोफिट मार्जन बना सकते हैं। हमें लाइनर ग्रेड का उत्पादन कम करते हुए प्रीमीयम ग्रेड की ओर भी ध्यान देना होगा। लेकिन इसके लिए बाजार में खुद को स्थापित करना होगा। हमें अब उत्पादन बढ़ाने के साथ-साथ क्वालिटी की ओर अधिक ध्यान देना होगा। क्योंकि उत्पादन बढ़ाने का सीधा मतलब है लागत बढ़ना। छोटे उद्योगपति को अपनी पहचान बनानी है। लेकिन बाजार की रणनीति को समझ कर काम करना पड़ेगा।
कच्चे माल की स्थिति निकट भविष्य में ?
विश्लेषकों के अनुसार अच्छी संभावना यह है कि केमिकल के दाम तो अप्रैल के बाद कम होने शुरू हो जाएंगे। लेकिन पेपर के रेट कम होते नहीं लग रहे हैं। पेपर के रेट कम होने चाहिए। सबसे ज्यादा मार पेपर की है। क्योंकि सबसे ज्यादा प्रयोग तो पेपर का ही होता है। क्राफ्ट पेपर का रेट लगभग दोगुना हो गया है। जबकि इसका ही प्रयोग बहुत ज्यादा होता है।
एक्सपोर्ट की संभावना
हम खुश किस्मत हैं कि भारत अपने-आप में बहुत बड़ा बाजार है। किसी भी उद्योगपति की कोशिश होती है कि संपूर्ण भारत में अपना विस्तार कर पाये। इस संतुष्टि के बाद ही एक्सपोर्ट का रूख किया जाता है। फिलहाल कच्चे माल में तेजी की वजह से घरेलु बाजार को संभालना भी दुभर हो रखा है। महामारी का ये दौर थम जाये। दिनचर्या व्यवस्थित हो जाये, इसी की कामना है।
अंततः हमने हमेशा ही सीखा है कैसे चुनौतियों को अवसर में बदलने की कला आनी चाहिए। और हमें गर्व है कि हम इस नवनिर्माण में यह कर पाये।