Overcapacity will always haunt the market


The Ply Insight’s conversation with Rakesh Khurana, on the ongoing turmoil in the market regarding demand and supply.


 

How much is the balance between demand and supply?
Overproduction is a consistent restrain in the industry. Demand and supply are very important factor for any industry. There must be a balance in it. The biggest hurdle in plywood industry right now, is that, many people among us, are making the situation worse, knowingly or unknowingly. It resulted in loosing control over the prices. And consequently, the problem before us, today, is how to get profit margin? Many units have become sick, forcing to change management. This is damaging the market. There is no control over demand and supply. Demand is already affected. Moreover, there are efforts in UP and Punjab for fresh licenses for plywood manufacturing.

However, it is also true that delicensing of plywood units are unavoidable. Plywood manufacturers will have to be prepared for it. So the question is how to save the industry, from the impact of the situation? Overcapacity will always haunt the market.

Can production be controlled?
The issue was raised several times, that, production should be controlled, in the meetings of plywood manufacturers. Because the production capacity of every unit is public.

The cement industry is a great example. When consortium is made to reduce production, everyone follows it with full attention and dedication. But this is not followed in plywood sector. Manufacturers are struggling with many problems. Its impact is seen on the entire industry hurting everyone, in the market, as well as, the payment and quality. Due to lack of margin, many people are compelled to compromise on quality. Rented units leased for limited period effects the medium and to some extent, the large industry. Now the industrialist, who will be mentally and financially strong and will act wisely, will remain stable in this situation.

Mismatch of demand and supply is there. When new units started after getting fresh licenses and with this, many old units expanded their capacity, resulted in increased production. Production doesn’t disrupt now a days, even in winter or rainy season, due to new techniques and innovations, applied and exercised in the industry.

Difference between the first and second wave of Covid?
It is not correct to assume, that, plywood was in demand in the first wave of Covid. If you look carefully at the period of Covid, you will find, that, in the first phase, the production was reduced, as the labor had migrated. Work started in the units after a long gap. Many units could not start their production for the next two-three months. Covid had spared the villages and countryside. Production was less with routine demand. The raw material prices were also stable and everything was available. Till the end of 2020, production was at full swing, due to the vacuum, which was created at that time.

The game turned upside down in the second wave. Lockdowns were imposed at different times in different parts of India. Due to which, the demand became uncertain according to the local conditions and consequently production was affected. Similarly, in foreign countries, the impact of Covid was in different time periods. Sea fares also increased due to irregularities in supply.

Just look at pine timber, which usually used to be priced at Gandhidham for $ 125-130, it reached to 190. it created pressure on the consuming industries. Moreover, the input cost was increased, due to the effect in oil and chemicals. Labor was comfortable and surplus, as they did not migrate.

What do you think is the solution?
Yes it is possible to solve this equation. If production is controlled, everyone will be comfortable in the industry. Profit margin will also improve. It may stop indiscriminate earning, but will benefit everyone. Production capacity should never exceed the market demand.

How is the availability of timber?
Next problem is forthcoming, in shortage of timber. Proposals for new plants of MDF and particle Boards are up coming, which will enhance shortage of timber availability. Dealing properly in the matter is need of the hour. Farmers have to be convinced of a certain minimum amount on timber plantation. It will be possible only at association level, to work together, in this direction. It is not a single men’s effort.

Possibility of making ply without face or indigenous face?
Faceless ply is not possible right now. Although production with cheaper face or without face ply is a good option. It can be well managed by the branded companies. We cannot do our marketing without gurjan face at present. It is true that the face has no impact on strength of the ply. Poplar is short cycled now with very less scope for face. It starts from 14 inches girth and ends in 26 inches. Melia dubia is a good choice for both core and face. Hence, is a better choice for the industry in near future.

Market Prospects in near future?
PM Modi has announced two lakh crore project from Red Fort on 15th August. Work of one lakh crore is likely to start soon. Finance and other formalities have been cleared, is in the news. These projects will certainly boost our market. Affordable houses in private sector will also create demand for plywood in interior and construction.

