National Monetisation Pipeline
- अगस्त 24, 2021
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Union finance minister Nirmala Sitharaman launched the National Monetisation Pipeline (NMP), through which the government aims to raise Rs. 6 Lakh Crore by leasing out state-owned infrastructure assets over the next four years. “It talks about brownfield assets where investment is already being made, where there are assets either languishing or not fully monetised or under-utilised.”
This will help fund new capital expenditure without pressuring government finances.
The Proposal involves handing assets including roads, railways, airports, sports stadiums, power transmission lines and gas pipelines to private operators, Sitharaman said.
Here is everything we need to know about the NMP scheme:
- According to the government vision, NMP is envisaged to serve as a medium-term roadmap for identifying potential monetisation-ready projects, across various infrastructure sectors.
- The NMP has been prepared after insights, feedback and experiences consolidated through multi-stakeholder consultations undertaken by Niti Aayog, the finance ministry and infrastructure line ministries.
- The framework for monetisation of core asset monetisation has three key imperatives: Monetisation of rights not ownership (this means the assets will have to be handed back at the end of transaction life,
- Brownfield de-risked assets and stable revenue streams,
- And structured partnerships under defined contractual frameworks with strike KPIs and performance standards.
- Considering that infrastructure creation is inextricably linked to monetisation, the period for NMP has been decided so as to be co-terminus with balance period under National Infrastructure Pipeline (NIP).
- Sitharaman said that NMP will create employment opportunities, thereby enabling high economic growth and seamlessly integrating the rural and semi-urban areas for overall public welfare.
- The plan is in line with Prime Minister Narendra Modi’s strategic divestment policy, under which the government will retain presence in only a few identified areas with the rest tapping the private sector.
नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन
केंद्र सरकार ने नेशनल मोनटाइजेशन पाइपलाइन की शुरूआत की है, जिससे 6 लाख करोड़ जुटाए जाएंगे।
- सरकार देश में इन्फ्रास्ट्रक्चर का तेजी से विकास करना चाहती है। इसके लिए 43 लाख करोड़ रुपए की नेशनल इन्फ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन की घोषणा की गई है। इतनी बड़ी राशि बजट से या कर्ज लेकर खर्च करना संभव नहीं है। ऐसे में सरकार अपने पुराने एसेट को मोनेटाइज करके राशि जुटा रही है।
- वित्त मंत्री ने कहा है कि सभी संपत्ति तय समय के बाद सरकार के पास लौट कर वापस आएगी। यह समय सीमा अलग-अलग एसेट क्लास के लिए अलग-अलग होगी। यह 25 साल से लेकर 60 साल तक के लिए होगी। इसके बाद वह एसेट वापस सरकार को मिल जाएगी।
- हर एसेट का मोनेटाइजेशन भी अलग-अलग तरीके से होगा। उदाहरण के लिए सड़को को इनविट के जरिए, वेयरहाउस को रीट के जरिए, एयरपोटर्स-रेलवे स्टेशन को प्राइवेट पार्टी को देकर और होटल्स को लीज पर देकर सरकार यह राशि जुटाएगी।
- यह सरकार की विनिवेश योजना से अलग है। विनिवेश मुख्य रुप से सरकारी कंपनियों का किया जाता है। इसमें कंपनी के शेयर बेचे जाते हैं और ज्यादातर मामलों में मालिकाना हक भी प्राइवेट पार्टी को दे दिया जाता है। इसमें कंपनी के बजाय सरकारी विभागों के पास मौजूद एसेट से पैसा जुटाया जा रहा है। संपत्ति बेचने की जगह उसे लीज पर दिया जा रहा है.
- नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन से जो पैसे आएगा, उसका इस्तेमाल नए बुनियादी ढांचा तैयार करने में होगा। इसमें भी मुख्य रुप से नेशनल इन्फ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन की योजनाएं शामिल होंगी। ये दोनों योजनाएं समानांतर चलती रहेगी और साथ में पूरी भी होंगी।
- नेशनल मोनेटाइजेशन की मौजूदा पाइपलाइन के लिए सरकार ने चार साल की योजना ही पेश की है। यह योजना इसी साल शुरू होकर वित्त वर्ष 2024-25 तक चलेगी।
- केंद्र सरकार अपने पूरे एसेट को मोनेटाइज करने की बजाय अपने एसेट के कुछ हिस्से को मोनेटाइज कर रही है। उदाहरण के लिए कुल राष्ट्रीय राजमार्गों का 20 फीसदी और कुल रेलवे ट्रैक का 2 फीसदी हिस्सा ही मोनेटाइज किया जा रहा है।