New Pragati Plywood Industries, Yamunanagar





System is a Key Factor in the Progress


 

 

Scope for Faceless Plywood
To make a faceless plywood, the core should be smooth like face. Experiment is not possible from the timber available at present. Core should be more defect free. Popular and eucalyptus core is not perfect for the idea, dots, knot, holes, band, crack everything is there. Yes, Milia dubiya or similar quality Timber, if developed, from which such type of smooth core can be produced, then only without face plywood can be thought of great effort is to be done to popularize and produce and cultivate melia dubia. Till now Milia dibiya is not familiar to farmers in north India.

Scope of export
Volume in exports is high, but margins are very low, comparatively. A good competition is there among large plywood producer countries. One consignment consists of 25 – 50 container. transportation cost comes to approximately 8 to 10% . It is a major factor in exports, making it unviable for us. If support is received as subsidy for transporting up to port, it will benefit us and boost our morale.

However transport subsidy with a limitation of rupees 10 lakh is granted at present, which is insufficient. There should not be any caping upon it. Port based units have advantages of it, already.

Our sample are recognised and approved in US. We have already exported successfully in Germany Belgium and Dubai, but feasibility of margins is not there. That’s why, we are more dependent on local market, Which have the capacity to absorb our product. During a particular deal with foreign buyer, we were asked to offer our full production capacity, which we have to turn down. There is always a risk of refusal from other side, if there is any offers of cheaper material from other countries. We cannot dare to exit our presence from local market.

Eo Formaldehyde
International market demand is for Eo Formaldehyde Plywood and, technology for it, is available in India. We are fully competent to provide the best possible plywood for export. Pricing is the major factor in competing international market. And the biggest hurdle is transportation cost up to port. Government should promote exports by subsidizing the freight.

Quantity based production
Small units are not viable now. There was a time in plywood industry, when profit margin was good. Depreciation was a minor part in the costing. With the increase of manufacturing plants, competition has increased manifold. Investment in machineries is enhanced, due to advancement in technology. Interests on capital employed, whether it is bank loan or self, is a major part in the costing and it must be accounted for. We can say that small manufacturing capacity is going to loose the market. We are observing the rapid changes in the market. Even a small buyer, consuming a truckload in a month, is interested in procuring the material directly from the factory. We have to face the challenges and consequences.

Promotion of agro forestry and MSP
There is no doubt that acute shortage of timber is felt in the market. Plantation is diverted towards other species. Farmers are expecting a msp on the plantation. We all know that bumper production of any item, tend to devaluation of the product. We all have to bow down to market. Farmers are now getting a very good realisation at present. They can stop harvesting for one or two years, if the situation so arises by chance, in my opinion, to settled own the market.

FRI Dehradun is trying it’s best to promote Melia dubia with the support of WTA and industry. But it will take time to see the results. It’s a fact that we must have to plan for the plantation and promotion of agro forestry because sooner or later, de licensing is inevitable in UP, Punjab and perhaps nationally.

Credit Limit
Working with systems is a key factor in the progress of any industry. Working on maximum possible billing system is as much necessary as control of receivables. Industries has developed a mindset that we cannot go through without extending credit facility. It is partially true in my opinion. We have developed strict system of payment. Credit limit and timing may be negotiated but rules are strictly followed by our organization after finalization of the deal. No one is allowed to break the rules, even if we have to suspend the transactions. It has well been taught and admired by our respected dealers.

Industrialist visually hesitate to asking for payment in afraid of losing customers. This is worth taking risk. If branded and large companies can regulate, on their terms, then why not us?

We prejudicly assume that the customer will defect. Will he get the material without paying from another source?