 



ओवर कैपेसिटी बाजार को हमेशा तंग करती रहेगी


बाजार में मांग और सप्लाई को लेकर चल रहे उठक-पटक पर द प्लाई इनसाइट की यमुनानगर के प्लाइवुड उद्दयोगपति राकेश खुराना से बातचीत।



मांग और सप्लाई का सामंजस्य कितना हो पा रहा है ?
डिमांड और सप्लाई किसी भी इंडस्ट्री के लिए बहुत मायने रखती है। इसमें संतुलन होना ही चाहिए। प्लाईवुड उद्दयोग में इस वक्त सबसे बड़ी समस्या यह है कि हममें से ही कई लोग स्थिति को जाने-अनजाने खराब कर रहे हैं। इससे नुकसान यह हो रहा है कि कीमतों पर नियंत्रण नहीं रहा है। इस वजह से आज हमारे सामने समस्या यह खड़ी हो गई है कि कैसे मुनाफा निकाला जाए? इसका नुकसान यह हो रहा है कि बहुत सी यूनिट बीमार हो गई है। उन्हें कभी कोई तो कभी कोई चला रहा है। इसका असर बाजार पर पड़ रहा है। मांग और सप्लाई पर नियंत्रण नहीं है। पहले ही मांग प्रभावित है, अब ऐसा लग रहा है कि रही सही कसर यूपी और पंजाब से पूरी हो जाएगी। क्योंकि वहां प्लाईवुड के नए लाइसेंस दिए जाने की तैयारी हो रही है।

हालांकि यह बात भी सही है कि एक न एक दिन प्लाईवुड यूनिट के लाइसेंस खुलने हैं। इसे टाला नहीं जा सकता है। इसी को लेकर अब प्लाइवुड युनिट संचालकों को अपनी तैयारी करनी होगी। तो इस सब में सवाल यह है कि इंडस्ट्री को कैसे बचाया जाए? क्योंकि इस सब का असर इंडस्ट्री पर पड़ता है। ओवर प्रोडक्सन जहां भी होगी, वहां दिक्कत आएगी ही।

क्या उत्पादन को नियंत्रित किया जा सकता है ?
प्लाईवुड यूनिट संचालकों की बैठक में भी यह मुद्दा कई बार उठाया गया कि उत्पादन नियंत्रित होनी चाहिए। चुंकि उत्पादन क्षमता सार्वजनिक है। और सब को पता है कि किस यूनिट की क्षमता कितनी है। सीमेंट उद्योग इसका एक बड़ा उदाहरण है। वहां इस ओर पूरा ध्यान दिया जा रहा है। जब उत्पादन कों कम करने की सलाह बनती है तो सभी उस पर अमल करते हैं।

लेकिन प्लाईवुड में यह नहीं हो रहा है। यूनिट संचालकों को कई तरह की समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। इसका असर पूरी इंडस्ट्री पर आ रहा है। और सभी को इससे नुकसान हो रहा है। क्योंकि एक तो बाजार का साथ नहीं मिलता। दूसरा पेमेंट पर असर पड़ता है। क्वालिटी पर भी कहीं न कहीं असर होता है। क्योंकि शुन्य या कम मुनाफा होने की वजह से कई लोग गुणवत्ता से समझौता करने पर मजबुर हो जाते है। थोड़े समय के लिए किराये पर चलने वाली यूनिटो ने मध्यम दर्जे की और कुछ हद तक बड़ी इंडस्ट्री को भी प्रभावित किया है। अब जो उद्दयोगपति मानसिक मजबूत होंगे और समझदारी से काम लेंगे, वहीं इस हालात में बने रहेगे।

डिमांड और सप्लाई का मिस मेच है। नए लाइसेंस मिलने के बाद जब नयी यूनिटे चलनी शुरू हुई, और इसके साथ ही कई पुरानी युनिटों ने अपनी क्षमता का विस्तार किया। इससे उत्पादन तो बढ़ा ही है। होता यह था कि सर्दियों में और मानसून में उत्पादन कम होता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। क्योंकि हॉट लाइन है, सोलर पावर है। नई तकनीक आ रही है। इससे उत्पादन लगातार हो रहा है।

कोविड की पहली और दुसरी लहर के असर में अंतर ?
यह कहना सही नहीं है कि कोविड की पहली लहर में प्लाईवुड की डिमांड अधिक थी। यदि कोविड के उस पीरियड को धयान से देखें तो पाएंगे कि पहले चरण में क्योंकि लेबर पलायन कर गई थी,इसलिए उत्पादन कम हो गया था। यूनिटों में काम शुरू हुआ, तब भी कई युनिट अगले दो तीन माह चले ही नहीं। गांव देहात में कोविड ज्यादा नहीं था। वहां डिमांड थी। यहां उत्पादन कम था, वहां डिमांड ज्यादा थी। कच्चे माल के दाम भी सही थे और सभी कुछ चीजे उपलब्ध थी। उस दौरान पैदा हुए खाली पन से 2020 के अंत तक सभी ने भरपूर उत्पादन किया था।

