Usually most of the plywood factories established in the 1990s were set up with very limited area and resources. For example, starting with sawmill and peeling extending to press or starting with press and adding sawmill and peeling. Chamber and board section, dryer or core dry press etc. were increased as per requirement. But due to the installation in pieces, it was put wherever the place was available as per the convenience.





As production increased, the requirement of core and timber also increased, but the storage space available for them gone limited. Due to which it becomes difficult for a vehicle to easily reach every corner inside the factory in case of any emergency.

Be it mechanical or electrical equipment, everyone has a self-declared age, after which they should be replaced. Compromising on the condition of electrical equipment is very dangerous for the timber industry.

Dry wood and core are more than a pile of gunpowder, for which adequate fire fighting arrangements should be made in every institution. Most of the time, we even install it, but we do not train everyone to operate it, due to which we do not get the benefit of it in an emergency.

Especially when the factories are not working at night, then the need for strict monitoring (preferably digital) becomes more necessary. The specialty of sawdust is that it gives smoke when it smolders, but after a few hours it shows its flame.

It is very important for the industry to be aware & cautions by the damage caused by the fire at Shri Ram Steel in Yamunanagar. Because a small spark is enough, to make our dreams come crashing down, to hold back our rising steps.



आग से सावधानी बरतें


अमूमन 1990 के दशक में लगी हुई अधिकांश प्लाईवुड फैक्ट्रियां बहुत ही सीमित क्षेत्र और संसाधनो के साथ लगायी गयी थी. जैसे आरा और पीलिंग से शुरुआत करके प्रेस लगाना या प्रेस से शुरुआत करके आरा और पीलिंग लगाना. चेम्बर और बोर्ड सेंक्शन तथा ड्रायर या कोर ड्राय प्रेस आदि आवश्यकतानुसार बढाए गए. लेकिन टुकड़ों में लगाने की वजह से सुविधानुसार जहां जगह मिली वही लगा दी गयी.

उत्पादन बढ़ने के साथ कोर और टिम्बर की लागत भी बढ़ी, लेकिन उनके लिए उपलब्ध स्टोरेज स्पेस की कमी बढ़ती गई. जिससे फैक्ट्री के अंदर हर कोने में किसी भी आपात  स्थिति में सहजता से किसी गाड़ी का पहुंचना मुश्किल हो जाता है.

वैसे तो मैकेनिकल हो या विद्युतीय उपकरण सभी की एक स्वघोषित उम्र होती है जिसके बाद उन्हें रिप्लेस कर देना चाहिए। इसमें भी विद्युतीय उपकरण की स्थिति से समझौता करना टिम्बर उद्योग के लिए काफी घातक होता है.

सुखी लकड़ी और कोर तो वैसे भी बारूद का ढेर होता है, जिसके लिए अग्निशमन की पर्याप्त व्यवस्था हर संस्थान में होनी चाहिए। अधिकांशत: हम उसे लगा भी लेते है, लेकिन उसे ऑपरेट करने के लिए हम सभी को प्रशिक्षित नहीं करते,  जिससे आपात स्थिति में हमें इसका फायदा ही नहीं मिल पाता.

खासकर जब कारखानों में रात्रि में काम ना चल रहा हो तब सख्त निगरानी की आवश्यकता और भी अधिक हो जाती है. बुरादे जैसी चीज़ की खासियत होती है कि यह सुलगने पर तो धुंआ ही देती हैं लेकिन कुछ घंटो बाद अपनी लपट दिखाती हैं।





 

 

यमुनानगर में श्री राम स्टील में  लगी आग से हुए नुकसान से सावधान  और सतर्क होना उद्योग के लिए बहुत ही जरूरी है. क्योंकि एक छोटी सी चिंगारी काफी है, हमारे सपनो को धराशायी करने के लिए, हमारे बढ़ते हुए कदमो को पीछे खींचने के लिए.