UP Licences : Both Development and Environment protection must go hand in hand : Supreme court
- October 24, 2022
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The Supreme Court has granted approval for the implementation of the Government’s ‘March 2019’ decision to establish new timber industries in U.P., which was suspended by the NGT and for which the state government had approached the top court.
Justice B.R. Gavai and BV Nagarathna in their decision said that the license is granted on account of the development of the State, creating more employment opportunities and the availability of timber. Both Development and Environment protection must go hand in hand. They also clarified that the government is not expected to permit the logging of trees of protected species, and emphasis should be given to planting ten times more trees than heretofore.
The bench annulled orders issued by National Green Tribunal (NGT) and upheld the state government’s action to grant licenses.
In March 2019, the licensing process for the establishment of 1350 new timber-based industries was initiated in U.P. The NGT had suspended the licensing process while raising an objection to the government’s decision.
The UP government asserts this will encourage investment in the state, and escalate employment opportunities.
Timber Prices Skyrocketed
This decision has been taken at such a time when the plywood industry is experiencing a timber shortage. At present, the price of Eucalyptus and poplar timber, which are used as raw materials in plywood, is sky-high.
This year, poplar prices doubled to Rs. 1350 per quintal. Eucalyptus is also getting expensive to the same extent.
The problem is that the area under agroforestry in the country is decreasing rapidly. Plantation did not receive much attention prior to the current crisis.
The demand for timber will obviously increase after the Supreme Court’s decision, as a result of which the price of timber will also definitely rise. In such a scenario, only time will declare how favorable this decision will be for the industry and the business.
Haryana can have an adverse effect
U.P. border touches Yamunanagar. It gets huge quantities of Eucalyptus and poplar timber from UP. So, if the number of timber-based units increases in UP, then the farmers there will get the timber market close to them only.
Thus, a new challenge may emerge for the plywood industry of Yamunanagar. The manufacturers, so far, do not have any concrete strategy to cope with it.
In spite of that, time is required to meet the increasing demand for timber.
Baffling situation for farmers
The most complicated situation with respect to agroforestry remains with the farmers. More and more farmers adopt agroforestry as soon as the price increases. Then the price drops rapidly due to increased supply. Now, if that happens, the farmer has to bear a huge loss. Experts believe that there should be a balance between demand and supply.
It is consistently suggested that plywood manufacturers set a fixed (minimum) rate for timber.
To what extent will it be beneficial to the industry?
The industry already has a number of challenges. On the one hand, there is a problem with the price of raw materials, and on the other hand, the discouraging attitude of the market is a cause for concern. The adverse effects of two years of COVID-19 have also hit the industry.
In such a scenario, any problem in the timber will certainly hit the industry hard. However, various suggestions are being made on the availability of timber, and the required steps are also ongoing in this regard. However, it’s a long shot.
But is it possible for the industry to utilize and expand its potential solely on the basis of government efforts? Where, poplar and Eucalptus are very negligible in government subsidies platns distribution scheme.
