Viability of free distribution of electricity
- July 20, 2021
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The Aam Aadmi Party (AAP) has promised to offer free electricity of up to 300 consumption units in Punjab and Uttarakhand that go to legislative Assembly elections in 2022.
The promises by AAP, trying to expand its powers beyond Delhi, are similar to those it had assured Delhiites. In the national Capital, there is 100 per cent subsidy on electricity in the 0-200-unit domestic consumption slab. In 2019-20, close to 50 per cent of Delhi’s population availed of the electricity subsidy.
While announcing the poll sop of free electricity in Uttarakhand, Delhi Chief Minister Arvind Kejriwal said, “Fulfilling the promise of free electricity will cost around Rs. 1,200 crore. This can be easily done from the Rs. 50000-crore state Budget.”
Over the past two decades, state Budgets have burgeoned in size. The political benefits of providing subsidies to agriculture and domestic customers got established, and many states started offering subsidy.
While the focus of the earlier power reforms in states was to make electricity commercially viable, given the stress it was having on state resources, it did not last.
मुफ्त बिजली वितरण का असर
आम आदमी पार्टी (आप) ने पंजाब और उत्तराखंड में 300 यूनिट बिजली मुफ्त देने का वादा किया है। इन दोनों राज्य में 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं।
दिल्ली से बाहर पांव पसारने की कोशिश में जुटी आप की ओर से किए जा रहे वादे दिल्ली वालों से किए जा रहे वादे दिल्ली वालों से किए वादों से ही मिलता जुलता है। राष्ट्रीय राजधानी में 0-200 यूनिट की घरेलू खपत स्लैब में बिजली पर 100 फीसदी सब्सिडी दी जा रही है। 2019-20 में दील्ली की लगभग 50 फीसदी आबादी ने बिजली सब्सिडी का लाभ लिया।
उत्तराखंड में मुफ्त में बिजली देने का वादा करते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा, मुफ्त बिजली देने की लागत करीब 1,200 करोड़ रूपये आएगी। इसे 50,000 करोड़ रुपये के राज्य के बजट में आसानी से पूरा किया जा सकता है।
विगत दो दशकों में राज्यों के बजट में काफी इजाफा हुआ हैं। कृषि और घरेलू ग्राहकों को सब्सिडी मुहैया कराने के राजनीतिक लाभ हुए और बहुत सारे राज्यों ने सब्सिडी की पेशकश शुरू कर दी।
राज्यों में पहले के विद्दुत सुधारों का जोर बिजली को वाणिज्यिक तौर पर व्यावहारिक बनाने पर था जिसकी वजह राज्य के संसाधनों पर पड़ने वाला दबाव था।