विकास से ज्यादा से ज्यादा रोजगार के अवसर पैदा हो, इसके लिए केवल श्रम आधारित विनिर्माण क्षेत्र की ओर देखना काफी नहीं है। इसके लिए अब अलग हट कर सोचना होगा। भारत में बुनियादी ढांचा निर्माण वैकल्पिक नौकरी के अवसर तेजी से पैदा कर रहा है, जो विनिर्माण पर कुछ हद तक दबाव कम करता है।

लेकिन अब वक्त आ गया है कि रोजगार को लेकर प्रतिस्पर्धी सोच विकसित करनी होगी। जो सेवाओं पर आधारित भी हो। यह मॉडल चीन से अलग होना चाहिए। भारत को अपने पूर्वी एशियाई पड़ोसियों पर बढ़त हासिल है। यहां काम को लेकर लिंग, आयु और सामाजिकता जैसे पूर्वाग्रह नहीं है, न ही किसी तरह का भेदभाव है। इस वजह से सेवा सेक्टर भी रोजगार का बड़ा माध्यम बना हुआ है, इससे विनिर्माण क्षेत्र पर नौकरियों का लेकर जो दबाव है, वह कम हो रहा है।

जैसा कि आईएलओ ने सिफारिश की है, भारत के श्रम बाजार में वंचित तबके की भूमिका बढ़ाने के लिए नीतिगत समर्थन की आवश्यकता है। इसमें कहा गया है कि स्वास्थ्य देखभाल और डिजिटल अर्थव्यवस्था पर ध्यान केंद्रित करने से मदद मिलनी चाहिए।ये सुझाव उसके अनुरूप हैं, जिसमें भारत अपने श्रम बाजार में कठोरता को कम करने के प्रयास कर रहा है। न तो विनिर्माण और न ही सेवाओं में कम अकुशल कार्यबल को काम दिया जा सकता है। जैसा कि कृषि में संभव है। अर्ध कुशल कार्यबल को पूरी तरह से दक्ष करने के लिए काम करना होगा। यूं भी जिस तरह से तकनीक बढ़ रही है, इसमें दक्षता को ही महत्व दिया जा रहा है।

इसके लिए भारत को नए विचार और तरीकों को अपनाना होगा। जैसे कि बड़े निर्माताओं को निर्यात में सब्सिडी प्रदान करना है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं होना चाहिए कि क्षमिको को भुगतान के बहाने काम की अवधि बढ़ा दी जाए।

भारत में बेरोजगारी का समाधान विकासशील अर्थव्यवस्था से अलग होगा। भारत सरकार को श्रमिकों से भरी बड़ी फ़ैक्टरियाँ बनाने की बजाय व्यापक दृष्टिकोण के साथ प्रयोग करना होगा।