भारत को 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनाने में कृषि की महत्त्वपूर्ण भूमिका रहने वाली है। भारतीय कृषि को अपनी मौजूदा 4 फीसदी की वृद्धि दर से बाहर निकलना होगा। विकसित भारत के लक्ष्य को पूरा करने के लिए अनुसंधान और विकास पर अधिक निवेश करना होगा। साथ ही फसलों के विविधीकरण पर भी जोर देना होगा। अगर किसानों की आय बढ़ानी है तो कृषि के मौजूदा स्वरूप को बदलना होगा।

अध्ययनों से पता चलता है कि कृषि में एक फीसदी वृद्धि से विनिर्माण व अन्य गैर कृषि क्षेत्रों की तुलना में 4 से 5 गुना अधिक गरीबी में कमी आती है। 90 फीसदी किसानों के पास एक हेक्टेयर से भी कम जमीन है। इसलिए सभी के विकास के लिए कृषि महत्त्वपूर्ण है।

भारत कृषक समाज ने कहा कि हमारे सर्वात्तम प्रयासों के बावजूद कृषि नीति विकसित भारत के लिए बड़ी बाधा है। कृषि में अनुसंधान व विकास बड़ी समस्या है। उन्होंने कहा कि हमें 2047 की तरफ देखने से पहले यह देखना होगा कि बीते 20 से 30 सालों में कृषि नीति में क्या हुआ है। बीते 20 साल में कृषि क्षेत्र में अनुसंधान व विकास पर निवेश मुद्रास्फीति के स्तर से भी कम हुआ है।

राज्य सरकारें कृषि में निवेश नहीं कर रही है। कृषि विद्यालय व विश्वविद्यालय और अनुसंधान संस्थानों में 50 से 60 फीसदी पद खाली पड़े हैं। इन पदों को भरने में दशकों लग जाएंगे। नहीं लगता कि इन पदों को भरने की योजना बन भी रही हैं।

राज्य सरकारें मुफ्त बिजली, पुरानी पेंशन देने जैसे लोकलुभावन उपाय करने में अधिक रुचि रखती हैं। इसलिए कृषि को राज्यों का विषय बने रहने देना सही नहीं है। अगर हम वैश्विक स्तर पर देखें तो चीन, अमेरिका जैसे देश अपने किसानों को राहत देने के लिए नियमित अंतराल पर अपनी कृषि नीतियों में बदलाव करते रहते हैं, जबकि भारत में दशकों से वही सब्सिडी और अन्य मुद्दों वाली नीतियां चली आ रही हैं।

आज भारतीय कृषि उस बिंदु पर पहुंच गई है जहां बाजार अपने आप चल रहा है और अच्छा विकास कर रहा है। जहां बहुत अधिक हस्तक्षेप है, वहां वे नहीं बढ़ रहे हैं।’ खेती का मतलब एमएसपी फसलें नहीं हैं। 70 से 80 फीसदी फसलें एमएसपी के दायरे से बाहर हैं। किसान अपनी पसंद से कुछ नहीं उगाते हैं, बल्कि वही उगाते हैं जिसकी बाजार में मांग रहती और जिस पर प्रोत्साहन मिलता है। मांग ने विविधीकरण में मदद की है। जब लोग बेहतर भोजन की आकांक्षा करेंगे, तो किसान उस ओर स्थानांतरित हो जाएंगे।

सरकार ने कई योजनाएं आजमाई हैं। लेकिन जब तक मांग नहीं बढ़ेगी इससे मदद नहीं मिलेगी। हमें कुछ किसानों की सफलता के उदाहरण मिलते हैं लेकिन यह पूरी तस्वीर नहीं दिखाता है। कृषि में बहुत सी समस्याएं आ रही हैं क्योंकि अंतरराष्ट्रीय सलाहकार सरकार की मदद कर रहे हैं और उन्हें इस बात का पता नहीं रहता है कि जमीनी स्तर पर कैसे काम करना है?

एमएसपी को कानूनी वैद्यता देने के सवाल पर विशेषज्ञों ने कहा कि यह इस क्षेत्र को बर्बाद कर देगा। किसान बेहतर आमदनी चाहते हैं। इसका एक तरीका जोखिम को कम करना है। जोखिम की वजह से ही किसान एमएसपी की मांग कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि 25 फसलों के मूल्य में 25 फीसदी वृद्धि से इन फसलों की अत्यधिक आपूर्ति हो जाएगी। जिसके परिणामस्वरूप सब कुछ सरकार की खरीद पर निर्भर हो जाएगा।

उत्पादन में छोटे से उतार-चढ़ाव से कीमतों में भारी बदलाव हो सकता है। कई बार देखा गया है कि उत्पादन 5 फीसदी बढ़ने पर भी दाम 50 फीसदी तक गिर जाते हैं। लेकिन किसान मनमाने ढंग से लागत से 50 प्रतिशत अधिक मांगते हैं तो उस पर स्पष्टीकरण की आवश्यकता है। विशेषज्ञों द्वारा सुझाए गए एमएसपी का स्वागत है। इस पर स्वर्गीय डॉ. एमएस स्वामीनाथन की ओर से भी तर्कसंगत जवाब नहीं मिला। ऐसे में यह जानना महत्वपूर्ण है कि तार्किक एमएसपी क्या है? कानूनी एमएसपी की पूरी अवधारणा ही बहुत सारी अस्पष्टता में फंसी हुई है। कोई भी सरकार सही मायनों में कानूनी एमएसपी नहीं दे सकती है।