उ.प्र. लायसेंस : विकास और पर्यावरण संरक्षण दोनों साथ साथ चलते रहने चाहिए : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने यूपी में नए लकड़ी आधारित उद्योग स्थापित करने के सरकार के मार्च 2019 के फैसले को लागू करने की अनुमति दी, जिस पर एनजीटी ने लगा दी थी रोक और प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था ।
जस्टिस बी.आर. गवई और बी वी नागरत्ना ने अपने निर्णय में कहा कि प्रदेश के विकास व रोजगार के अवसर पैदा करने के साथ साथ लकड़ी की उपलब्धता के कारण, लाइसेंस देने की मंजूरी दी जाती है। विकास और पर्यावरण संरक्षण साथ साथ चलते रहने चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि सरकार से उम्मीद की जाती है कि संरक्षित प्रजातियों के पेड़ों को काटने की इजाजत न दी जाए। और पहले के मुकाबले दस गुना अधिक पौधारोपण पर जोर दिया जाए। पीठ ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के आदेशों को खारिज करते हुए, और लाइसेंस देने में राज्य सरकार की कार्रवाई को बरकरार रखा है।
यूपी में मार्च 2019 में 1350 नए लकड़ी आधारित उद्योग स्थापित करने के लिए लाइसेंस देने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी। एनजीटी ने सरकार के इस निर्णय पर ऑब्जेक्शन जताते हुए लाइसेंस प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी। यूपी सरकार का दावा है कि इससे प्रदेश में निवेश को बढ़ावा मिलेगा, इसके साथ ही रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी।
लकड़ी के दाम आसमान पर
यह निर्णय ऐसे वक्त पर आया है, जब प्लाइवुड उद्योग को लकड़ी की कमी का सामना करना पड़ रहा है। इस वक्त प्लाइवुड में कच्चे माल के तौर पर प्रयोग होने वाली सफेदा और पॉपुलर की लकड़ी की कीमत आसमान पर है।
इस साल पोपलर की कीमतें दुगुनी होकर 1350 रुपए प्रति क्विंटल तक पहुंच गई। सफेदे की लकड़ी भी इसी अनुपात में महंगी होती जा रही है।
दिक्कत यह है कि देश में एग्रोफोरेस्ट्री का रकबा , आवश्यकता के मुकाबले तेजी से कम हो रहा है। पौधा रोपण की ओर ,इस बार के संकट से पहले ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट के इस कदम से जाहिर है लकड़ी की मांग बढ़ेगी, इससे लकड़ी के दाम और ज्यादा बढ़ने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। यदि ऐसा होता है तो उद्योग और व्यापार के लिए यह निर्णय कितना सुखद रहेगा, यह तो समय बताएगा।
हरियाणा में हो सकता है विपरीत असर
यूपी की सीमा यमुनानगर से मिलती है। यहां यूपी से बड़ी मात्रा में पॉपुलर व सफेदे की लकड़ी आती है। अब यदि यूपी में लकड़ी आधारित यूनिटों की संख्या बढ़ती है तो यूपी के किसानों को अपने आस पास ही लकड़ी का बाजार मिल जाएगा। इस तरह से यमुनानगर की प्लाइवुड इंडस्ट्री के सामने नया चैलेंज आ सकता है। इससे कैसे निपटा जाए,इसे लेकर उद्योगपतियों के पास, अभी तक कोई ठोस रणनीति नहीं है।
यूं भी लकड़ी की बढ़ी डिमांड को पूरा करने के लिए समय चाहिए। क्योंकि लकड़ी तैयार होने में वक्त लगता है।
किसानों के लिए स्थिति भ्रम वाली
एग्रो फोरेस्ट्री को लेकर सबसे पेचीदा स्थिति किसानों के लिए रहती है। क्योंकि जैसे ही दाम बढ़ते हैं तो अधिक से अधिक किसान एग्रो फॉरेस्ट्री अपना लेते हैं। सप्लाई ज्यादा होने से दाम तेजी से कम हो जाते हैं। अब यदि इस तरह की स्थिति बनती है तो किसान को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। जानकारों का मानना है कि मांग और आपूर्ति में संतुलन होना चाहिए।
इसके लिए लगातार एक सुझाव यह दिया जा रहा है कि प्लाइवुड निर्माता लकड़ी का एक निश्चित ( न्युनतम) रेट तय कर दें।
उद्योग के लिए कितना सुखद होगा ?
पहले ही उद्योग कई तरह की चुनौतियों से दो चार है। एक ओर कच्चे माल की कीमत को लेकर दिक्कत है, तो दूसरी ओर मार्केट का निरुत्साहित रवैया परेशान करने वाला है ।कोविड के दो सालों का विपरीत असर भी उद्योग पर पड़ा है।
इस तरह की स्थिति में यदि लकड़ी की दिक्कत आती है , तो निश्चित ही उद्योग को काफी धक्का लग सकता है। हालांकि लकड़ी की उपलब्धता के लिए कई तरह के सुझाव दिए जा रहे हैं। इस दिशा में काम भी चल रहा है। फिर भी इसके लिए वक्त तो चाहिए ही।
लेकिन क्या सिर्फ सरकारी प्रयासों के भरोसे उद्योग अपनी क्षमता का उपयोग और विस्तार कर सकता है ? जहां सरकारी अनुदान प्राप्त वाणिकी प्रोत्साहन में पोपलर और सफेदा के पौधों की मात्रा नगण्य है।