SC Verdict to Protect Homebuyers, Make Realtors Toe the Line
- December 30, 2021
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The Supreme Court’s (SC’s) recent verdict upholding the jurisdiction of the Real Estate (Regulation & Development) Act, 2016, or RERA, in two different matters is expected to help homebuyers escape unnecessary harassment and put pressure on unscrupulous developers to toe the line.
Firstly, the SC’s verdict — upholding the jurisdiction of RERA on all realty projects that were ongoing and had not received completion certificate until the law came into effect — is now expected to trigger a major change in state-specific rules modelled on this Act.
The ‘ongoing projects’ included launches which had not obtained ‘completion certificate’ from civic agencies when the RERA Act was notified in the country.
“The ‘ongoing projects’ were deliberately brought within the ambit of RERA at a time when the development of real estate projects was not regulated and homebuyers were suffering from mounting incomplete inventory in the real estate industry,” said Experts.
While some states have defined and expanded the ambit of ‘ongoing projects’ in their RERA rules, the essence of the central legislation could not have been diluted.
“That is why in the Newtech judgment, the SC upheld this facet of the RERA Act, as well as the constitutionality of applicability of RERA to ‘ongoing projects’. This has been done keeping in mind that such ‘ongoing projects’ are necessarily required to be brought within the purview of the RERA to protect the interests of homebuyers. This is the only way to ensure timely completion of delayed and under-construction projects,”
This verdict by the apex court reaffirms the faith of several homebuyers who were otherwise being taken for a ride, and the court through this verdict has given more powers to RERA.
“The RERA rules were diluted in many states and being misused by some developers. Many under-construction projects that had still been not completed till the RERA implementation didn’t come under its ambit. Now with the SC verdict, these under-construction projects, too, will come under RERA and thereby benefit homebuyers in the long run,”
The sector might see increased completion of residential projects in times to come.
“Developers of many of the under-construction projects that didn’t fall within the ambit of RERA moved on and began to focus on their projects under RERA. Now with all such projects under RERA, they will have to complete these projects. Therefore, we may see reduction in the number of units that have been heavily delayed or completely stalled,”
According to the Anarock data, as of July, nearly 629,000 housing units were in various stages of (non)-completion across the top seven cities. These homes were launched in 2014 or earlier and were either heavily delayed or completely stalled.
Experts opined that the comfort they had with regard to RERA implementation was limited to particular states and fund flows were crimped in states, such as West Bengal, that did not have proper RERA implementation.
“It was becoming impossible for investors and purchasers to understand the implementation of RERA in different states. It is important to standardise the law across states,”
न्यायालय के फैसले से रियल्टी कंपनियां लीक पर चलने को मजबूर
दो अलग अलग मामलों में रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम, 2016 यानी की रेरा के क्षेत्राधिकार को बरकरार रखने के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से उम्मीद बंधी है कि घर खरीदारों को बेवजह की परेशानी नहीं उठानी पड़ेगी और धोखधड़ी करने वाले डेवलपरों पर लीक पर चलने का दबाव बनेगा।
पहला, सभी चालू और रेरा कानून के प्रभावी होने तक पूरा होने का प्रमाणपत्र हासिल नहीं कर पाई रियल्टी परियोजनाओं पर रेरा के अधिकार क्षेत्र को बरकरार रखने के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से अब इस अधिनियम के आधार पर राज्य विशेष के निमयों में बड़ा बदलाव होने की उम्मीद है।
चालू परियोजनाओं से आशय ऐसी परियोजनाएं हैं जिन्हें देश में रेरा अधिनियम के अधिसूचित होने तक नागरिक एजेंसियों से पूरा होने का प्रमाणपत्र नहीं मिला था।
विशेषज्ञों ने कहा, ‘चालू परियोजनाओं को रेरा के दायरे में तब लाया गया जब रियल एस्टेट परियोजनाओं का विकास विनियमित नहीं होता था और घर खरीदारों को रियल एस्टेट उद्योग में आधे-अधूरे परियोजनाओं के अंबार से मुश्किल हो रही थी।‘
एक ओर जहां कुछ राज्यों ने रेरा नियमों में चालू परियोजनाओं को परिभाषित किया है और इसके दायरे में विस्तार किया है वहीं केंद्रीय कानून की मौलिकता से छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है।
‘यही कारण है कि न्यूटेक निर्णय मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने रेरा अधिनियम के इस पहलू के साथ-साथ चालू परियोजनाओं में रेरा को लागू करने की संवैधानिकता को बरकरार रखा। ऐसा इस बात को ध्यान में रखकर किया गया है कि चालू परियोजनाओं को निश्चित तौर पर रेरा की निगरानी में लाए जाने की जरूरत है ताकि घर खरीदारों के हितों को सुरक्षा की जा सके। देरी से चल रहीं और निर्माणाधीन परियोजनाओं को समय पर पूरा करने का यही एकमात्र तरीका है।‘
सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले से अन्यथा ही ठगे जा रहे घर खरीदारों का विश्वास दोबारा से बहाल होगा और न्यायालय ने इस फैसले से रेरा को और अधिक शक्ति प्रदान की है।
कई राज्यों में रेरा के नियमों को उदार बनाया गया था जिसका कुछ डेवलपरों द्वारा दुरुपयोग किया गया। रेरा के लागू होने तक कई ऐसी परियोजनाएं थी जो पूरी नहीं हो पाई थी और वे रेरा के दायरे में नहीं आईं। अब सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से ये निर्माणाधीन परियोजनाएं भी रेरा के दायरे में आएंगी और इस प्रकार लंबी अवधि में घर खरीदारों को फायदा होगा।‘
आने वाले समय में इस क्षेत्र में अधिक संख्या में आवासीय परियोजनाएं पूरी होती हुई नजर आएंगी।
‘कई निर्माणाधीन परियोजनाओं के डेवलपरों ने रेरा के दायरे में नहीं आने वाली परियोजनाओं को अधर में छोड़कर रेरा के दायरे में आनी वाली परियोजनाओं पर ध्यान देना शुरू कर दिया था। अब चूंकि रेरा के दायरे में ऐसी सारी परियोजनाएं आएंगी ऐसे में उन्हें इन परियोजनाओं को पूरा करना होगा। लिहाजा हमें ऐसी परियोजनाओं की संख्या कम होती नजर आ सकती है जो भारी भरकम देरी से चल रही हैं या जिनमें निर्माण कार्य पूरी तरह से ठप पड़ चुका है।’
जुलाई में जारी किए गए एनारॉक के आंकड़ों के मुताबिक देश के शीर्ष सात शहरों में करीब 6,29,000 आवासीय इकाई निर्माण के अलग अलग चरण में थे। इनका निर्माण 2014 या उससे पहले शुरू हुआ था और इनके निर्माण में काफी देरी हो चुकी है या फिर निर्माण कार्य पूरी तरह से ठप पड़ चुका है।
एक अन्य विशेषज्ञ ने कहा कि रेरा लागू किए जाने में अहम बात यह है कि यह खास राज्यों तक सीमित था और धन प्रवाह उन राज्यों में हो रहा था, जैसे पश्चिम बंगाल में उचित तरीके से रेरा लागू नहीं है। ‘यह निवेशकों और खरीदारों के लिए जानना असंभव था कि विभिन्न राज्यों में रेरा लागू करने करने को लेकर क्या स्थिति है। यह महत्त्वपूर्ण है कि इस कानून का हर राज्य के लिए मानकीकरण किया जाए।‘