Only Labor Reforms Insufficient
- November 16, 2020
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For three decades, the same argument was being made that labor-based industries could not flourish due to changes in these laws. While the change in laws in other Asian countries showed positive effects.
Now there have been changes in the labor laws which wanted reforms to be supported. The 29 central laws were consolidated into four codes: The law relating to payrolls was passed last year, while the three codes for working conditions, social security and industrial relations were codified last month. These codes give traders more freedom in terms of retrenchment of employees, etc. While the claims of representation of labor organizations will be tested once again as the strike and lockouts have become difficult. Companies with less than 300 employees do not even need a standing order that relates to the conduct standard of employees.
The government has also been given considerable freedom to keep industries out of the purview of the codes and set limits on their functioning. In a way, Parliament has given full authority to the government to do whatever it wants. Whether the new codes will stand the test by providing additional employment, later, we must first believe that they have made things easier keeping in mind the contemporary reality. In this, criminal liability has been abolished in many places and arrangements have been made to pay fines in their place. The scope of the codes has also been broadened to include fixed-term employees, contract workers, migrant workers, and unorganized sector employees. Still the real test will be employment growth. Especially in the organized sector where productivity and salary allowances are better.
केवल श्रम सुधार अपर्याप्त
तीन दशकों से यही दलील दी जा रही थी कि इन कानूनों में बदलाव न होने के कारण श्रम आधारित उद्योग पनप नहीं पाए। जबकि अन्य एशियाई देशों में कानूनों में बदलाव का सकारात्मक असर दिखाई दिया।
अब श्रम कानूनों में वे बदलाव हो चुके हैं जो सुधारों के हिमायती चाहते थे। 29 केंद्रीय कानूनों को चार संहिताओं में समेट दिया गयाः वेतनभत्तों से संबंधित कानून पिछले वर्ष पारित किया गया था। जबकि कार्य परिस्थितियों, सामाजिक सुरक्षा और औद्योगिक संबंधों को लेकर तीन संहिताएं गत माह संहिताबद्ध हुईं। ये संहिताएं कारोबारियों को कर्मचारियों की छंटनी आदि के मामले में अधिक स्वतंत्रता देती हैं, जबकि श्रम संगठनों के प्रतिनिधित्व के दावे की एक बार फिर परीक्षा होगी। क्योंकि हड़ताल और तालांबदी अब मुश्किल हो गए हैं। 300 से कम कर्मचारियों वाली कंपनियों को उस स्थायी आदेश की आवश्यकता भी नहीं है जो कर्मचारियों के आचरण मानक से संबंधित है।
सरकार को भी इस बात की काफी स्वतंत्रता दी गई है कि वह उद्योगों को संहिताओं के दायरे से बाहर रख सके और उनके कामकाज की सीमा तय कर सके। एक तरह से संसद ने सरकार को इस विषय में पूरा अधिकार दे दिया है कि वह जो चाहे करे।
क्या नई संहिताएं अतिरिक्त रोजगार मुहैया कराके परीक्षा में खरी उतरेंगी, यह सवाल बाद में, पहले हमें यह मानना होगा कि उन्होंने समकालीन हकीकत को ध्यान में रखते हुए चीजों को आसान किया है। इसमें कई जगह आपराधिक दायित्व समाप्त किया गया है और उनकी जगह जुर्माना चुकाने की व्यवस्था की गई है। तयशुदा अवधि वाले कर्मचारियों, अनुबंधित श्रमिकों, प्रवासी श्रमिकों और असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों को शामिल कर संहिताओं का दायरा भी व्यापक किया गया है। फिर भी असल परीक्षा होगी रोजगार वृद्धि। खासतौर पर संगठित क्षेत्र में जहां उत्पादकता ज्यादा और वेतन भत्ते बेहतर होते हैं।