This is the first time since the reserve Bank of India started providing sectoral deployment of bank credit that personal loans have over taken industrial credit.

Outstanding industrial credit was up just 2.3 per cent year-on-year during the first five months of FY22 to Rs. 28.2 trillion at the end of August. In comparison, the disbursement in personal loans by banks was up 12.1 per cent YOY during the first five months of FY22 to reach 28.94 trillion at the end of the same month.

Analysts say these hints at a continued slowdown in private sector investment and capex in the industry.

“Consumer demand continues to drive economic recovery in the country while companies continue to deleverage their balance sheet rather than invest in new projects or capacity expansion,”

He expects corporate capex to take off in the second half of FY23 or early FY24 once a sustained rise in consumer demand results in higher capacity utilization.

Others point at a steady fall in investment at macro level. “The bank credit data confirms what we see in the gross domestic product (GDP) data. The share of investment in India’s GDP declined to a multi-year as companies remain reluctant to invest,” economist says.

Sluggish growth in banks credit to industry also shows in the bond market. “Very few companies in the manufacturing or the industrial segments are borrowing from the corporate bond market and most of the bond issuances are either from non-banking finance companies or public sector firms such as NTPC,” he added.


बैंक कर्ज में उद्दयोग की हिस्सेदारी रिकॉर्ड निचले स्तर पर


भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा क्षेत्रवार बैंक कर्ज का आवंटन किए जाने के बाद यह पहला मौका है, जब व्यक्तिगत कर्ज का प्रतिशत औद्योगिक कर्ज से ज्यादा हो गया है।

वित्त वर्ष 22 के पहले 5 महीने में बकाया औद्योगिक कर्ज पिछले साल की समान अवधि की तुलना में महज 2.3 प्रतिशत बढ़ा है, और अगस्त के अंत तक यह 28.2 लाख करोड़ रुपये था। इसकी तुलना में बैंकों द्वारा दिया गया व्यक्तिगत ऋण वित्त वर्ष 22 के पहले 5 महीने के दौरान पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 12.1 प्रतिशत बढ़कर इस महीने के अंत तक 28.94 लाख करोड़ रुपये पहुंच गया है।

विशेषज्ञों का कहा है कि इससे संकेत मिलता है कि निजी क्षेत्र के निवेश और उद्योगों के पूंजीगत व्यय में मंदी जारी है।

‘उपभोक्ता मांग की वजह से आर्थिक रिकवरी को लगातार बल मिल रहा है, जबकि कंपनियां अपना बैलेंस सीट हल्का करने में जुटी हुई हैं और वे नई परियोजनाओं व क्षमता विस्तार पर खर्च नहीं कर रही हैं।’

उन्होंने उम्मीद जताई कि कॉर्पोरेट का पूंजीगत व्यय वित्त वर्ष 23 की दूसरी छमाही या वित्त वर्ष 24 के शुरुआत में गति पकड़ेगा, जबर उपभोक्ता मांग में टिकाऊ वृद्धि हो जाएगी और क्षमता का अधिकतम उपयोग होने लगेगा।

अन्य मसला सूक्ष्म स्तर पर निवेश में तेज गिरावट का है। अर्थशास्त्री कहते है, ‘बैंक ऋण के आंकड़े उन आकंड़ों की पुष्टि करते हैं, जो हम सकल घरेलू उत्पाद के आंकड़ों में देख रहे हैं। भारत की जीडीपी में निवेश की हिस्सेदारी पिछले वित्त वर्ष में गिरकर कई साल के निचले स्तर पर पहुंच गई, क्योंकि कंपनियां निवेश को लेकर सुस्त रही हैं।

बैंकों की ओर से उद्योग को दिए जाने वाले कर्ज में सुस्ती बॉन्ड बाजार में भी नजर आ रही है। उन्होंने कहा, ‘विनिर्माण या औद्योगिक क्षेत्र की बहुत कम कंपनियां कॉर्पोरेट बॉन्ड बाजार से उधारी ले रही हैं और ज्यादातर बॉन्ड उधारी गैर बैंकिंग वित्त कंपयिनां या सार्वजनिक क्षेत्र की फर्मों जैसे एनटीपीसी द्वारा ली गई है।’