Editorial 2021

In the Webinars, held recently, all the experts of the field, unanimously accepted that the availability of wood is continuously decreasing at present. The main reason for this is that the income of other alternative crops for farmers, is more or equal to Safeda-Popular. But an even bigger reason is thought of, to be its long duration (5-6 years or more).



Train coaches reach their destination only when they move along with the engine. Hence compatibility between engines and coaches is essential. The engine is running continuously, its speed is so fast that the coaches are jumping. The stage of their derailment is about to come. The connecting link between them is about to reach the verge of breaking. Will the passengers sitting in the speeding train be safe? Shouldn’t the middle links of the compartment be strengthened , with controlling the engine speed, in such a situation?

In the Webinars, held recently, all the experts of the field, unanimously accepted that the availability of wood is continuously decreasing at present. The main reason for this is that the income of other alternative crops for farmers, is more or equal to Safeda-Popular. But an even bigger reason is thought of, to be its long duration (5-6 years or more). Where the duration of the cycle of sugarcane or other crops, is of a few months. And the profit and losses are limited to that period only. On the other hand, there is no guarantee of price, or any support price assured from the Industries. Farmers need assurance of getting a minimum cost. As a result of the price fluctuations in the last few years, many big farmers turned away from their cultivation of Agriwood, when the prices of Safeda Poplar had gone down to their lowest level.

This situation is painful for the farmers as well as challenging for the industry also. If there is no raw material for the industry, how will it survive?

If the raw material ,on the basis of which, so many industries are set up in the region, it’s availablity is in doubt, then what can be the fate?

When the PWI of North-East were shut down by the Supreme Court in 1996, and when they were allowed to run again, after a period, Non availablity of timber made them unviable to run.

Today, the plywood industry is faced with a two-pronged challenge by MDF & PB ‘s. While on the one hand it’s market share is increasing continuously, due to the uniformity of the product ; secondly, how can temptation of farmers be resisted , not to cut trees for long period ? As the MDF PB industries will consume the short duration (2-3 years) timber . How will PWI survive? Will PWI be able to withstand the challenge of escalating timber prices?

After Haryana, the process of deregulating (delicencing) wood based industry, is going on in the whole of India. Should not the nobles still give serious thought to this matter?

The habit of not discussing a serious topic or try to understand it and shying away from brainstorming will not lead us anywhere?

Unless we are free from all our prejudices, until we remove the spectacles that have been put on our eyes, unless we are ready to accept something out of the box, we will not be able to come to a complete conclusion on this subject.

We have enjoyed a very good journey. It’s time to think about our next generation.



पिछले दिनों हुए वेबीनार में क्षेत्र के सभी विशेशज्ञों ने एक मत से स्वीकार किया कि निकट भविष्य में लकड़ी की उपलब्धता लगातार कम होती जा रही है। अन्य वैकल्पिक फसल की आमदनी सफेदा-पापुलर से अधिक या बराबर होना उसकी प्रमुख वजह है। लेकिन उससे भी बड़ी वजह यह मानी गयी इसकी लंबी Rotaion (5-6 साल या अधिक) होना है।



रेलगाड़ी के डिब्बे तभी गंतव्य तक पहुंच पाते हैं, जब वे इंजन के साथ-साथ चलते हैं। इसलिए इंजन और डिब्वों में सुसंगति आवश्यक है। इंजन लगातार भागा जा रहा है, उसकी गति इतनी तेज है कि डिब्बे उछल रहें हैं। उनके पटरी से उतरने की अवस्था आने वाली है। उनके बिच की जोड़ने वाली कड़ी टुटने की कगार पर पंहुचने वाली है। क्या तेज गति से दौड़ने वाली गाड़ी में बैठे यात्री सुरक्षित होंगे? क्या ऐसी स्थिति में इंजन की गति को नियंत्रित करते हुए डिब्बे की बिच की कड़ीयों को मजबुती प्रदान नहीं करनी चाहिएं?

पिछले दिनों हुए वेबीनार में क्षेत्र के सभी विशेषज्ञों ने एक मत से स्वीकार किया कि निकट भविष्य में लकड़ी की उपलब्धता लगातार कम होती जा रही है। अन्य वैकल्पिक फसल की आमदनी सफेदा-पापुलर से अधिक या बराबर होना उसकी प्रमुख वजह है। लेकिन उससे भी बड़ी वजह यह मानी गयी इसकी लंबी Rotaion (5-6 साल या अधिक) होना है। जहाँ गन्ने या दुसरी फसल के चक्र की अवधि कुछ महिनों की होती है. और लाभ-नुक्सान उसी अवधि तक सीमित रह जाती हैं। वहीं WBI के लिए (Agri-wood) कृषि वाणिकी को 5-6 साल तक सहजने के बाद कीमत का कोई आश्वासन (गांरटी) नहीं होता। कम से कम लागत मिलने का आश्वासन तो किसानों को चाहिए ही। पिछले कुछ वर्षों में किमतों के उतार चढ़ाव का दुष्परिणाम यह हुआ कि कई बड़े किसान तब इनकी खेती से ही विमुख हो गये जब सफेदा पापुलर की कीमतें अपने निम्न स्तर पर चली गई थीं।

यह स्थिति किसानों के लिए जितनी दुःखदायी है उतनी हि उद्दयोग के लिए चुनौतीपूर्ण बन जाती है। अगर उद्योग के लिए कच्चा माल ही नहीं होगा तो चलेंगी कैसे?

जिस कच्चे माल के आधार पर क्षेत्र में इतने उद्योग लगे उनकी पैदावार ही शंका में पड़ जाये तो क्या हश्र हो सकता है? 1996 में उच्चतम न्यायालय द्वारा पुर्वाेत्तर के PWI को बन्द करवाने के बाद, जब दुबारा उन्हें चलाने की अनुमति मिली, तो कच्चे माल की अनुप्लब्धता से उनका कोई औचित्य नहीं रह गया।

आज MDF और Particle Board द्वारा प्लाइउड उद्दयोग को दो तरफा चुनौती मिली हुईं है। जहाँ एक ओर quality की एकरूपता की वजह से बाजार में लगातार इनकी हिस्सेदारी बढ़ रही है, वहीं सफेदा पापुलर को कम अवधि (2-3 साल) का माल इनके द्वारा खपाये जाने से PWI के लिए लंबी अवधि तक पेड़ों को न काटने के प्रलोभन से किसान कैसे बचेंगे? क्या इसके लिए अतिरिक्त कीमत नहीं चुकानी पड़ेगी? क्या MDF/PB की कीमतों की चुनौती Plywood सह पायेगा?

हरियाणा के बाद संपूर्ण भारत में (WBI) काष्ठ आधारित उद्योग को नियन्त्रण (License) हीन करने की प्रक्रिया चल रही है। क्या अब भी महानुभावों को इस विषय पर गंभीर चिंतन नहीं करना चाहिए?

किसी गंभीर विषय पर चर्चा करने, उसे समझने और मंथन करने से कतराने की आदत हमें कहीं नही पहुंचाएगी?

जब तक हम अपने समस्त पूर्वाग्रहों से मुक्त नहीं होते, जब तक हम अपनी नजरों पर चढ़े चश्मे को नही हटाएंगे, लीक से हटकर नया कुछ स्वीकारने को तैयार नहीं होंगे, इस विषय पर समग्रता से निष्कर्ष नहीं निकल पांएंगे।

हमने अपनी यात्रा बहुत सुखद तरीके से पार करी है। अब समय है अगली पीढ़ी के लिए कुछ बेहतर संसाधन की व्यवस्था कर जांए।

सुरेश बाहेती – 9050800888