उन्नति के लिए व्यवस्थित तरीके से काम करना जरूरी है।


फेस रहित प्लाइवुड की संभावना
यदि फेस हटाना है तो कोर को फेस जैसा बनाना होगा। अभी कोर विनियर जो बन रहा है,इसमें यह प्रयोग अभी संभव नहीं है। कोर की क्वालिटी और ज्यादा अच्छी करनी होगी। पॉपुलर और सफेदे की क्वालिटी इतनी अच्छी नहीं है। इसमें डाट्स, नाट्स होल, और बेंड, क्रेक आ जाते हैं। जिसका असर कोर की क्वालिटी पर आता है।

हां जैसे मिलिया डुबिया या इसी तरह की कोई लकड़ी आ जाए, जिससे इस तरह की स्मुथ कोर बन जाए तो हो सकता है फेस हटाया जा सकता है। क्योंकि मिलिया की लकड़ी में क्रेक और डाट्स नहीं आते हैं। इसलिए मिलिया से इस तरह की प्लाई बनाना संभव है। लेकिन इसके लिए मिलिया का प्रसार और उत्पादन बढ़ाना होगा। अभी यह लकड़ी उत्तर भारत में उपलब्ध नहीं है।

Export की संभावनाएं
एक्सपोर्ट का वॉल्यूम बहुत ज्यादा होता है। लेकिन एक्सपोर्ट में ज्यादा मार्जिन नहीं रहता है। कंपीटिशन वहां भी अब बहुत ज्यादा हो गया। एक बार में एक्सपोर्ट 25 से 50 कंटेनर होंगे। इसमें ट्रांसपोर्ट पर तकरीबन आठ दस प्रतिशत खर्च हो जाता है जो बहुत ज्यादा है। इस वजह से निर्यात महंगा हो जाता है।

इसलिए जरूरत इस बात की है कि पोर्ट तक के किराए में यदि सब्सिडी मिल जाए तो अच्छा रहेगा। एक्सपोर्ट पर दस लाख की ट्रांसपोर्ट सब्सिडी भी मिलती है। इसमें कैपिंग नहीं होनी चाहिए। इसका फायदा पोर्ट बेस यूनिट को अभी भी मिल रहा है। इसलिए वह एक्सपोर्ट आसानी से कर पाते हैं। हमारे सैंपल यूएस में पास है। हमने जर्मनी, बेल्जियम और दुबई में निर्यात भी किया था। लेकिन अब हम निर्यात नहीं कर पा रहे हैं।

क्योंकि रेट पड़ता नहीं खा रहा है। एक्सपोर्ट को लेकर अभी थोड़ा वक्त लग सकता है। इसलिए देखा जाए तो हम लोकल मार्केट पर ही निर्भर है। यह हमारे लिए जरूरी भी है और मजबूरी भी है। एक्सपोर्ट की बातचीत के दौरान एक सवाल पूछा गया कि क्या आप हमें हंड्रेड परसेंट माल दे सकते हैं। हमे इसके लिए मना करना पड़ा। क्योंकि यदि अंतरराष्ट्रीय खरीददार को दूसरे देश से सस्ता माल मिल गया तो वह हमें तत्काल मना कर देंगे। तब उस परिस्थिती में हमारे उत्पाद का क्या होगा। इसलिए हमे उन्हें मना करना पड़ा कि हम 50 – 60 प्रतिशत से अधिक उपलब्ध नहीं करा सकते हैं। हम अपना घरेलू बाजार नहीं छोड़ सकते।

Eo Formaldehyde

अंतरराष्ट्रीय मार्केट में EO फॉर्मेल्डिहाइड से तैयार माल की मांग है, इसकी टेक्नोलॉजी भारत में उपलब्ध है। एक्सपोर्ट की संभावना बने तो सब संभव है। मुझे लगता है कि अंतरराष्ट्रीय मार्केट में जाने में सबसे बड़ी बाधा कीमत ही है। खासतौर पर ट्रांसपोर्ट को लेकर। इस दिशा में सरकार से प्रोत्साहन मिलना चाहिए।

Quantity based production

छोटे यूनिट के लिए बड़ी समस्या आने वाली है। एक वक्त था, शुरूआती दौर में प्रोफिट मार्जन अच्छा था। तब मशीनों की डेपरिशिएशेसन काउंट नहीं करने पर भी कोई दिक्कत नहीं आती थी। अब प्रतिर्स्पधा बढ़ गई है। नई तकनीक की मशीनों की लागत भी बढ़ गयी है। इसके लिए काम करने के लिए बड़ी पूंजी चाहिए। बैंक की हो या अपनी पुंजी, व्यापार में ब्याज का हिसाब तो होना ही चाहिए। हम यह कह सकते हैं कि अब कम क्षमता वाली छोटी यूनिट का जमाना नहीं रहा। अब बहुत तेजी से मार्केट में बदलाव आ रहा है। यहां तक कि जिसकी एक डेढ़ माह में एक गाड़ी की सेल है, वह भी फैक्टरी से सीधे माल खरीदना चाहता है। इसलिए चीजों में बदलाव आ रहा है। इन बदलाव को स्वीकार करना सबके लिए जरूरी है।