दूसरी लहर में गेम पलट गया। भारत में विभिन्न हिस्सो में अलग-अलग समय पर लॉकडाउन लगाये गये। जिससे स्थानीय परिस्थितीयों के हिसाब से मांग अनिश्चीत हुई और उससे उत्पादन प्रभावित हुआ। ऐसे ही विदेशों में भी कोविड का असर विभिन्न समयावधि में हुआ। सप्लाई में अनियमितता की वजह से समुद्री किराए भी बढ़ गये। अब पाइन टिम्बर की बात करें तो गांधीधाम में जो 125 – 130 डॉलर में आता था, वह 190 तक पहुंच गया। इसका असर यह हुआ कि उपभोक्ताओं पर इसका दबाव बना। ऊपर से तेल और केमिकल महगें होने की वजह से भी इनपुट कॉस्ट पर दबाब बढ़ गया। इस बार लेबर ने भी पलायन नहीं किया था और लेबर सरप्लस हो गई थी।

इसका समाधान आपकी नजर में ?
मेरी नजर में इस समस्या का समाधान संभव है। इसके लिए बस यदि उत्पादन को नियंत्रित कर लिया जाए तो इंडस्ट्री में ठहराव आ सकता है। मुनाफा भी ठीक हो जाएगा। इससे अंधाधुंध कमाई पर तो रोक लग सकती है। लेकिन इससे सभी को लाभ मिलेगा। उतनी ही उत्पादन क्षमता का उपयोग होना चाहिए कि बाजार की मांग से उत्पादन ज्यादा न हो।

लकड़ी की उपलब्धता कैसी है ?
दूसरी समस्या यह आ रही है कि लकड़ी की भी कमी आ रही है। जिस तरह से एमडीएफ और पार्टीकल बोर्ड के नये प्लांट आ रहे हैं,इससे लकड़ी की आने वाले समय में दिक्कत बढ़ेगी। इससे निपटने के लिए अभी से प्रयास करना होगा। किसानों को यह विश्वास दिलाना होगा कि उन्हें एक निश्चित राशि तो लकड़ी उत्पादन पर मिलेगी। यह तभी संभव है, जब एसोसिएशन स्तर पर या कई सारी यूनिट मिल कर इस दिशा में काम करे। क्योंकि यह काम अकेला कोई नहीं कर सकता है।

फेस रहित या घरेलु फेस से प्लाई बनाने की संभावना ?
फेस रहित प्लाई अभी संभव नजर नहीं आ रही है। हालांकि सस्ते फेस या बिना फेस के प्लाई बनाना एक विकल्प जरुर है। लेकिन जो ब्रांडेड कंपनी है, वह तो ऐसी पहल कर सकती है, लेकिन हमारे जैसी यूनिट को तो गर्जन उपयोग करना ही होगा। यदि ऐसा नहीं करेंगे तो मार्केटिंग की दिक्कत आ सकती है। क्योंकि बाजार का ट्रेंड ऐसा ही है। यह सही है कि फेस लगाने से प्लाई मजबूत नहीं होती। पोपलर में दिक्कत यह है फेस का मटेरियल ही नहीं है। माल 14 इंच से पील होता है, 26 इंच पर खत्म हो जाता है। मिलिया फेस और कोर दोनों के लिए उपयुक्त है। निकट भविष्य में मिलिया की अच्छी संभावना नजर आ रही है।

निकट भविष्य में संभावनाएं ?
इस बार मोदी जी ने भी 15 अगस्त को लाल किले से दो लाख करोड़ के प्रोजेक्ट की घोषणा की है, एक लाख करोड़ के काम तो जल्दी ही शुरू हो जाने की संभावना है। इनकी औपचारिकता व वित्तीय स्थिति क्लियर हो गई है। यह प्रोजेक्ट हमारे लिए बहुत महत्व रखते हैं। दूसरा अफोर्डेबल हाउस भी उम्मीद की किरण लेकर आ रहा है। क्योंकि तब इंटीरियर में और निर्माण में प्लाईवुड की डिमांड आएगी।