भारत का बाजार चीन से बड़ा, पर उसका हुनर सीखने लायक
- नवम्बर 15, 2024
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मॉर्गन स्टैनली के मुताबिक अगस्त के अंत में भारत उभरते बाजारों की दुनिया में चीन को पछाड़कर सबसे बड़ा बाजार बन गया। दिन बदलते वाकई देर नहीं लगती।
आज चीन को खारिज करना आसान है और हर कोई ऐसा कर भी रहा है। मगर हमें उसकी उपलब्धियों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। यह सही है कि चीन की बैलेंस शीट में मंदी है, प्रॉपर्टी बाजार का भट्ठा बैठ गया है और उपभोक्ताओं का हौसला डगमगा गया है। खपत धीमी हो गई है और कई लोगों को लग रहा है चीन को भी जापान की तरह पूरी तरह उबरने में कई दशक लग जाएंगे।
इसके बाद भी हमें मानना होगा कि चीन ने उच्च मूल्यवर्धन वाले उद्योगों में प्रगति की है और अहम तकनीकों के मामले में आत्मनिर्भर हुआ है। दुनिया की अगुआई करने, आत्मनिर्भर बनने और अहम तकनीकों में दबदबा बनाने के मकसद से बनाई गई मेड इन चाइना 2025 नीति मोटे तौर पर कामयाब रही है।
भारत चीन से बहुत कुछ सीख सकता है। बड़े पैमाने पर काम और उभरते उद्योगों में अग्रणी कंपनियां तैयार करने का उसका हुनर सीखने के लायक है।
आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) और ऊर्जा में बदलाव आने वाले दशकों में अर्थव्यवस्थाओं और कारोबारों की सूरत बदल देंगे। इनमें लाखों-करोड़ डॉलर का निवेश होगा। एआई में अमेरिका सबसे आगे है मगर तमाम प्रतिबंधों के बाद भी चीन उसके ठीक पीछे खड़ा है।
किंतु ऊर्जा में चीन का दबदबा है। वह नवीकरणीय ऊर्जा, परमाणु ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहन और लीथियम बैटरी में सबसे आगे है। नवीकरणीय ऊर्जा की आपूर्ति श्रृंखला में 50 से 70 फीसदी हिस्सा चीन का है और भारत समेत कई देश उस पर निर्भर हैं।
चीन ने बैटरी भंडार में जो हासिल किया है वह तारीफ के काबिल भी है और डराने वाला भी है। बैटरी भंडारण के 80 फीसदी बाजार पर आज चीन ही काबिज है और बाकी दुनिया की बैटरी उत्पादन क्षमता से पांच गुनी क्षमता अकेले उसके पास है। चीन की एक कंपनी सीएटीएल के पास वैश्विक बाजार का 36 फीसदी हिस्सा है और वह बाकी दुनिया की कंपनियों की कुल बाजार हिस्सेदारी से भी ज्यादा है।
चीन की बैटरियां पश्चिम से 40 फीसदी तक सस्ती हैं और वह प्रौद्योगिकी में आगे है। अब उन्हें सबसे किफायती और सुरक्षित माना जाता है। सीएटीएल बैटरी अनुसंधान पर अकेले जितना खर्च करता है, जापान और कोरिया की सभी कंपनियां मिलकर भी उतना खर्च नहीं करती। बैटरी रसायन में भी चीन की हिस्सेदारी 90 फीसदी है।
चीन के वाहन उद्योग ने 100 साल से भी ज्यादा समय से पेट्रोल-डीजल इंजन बना रही पश्चिमी कंपनियों को पछाड़ दिया है। चीन ने चुनिंदा नए उद्योगों में जो कामयाबी पाई है वह उल्लेखनीय है।
तरीका वही हैः चीन पहले झटपट नई तकनीक अपनाता है और फिर औद्योगिक नीति तथा सब्सिडी की मदद से सबसे बड़ा बाजार बन जाता है ताकि उसकी कंपनियां पूरी दुनिया के लिए उत्पादन कर सकें। तकनीक में वह सबसे आगे बना रहता है और पूंजी की मदद से अपनी उत्पादन क्षमता कई गुना बढ़ाते हुए आपूर्ति श्रृंखला अपनी मुट्ठी में कर लेता है।
भारत सहित बाकी दुनिया को यह देखना होगा कि चीन ने विभिन्न उद्योगों में जो दबदबा कायम किया है उससे कैसे निपटना है। हमारे देसी उद्योग को उसके साथ मुकाबला करना है तो हमें व्यापार प्रतिबंधों और औद्योगिक नीति की जुगलबंदी के साथ अपने उद्योग को समय और क्षमता बढ़ाने का मौका देना होगा।