Editorial 2021

The government has been consistently emphasizing that the job of the government is not to run the industry. In her budget speech, Nirmala Sitharaman also said that the Modi government believes in minimum government, maximum governance. This means that the priority of the government is to create an environment conducive to industries.


For the first time, it is difficult to comment anything on the outcome of the budget. May be it is also a healthy sign. We are used to talk a lot of discussion before and after the presentation of general budget. Everyone had a keen eye on the implication of the changes on duty structures, which were seen in every item from biscuits, footwear, steel, fertilizer and cigarettes.

GST put an end to everything. Petroleum prices are determined by the market and customs duties have stabilized. In such a situation, nothing much is changed on the day of the budget. There is only one area in which people are still interested on the day of Budget. And this is personal finance and tax saving investments. Changes in the budget affect this sector. But the budget presented for the next financial year is completely silent on this too. Still, not changing is not a bad option either. As far as the personal budget of the people is concerned, there is nothing in the budget which will increase inflation. This is going to prove to be a more positive thing in the coming months. The government did everything that was needed for relief during covid.

Since the pace of industrialization is not as per expectation. The Modi government has made efforts for Indian entrepreneurs to come forward and increase their investment in those industries, which are currently migrating from China in the last two-three years.

The COVID pandemic has posed many challenges for the small and medium scale industries in India. Many concessions have been given to them to meet this challenge, but it should be kept in mind that industries cannot flourish on the basis of concessions alone. Let our entrepreneurs remember that strong industries stand only when they conform to world-class benchmarks in terms of production, quality, technology and productivity. Unfortunately, not all of our industries meet this criterion. The problem is not that India does not have a market, but that a large part of its requirement is met by imports. In such a situation, it becomes the responsibility of the businessmen to take advantage of the facilities and opportunities being provided by the Modi government and imbibe it in the true sense of the goal of self-reliant India set by the Prime Minister.

A big bet has been placed on infrastructure spending by making provision for capital expenditure of Rs.7.50 lakh crore in the budget. Massive funds have been allocated for housing and access to potable water in sectors such as roads, railways, airports, ports, mass transport, waterways and logistics infrastructure.

Budget provisions like Raising and Accelerating MSME Performance Program with an outlay of Rs.6,000 crore, introduction of end-to-end online e-bill system, one station one product concept are beneficial to MSMEs.

Even if the budget is good for the long term, but the current situation due to Corona cannot be ignored. Due to the impact of Corona, rising inflation, decreasing income, especially the low income and middle class people are facing the question of livelihood. Employment-oriented sectors have not been able to recover from the impact of Corona. A large number of people have lost their jobs or their income has decreased. In the first wave of Corona, urban areas, while in the second wave, rural especially non-agricultural activities were deeply affected. No special relief has been given in the budget to those affected by the corona virus.



बजट 2022: बदलाव नहीं होना भी अच्छा


सरकार लगातार इस पर जोर देती रही है कि सरकार का काम उद्योग चलाना नहीं है। अपने बजट भाषण में निर्मला सीतारमण ने कहा भी कि मोदी सरकार न्यूनतम सरकार, अधिकतम षासन में विष्वास रखती है। इसका आषय यही है कि सरकार की प्राथमिकता उद्योगों के अनुकूल वातावरण निर्मित करने पर है।


यह एक ऐसा बजट है, जिस पर कुछ टिप्पणी करना मुश्किल है। शायद में यह अच्छी बात है। एक समय तक आम बजट के बारे में हर कोई बहुत बात करता था। पहले के बजट में सस्ता-महंगा होने पर आइटम पर लोगों की इतनी पैनी नजर रहती थी कि पूरा देश बजट की प्रतीक्षा करता था और पेश होने के बाद महीनों तक विवेचना होती रहती थी। बिस्किट, फुटवियर, स्टील और फर्टिलाजर से लेकर सिगरेट तक सब पर शुल्क में बदलाव होता था।