Promotion of Agro forestry & MSP

इसमें कोई दो राय नहीं कि हम रॉ मैटिरियल के क्राइसिस से गुजर रहे हैं। किसान लकड़ी लगाना कम कर रहे हैं। किसानों का आग्रह हैं कि लकड़ी पर एमएसपी होना चाहिए। लेकिन मेरी राय में यह संभव नहीं है। किसानों को अभी तो अपेक्षा से ज्यादा रेट और मुनाफा मिल रहा है। जब किसी की बंपर फसल हो जाती है तो उसके दाम पीट जाते हैं। मार्केट फैक्टर इतना बड़ा है कि सभी को इसके सामने झुकना पड़ता है। दिक्कत यह है कि यदि लकड़ी का बंपर उत्पादन खपत से ज्यादा हो जाए तो इंडस्ट्रिलिस्ट कैसे लकड़ी का दाम तब भी ज्यादा देंगे। यह संभव नहीं है, आज भले ही लकड़ी के दाम ज्यादा चुकाने पड़ रहे हो। वह चुकाएंगे। लेकिन एमएसपी संभव नहीं है। किसान भाई भी तो समझदारी से काम ले सकते हैं। पोपुलर सफेदा की कटाई तो एक दो साल के लिए रोकनी संभव है ही। इंडस्ट्री की अपनी मजबूरी है।

FRI मिलिया डुबिया के लिए WTA और इंडस्ट्री के सहयोग से प्रचार करने का प्रयास कर रही है। हालांकि यह लंबी योजना है। कृषिवाणिकि को लेकर आज से सोचना तो होगा ही, क्योंकि देर-सवेर यूपी और पंजाब के अलावा शायद पूरे भारत में डिलाइसेंस तो होना ही है। इसलिए देखना होगा कि यमुनानगर प्लाईवुड उद्दयोग इस हालात में कितना और कैसे खुद को बचा कर रख पाएगी।

Credit Limit

बड़ा काम करने के लिए आदमी को व्यवस्थित एवं अधिकतम बिलिंग पर काम करना जरूरी हो जाता है। हमेशा वहीं इंडस्ट्री लगातार अच्छा प्रदर्शन कर सकती है यदि वह नियमों व सिद्धांतों पर चलती है। इंडस्ट्री में लोगो ने एक मानसिकता बना ली कि बिना उधार के माल नहीं बिकता। बिकता है, लेकिन इस दिशा में काम नहीं कर रहे हैं। उधार पर काम करने के लिए हमने नियम बनाये है। यदि कोई इन नियमो की अवहेलना करता है तो उसे माल न देने का जोखिम लेना ही पड़ता है। क्योंकि इंडस्ट्री नुकसान करने के लिए नहीं है। हम ग्राहक को उधार देते हैं। लेकिन उसकी एक समय सीमा है। तय समय पर पैसा देने के बाद ही नया माल दिया जाता है। हर ग्राहक के साथ यह नियम लागू है। यह भी ग्राहक ने ही सीखाया है। उन्होंने सीखाया कि वह पैसा देने को तैयार है, हम ही मांगने का साहस और जोखिम नहीं लेते।

कुछ लोग इस बात से डर जाते हैं कि यदि वह पैसे की मांग करेंगे तो ग्राहक जा सकता है। यह जोखिम तो लेना ही पड़ेगा, क्योंकि उधार देने की एक सीमा है। ब्रांडेड और बड़ी कंपनीयां भी तो अपनी शर्तों पर काम कर रही है। जब वह कर सकती है तो हम भी क्यों नहीं अपनी शर्त पर काम कर सकते।

हम कमजोर क्यों पड़े। हमारे अंदर पुर्वाग्रह है कि ग्राहक चला जाएगा। वह कहां जाएगा? जहां भी जाएगा उसे माल मुफ्त में तो मिलना नहीं है।