जीएसटी ने सब पर विराम लगा दिया। पेट्रोलियम की कीमतें मार्केट के हिसाब से तय होती हैं और सीमा शुल्क स्थिर हो गए हैं। ऐसे में बजट के दिन कुछ खास नहीं बदलता है। सिर्फ एक क्षेत्र है जिसमें अभी भी बजट के दिन लोगों की दिलचस्पी बनी हुई है। और यह है पर्सनल फाइनेंस और टैक्स सेविंग इंवेस्टमेंट। बजट में होने वाले बदलाव इस क्षेत्र पर असर डालते हैं। लेकिन अगले वित्त वर्ष के लिए पेश बजट इस पर भी पूरी तरह से खामोश है। फिर भी शायद बदलाव नहीं होना भी बुरा विकल्प नहीं है। जहां तक लोगों के पर्सनल बजट की बात है तो बजट में ऐसा कुछ नहीं है जो महंगाई बढ़ाएगा। यह आने वाले माह में ज्यादा सकारात्मक चीज साबित होने वाली है। सरकार ने कोविड के दौरान राहत के लिए वह सब कुछ किया है जिसकी जरूरत थी।

चूंकी अभी उद्योगिकरण की रफ्तार वैसी नहीं है जैसी होनी चाहिए, इसलिए मोदी सरकार ने पिछले दो-तीन वर्षों में इसके लिए प्रयास किए हैं कि भारतीय उद्यमी आगे आकर उन उद्योगों में अपना निवेश बढ़ाएं, जो इस समय चीन से पलायन कर रहे हैं।

कोविड महामारी ने भारत में छोटे और मद्योले उद्योगों के लिए कई चुनौतियां उत्पन्न की हैं। उन्हें इस चुनौती का सामना करने के लिए कई रियायतें दी गई हैं, लेकिन यह ध्यान रहे कि अकेले रियायातों के दम पर उद्योग फल-फूल नहीं सकते। हमारे उद्यमी यह याद रखें कि मजबूत उद्योग तभी खड़े होते हैं, जब वे उत्पादन, गुणवत्ता, तकनीक और उत्पादकता के मामले में विश्व स्तरीय मानदंडों के अनुरूप हों। दुर्भाग्य से हमारे तमाम उद्योग इस कसौटी पर खरे नहीं उतरते। समस्या यह नहीं कि भारत में बाजार नहीं है, बल्कि यह है कि उसकी आवश्यकता का एक बड़ा हिस्सा आयात से पूरा होता है। ऐसे में कारोबारियों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे मोदी सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जा रहीं सुविधाओं और अवसरों का लाभ उठाएं और प्रधानमंत्री ने आत्मनिर्भर भारत का जो लक्ष्य तय किया है, उसे सही अर्थाें में आत्मसात करें।

बजट में 7.50 लाख करोड़ रुपये के पंूजीगत व्यय का प्रावधान कर बुनियादी ढांचे के खर्च पर बड़ा दांव लगाया गया है। सड़क, रेलवे, हवाई अड्डों, बंदरगाहों, जन परिवहन, जलमार्ग और रसद बुनियादी ढांचे जैसे क्षेत्रों में आवास व पीने योग्य पानी तक पहुंच के लिए बड़े पैमाने पर धन आवंटित किया गया है।

6,000 करोड़ रुपये के व्यय के साथ रेजिंग ऐंड एक्सिलरेटिंग एमएसएमई परफॉर्मेंस कार्यक्रम, एंड-टू-एंड ऑनलाइन ई-बिल सिस्टम शुरू करने, एक स्टेशन एक उत्पाद अवधारणा जैसे बजट प्रावधान एमएसएमई के लिए फायदेमंद है।

भले ही बजट लंबी अवधि के लिए अच्छा हो, लेकिन कोरोना के कारण जिस तरह के मौजूदा हालात हैं, उन्हें भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। कोरोना की मार, बढ़ती महंगाई, घटती आय से खासकर कम आय व मध्यम वर्ग के लोगों के सामने जीवनयापन का सवाल है। रोजगारोन्मुखी क्षेत्र कोरोना की मार से उबर नहीं पाए हैं। बड़ी संख्या में लोगों की नौकरी जा चुकी है या उनकी आमदनी घटी है। कोरोना की पहली लहर में शहरी क्षेत्र, जबकि दूसरी लहर में ग्रामीण खासकर गैर कृषि गतिविधियों पर गहरा असर पड़ा। बजट में कोरोना की मार से प्रभावितों को खास राहत नहीं दी गई है।

सुरेश बाहेती  9050800888